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राजस्थान हाईकोर्ट से लैब असिस्टेंट भर्ती-2018 के अभ्यर्थी को बड़ी राहत, विभाग की हठधर्मिता पर लगाई रोक

 
राजस्थान हाईकोर्ट से लैब असिस्टेंट भर्ती-2018 के अभ्यर्थी को बड़ी राहत, विभाग की हठधर्मिता पर लगाई रोक

राजस्थान हाईकोर्ट ने लैब असिस्टेंट भर्ती-2018 से जुड़े एक मामले में अभ्यर्थी को बड़ी राहत देते हुए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की हठधर्मिता पर सख्त रुख अपनाया है। हाईकोर्ट की जस्टिस रेखा बोराणा की एकलपीठ ने जोधपुर जिले के ओसियां निवासी करणी सिंह द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए विभाग को आवश्यक निर्देश जारी किए हैं। इस फैसले को भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और अभ्यर्थियों के अधिकारों की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।

मामले के अनुसार, करणी सिंह ने लैब असिस्टेंट भर्ती-2018 के तहत आवेदन किया था और चयन प्रक्रिया में आवश्यक योग्यता एवं अन्य शर्तें पूरी करने के बावजूद उन्हें नियुक्ति से वंचित रखा गया। अभ्यर्थी का आरोप था कि विभाग द्वारा तकनीकी आधार पर आपत्ति जताकर उन्हें अनावश्यक रूप से परेशान किया गया और नियुक्ति नहीं दी गई, जबकि समान परिस्थितियों वाले अन्य अभ्यर्थियों को नियुक्ति का लाभ दिया गया।

याचिका की सुनवाई के दौरान अभ्यर्थी की ओर से न्यायालय को बताया गया कि भर्ती प्रक्रिया के दौरान विभाग ने नियमों की गलत व्याख्या करते हुए उनके दस्तावेजों को अस्वीकार कर दिया। इसके बावजूद विभाग की ओर से कोई संतोषजनक समाधान नहीं किया गया, जिससे मजबूर होकर अभ्यर्थी को हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी।

मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस रेखा बोराणा ने विभाग के रवैये को अनुचित और मनमाना माना। न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि योग्य अभ्यर्थी को केवल तकनीकी कारणों के आधार पर नियुक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भर्ती प्रक्रिया में विभाग को निष्पक्षता और समानता के सिद्धांतों का पालन करना होगा।

हाईकोर्ट ने चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग को निर्देश दिए कि वह याचिकाकर्ता करणी सिंह के मामले पर पुनर्विचार करे और नियमानुसार आवश्यक कार्रवाई सुनिश्चित करे। साथ ही, न्यायालय ने यह भी संकेत दिए कि यदि विभाग ने आदेश की अवहेलना की, तो उसके खिलाफ आगे की कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

इस फैसले के बाद लैब असिस्टेंट भर्ती-2018 से जुड़े अन्य अभ्यर्थियों में भी उम्मीद जगी है, जो इसी तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि यह निर्णय भविष्य में विभागीय भर्तियों में मनमाने निर्णयों पर अंकुश लगाने का काम करेगा।