जानें "खेजड़ली मेला" की कहानी, जब राजा के आदेश पर 363 लोगों ने दी थी अपनी बलि
जोधपुर न्यूज़ डेस्क, जोधपुर के खेजड़ली गांव में विश्व प्रसिद्ध शहीदी मेला आज आयोजित हुआ, जिसमें बिश्नोई समाज के लाखों लोगों ने भगवान जांभोजी के दर्शन किए. हरे वृक्ष की रक्षार्थ 363 शहीदों की स्मृति में आयोजित शहीद दिवस पर बिश्नोई समाज के पुरुष और महिलाओं ने मां अमृता देवी को श्रद्धांजलि अर्पित की. विश्व के एकमात्र पर्यावरण आंदोलन और शहीद स्थल पर गुरु जंभेश्वर भगवान के मंदिर में दर्शन करने के लिए देश-विदेश से लोग जोधपुर के खेजड़ली गांव पहुंचे.
1730 में अमृता देवी की अगुआई में दी थी बलिदानी
1730 ईस्वी में खेजड़ली की धरा पर हरे वृक्ष की रक्षा के लिए मां अमृता देवी की अगुवाई में 363 स्त्री-पुरुषों ने बलिदान कर पूरे विश्व में प्रकृति संरक्षण का अनुपम उदाहरण पेश किया था. 294 वर्ष पूर्व इस शहादत की घटना को बिश्नोई समाज हर साल भादवा की दशम को खेजड़ली में एकत्रित होकर सामूहिक यज्ञ करके अपने पूर्वजों को याद करते हैं.
दुनिया का पहला चिपको आंदोलन
विश्व में लूणी का खेजड़ली गांव अपने आप में एक अद्वितीय आंदोलन का साक्षी है. यहां विश्व का प्रथम चिपको आंदोलन हुआ था, जिसने पर्यावरण को नई दिशा दी. पर्यावरण की रक्षार्थ बिश्नोई समाज की एक अशिक्षित महिला अमृता देवी विश्नोई ने उस समय पर्यावरण की अलख जगाई, जिस समय पर्यावरण का अभियान इतना जोर नहीं पकड़ रहा था.
अमृता देवी ने पर्यावरण संरक्षण की पेश की मिसाल
ना उस समय में इतना प्रदूषण भी था. लेकिन आगामी समय में प्रदूषण का अहसास करते हुए और पर्यावरण की रक्षा का अनुभव करते हुए उस अशिक्षित महिला अमृता देवी ने पर्यावरण की जबरदस्त मिसाल पेश की. राज कार्य के लिए लकड़ी काटने के लिए उस समय राज परिवार द्वारा लोगों को भेजा गया.
क्या है खेजड़ली मेले की कहानी
कहा जाता है कि खेजड़ली गांव में बहुतायत संख्या में पेड़ थे. उन पेड़ों को राजपरिवार के कामगार कटाने आए तो उन अशिक्षित महिला ने उन्हें मना किया. फिर भी जब राजपरिवार के लोग नहीं माने तो अमृता देवी पेड़ से चिपक गई. इसके बाद कामगारों ने अमृता देवी को काट डाला. इसके बाद पेड़ बचाने के लिए एक-एक कर 363 स्त्री-पुरुषों ने अपने जीवन का बलिदान दिया था. बाद में जब राजा को इस बात की जानकारी मिली तो उन्होंने पेड़ नहीं काटने का आदेश दिया.
"सिर साठे रुख रहे तो भी सस्ता जान"
उनका यह वाक्य "सिर साठे रुख रहे तो भी सस्ता जान" अर्थात सिर के देने पर भी अगर वृक्ष बचता है. तो भी सौदा सस्ता जानना चाहिए. ऐसा विचार करके अमृता देवी विश्नोई ने वहां पर एक आंदोलन छेड़ा .जिसमें निरंकुश राजतंत्र द्वारा वहां पर 363 नर-नारियों का बलिदान जिसे खेजड़ली का खडाना कहा जाता है.
