Aapka Rajasthan

Jodhpur राज्य स्तरीय सम्मान सूची से 2 शिक्षकों के नाम हटाए

 
Jodhpur राज्य स्तरीय सम्मान सूची से 2 शिक्षकों के नाम हटाए

जोधपुर न्यूज़ डेस्क, जयपुर के बिड़ला सभागार में गुरुवार को होने वाले शिक्षक सम्मान समारोह में जोधपुर तीन शिक्षकों का चयन किया गया है। इनमें से दो शिक्षकों का नाम चयनित होने के बावजूद बीकानेर निदेशालय ने बुधवार को 16सीसीए की चार्जशीट थमाकर नाम हटा दिए। निदेशालय ने इन्हें आरोप पत्र थमाया है, जिसमें कहा कि इन्होंने गत 14 जुलाई को शिक्षामंत्री मदन दिलावर के जोधपुर दौरे के दौरान सर्किट हाउस में उनके खिलाफ नारेबाजी की थी।निदेशालय ने राप्रावि बागा सूरसागर से कक्षा 1 से 5 के लिए शंभूसिंह मेड़तिया, एमजीजीईएस अंबेडकर कॉलोनी कालीबेरी से कक्षा 6 से 8 के लिए महेश कुमार भाटी व कक्षा 9 से 12वीं के लिए राउमावि बासनी तंबोलिया के नवीन देवड़ा का चयन किया था, लेकिन अब नाम हटा दिए।

दोनों गहलोत व कांग्रेस के करीबी

शिक्षक नेता शंभूसिंह मेड़तिया पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी रहे हैं। कई बार चुनावों में कांग्रेस से टिकट देने की डिमांड भी करते रहे हैं। वहीं नवीन देवड़ा भी कांग्रेस नेताओं के करीब रहे, लेकिन कोई बड़ा ठप्पा नहीं है। कुल मिलाकर दोनों पर कांग्रेस नेताओं के करीब रहने की शिकायत ऊपर तक हुई और उसके बाद दोनों पर कार्रवाई चली।

ये निजीकरण की प्रेमी: मेड़तिया

शिक्षक नेता मेड़तिया ने कहा कि मैंने बच्चों के लिए कई काम किए। शिक्षामंत्री का विरोध किया क्योंकि उन्होंने निजी स्कूलों की तारीफ की। निजीकरण पर सरकार का प्रेम है। वहीं व्याख्याता नवीन देवड़ा ने कहा कि मैं किसी प्रकार के विरोध-प्रदर्शन का हिस्सा नहीं हूं और न होना चाहता हूं। विभागीय कारणों से मेरा नाम हटाया गया है।

शहर सीबीईओ में आई 16 फाइलें, 3 के नाम भेजे राज्य स्तरीय के लिए

जानकारी अनुसार शिक्षा विभाग के शहर मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी कार्यालय यानी सीबीईओ में कक्षा 1 से 5 की 3, 6 से 8 की 3 और करीब 10 फाइलें कक्षा 9 से 12वीं में पढ़ाने वाले शिक्षकों की आई। जिसमें से तीन फाइलें मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय को भेजी गई। इन फाइलों को आगे निदेशालय भेजा गया। इस प्रक्रिया में शिक्षकों द्वारा पढ़ाए जाने वाली कक्षाओं (जैसे 5वीं, 8वीं, 10वीं-12वीं बोर्ड) का रिजल्ट, भामाशाहों से करवाए गए कार्य, स्कूल में नवाचार आदि को देखा जाता है। लेकिन हकीकत ये है कि ये सब एप्रोच का खेल है। जिन्हें पुरस्कार दिया जाता हैं, उन शिक्षकों के नाम को लेकर शिक्षाधिकारियों पर भी खासा दबाव रहता है।