हवन का धुआं कभी शांत नहीं होता
आज भी खेजड़ली का खड़ाना विश्व में प्रसिद्ध है. जहां पर जबरदस्त मेला लगता है. जो मेला पर्यावरण का संदेश देता है. पर्यावरण की रक्षा के लिए 363 नर-नारियों के बलिदान को जहां श्रद्धांजलि दी जाती है. यहां के हवन का धुंआ भी लगभग कभी शांत नहीं होता है. वहां अग्नि में नारियल के हवन की प्रथा बिश्नोई समाज में प्रचलित है. जहां पर बिश्नोई समाज आस्था के साथ आज भी अमृता देवी को नमन करने आते हैं.
सोने से लदीं बिश्नोई समाज की महिलाएं होती है आकर्षण का केंद्र
वहीं से शुरुआत हुई बिश्नोई समाज की जो पर्यावरण व जीव रक्षा के लिए अपना बलिदान देने को तत्पर व तैयार रहते हैं वहीं इस मेले में सबसे ज्यादा आकर्षण बिश्नोई समाज की महिलाएं रहती है. जो पूरे लाल सुर्ख जोड़े में पूरे गहने पहन कर श्रद्धांजलि देने आती हैं.इस दौरान महिलाएं सोने के जेवर से लदीं होती है. एक-एक महिलाएं 30-35 लाख तक के जेवर पहनीं नजर आती है. हर साल इस मेले में सोने से लदीं महिलाओं की तस्वीरें वायरल होती है.
मान्यताः अमृता देवी सहित तमाम लोग सज-धज तक हुए थे शहीद
कहते हैं कि खेजड़ली के खड़ाना में अमृता देवी और तमाम शहीद लोग सज-धज कर शहीद हुए थे. इसीलिए हर वर्ष बिश्नोई समाज के लोग सफेद कपड़े पुरुषों के लिए और महिलाएं शृंगार कर इस मेले में श्रद्धांजलि देने के लिए जाती है.
वहीं आज आयोजित इस कार्यक्रम में कांग्रेस के नेता सचिन पायलट ने भी कहा था कि इतने सारे गहने मैंने पहले कभी जिंदगी में देखे नहीं.
सचिन पायलट भी मेले में हुए शामिल
शुक्रवार को खेजड़ली मेले के समापन में पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट भी पहुंचे और मंदिर में पूजा अर्चना कर उपस्थित आमजन को संबोधित किया. इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कहा कि बिश्नोई समाज का पुराना इतिहास रहा है, इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण देखने को नहीं मिलता , जहां मूक प्राणी और पर्यावरण की रक्षा के लिए 363 लोगों ने अपना बलिदान दे दिया हो.
'बिश्नोई समाज का त्याग-तपस्या का इतिहास'
पायलट ने आगे कहा कि बिश्नोई समाज का त्याग, तपस्या और बलिदान का इतिहास रहा है और आने वाली पीढ़ी को भी यह संस्कार देने की आवश्यकता है. समाज ने मेहनत करके हर क्षेत्र में अपना एक अलग मुकाम हासिल किया है. उन्होंने मेले में सज धजकर आई महिलाओं की भी प्रशंसा की.
सचिन पायलट ने बिश्नोई समाज की महिलाओं की तारीफ की
सचिन पायलट ने कहा कि आज जब मैं मेले में आ रहा था तो मैंने देखा कि महिलाएं लाल चुनरी उड़कर और इतनी अधिक संख्या में गहने पहनकर आई , जो वास्तव में सुखद दृश्य था. उन्होंने कहा कि समाज के लिए कुछ लोग षड्यंत्र भी रच रहे हैं , उनसे हमें सावधान रहने की आवश्यकता है . अगर आपके समाज के खिलाफ कोई साजिश रचेगा तो मैं हमेशा आपके साथ रहूंगा.
पायलट ने कहा- शिक्षा और संस्कार पर ध्यान दें
पायलट ने समाज के लोगों से आव्हान किया कि वह शिक्षा और संस्कार पर ध्यान दें और अपनी जीवन शैली से युवाओं को संस्कारित करने का प्रयास करें. इस अवसर पर उन्होंने पूर्व मंत्री रामसिंह बिश्नोई को भी याद किया. सचिन पायलट ने कहा कि जब मैं कांग्रेस के सदस्यता ली तो मैं और मेरी माता जी ने राम सिंह बिश्नोई को विशेष रूप से कार्यक्रम में आमंत्रित किया.
