Jodhpur आज भी महिलाएं परिवार से दूर भारत-पाकिस्तान सीमा पर कर रही हैं देश की रक्षा

जोधपुर न्यूज़ डेस्क, जोधपुर रेगिस्तान के रेतीले धोरों पर सर्दी में ठंडी बर्फीली हवा और गर्मी में 50 डिग्री तापमान में र्भी BSF की महिला जवान तैनात रहती है। घर-परिवार के कोसो दूर ये महिलाएं हाथों में मेहंदी की जगह इंसास राइफल थामकर देश सेवा में लगी रहती है। महिला दिवस के मौके पर भारत-पाक सीमा पर तैनात महिला जवानों से बात की। जैसलमेर से 150 किलोमीटर दूर देश के आखिरी छोर पर पाकिस्तान की पोस्ट के पास बिल्कुल सामने नजर आती है। भारत-पाकिस्तान के 60 किलोमीटर के बॉर्डर पर 35 महिला जवान की टुकड़ी दिन-रात गश्त करती है। बॉर्डर पर वॉच टॉवर से पाकिस्तान की बिलाल और तमाचेवाला पोस्ट पर नजर रखती है। पाकिस्तान के पोस्ट पर रात में भी झंडा लगा रहता है। तब भारतीय जवानों को पता चलता है कि दुश्मन की पोस्ट खाली है।
महिला जवान के बच्चे बोलते- 'मम्मी जैसा बनना है'
बातचीत में महिला जवानों ने कहा कि वह गर्व के साथ इस अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर पर ड्यूटी देते है। जब उनके बच्चे बोलते है कि हमें मम्मी जैसा बनना है, तब बहुत ज्यादा गर्व होता है। छुट्टी पर गांव जाते है तब समाज के लोग हमारा उदाहरण देते है। महिला जवानों का कहना है कि परिस्थितियां जो भी हो दुश्मनों का डटकर मुकाबला करेंगे। इस टुकड़ी में हाल में ट्रेनिंग करके पहुंची 22 साल की महिला जवान भी शामिल है। उनका कहना है कि पहली बार घर से दूर है लेकिन देश के लिए यहां बिताए पल हमें गौरवांवित करते हैं। महिला कॉन्स्टेबल सुमन ने बताया कि वह हरियाणा से है और 8 साल से बीएसएफ में है। यहां दूर रिमोट एरिया में जॉब कर रही है। एक बेटा है, वह साथ रहता है। बेटा जब मुझे युनिफॉर्म में देखता है, तब वह कहता है कि मुझे भी मम्मी के जैसे वर्दी पहननी हैं। अक्सर जब बच्चे अपने पिता को देख कर देश सेवा करना चाहते है लेकिन जब मां को देखकर ऐसा बोलते है तो हमें भी गर्व होता है। एमपी की शांति ने बताया कि 12 साल से बीएसएफ में है। अलग-अलग जगह पर ड्यूटी दी और अब यहां रिमोट एरिया में जहां दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आता, वहां हम देश की सीमाओं पर निगरानी रख रहे है। हमारे बच्चे भी हम पर गर्व करते है।
पति से दूर बॉर्डर पर है तैनात
महिला कॉन्स्टेबल बरसाती का कहना है कि वह 12 साल से बीएसएफ में है। जब बीएसएफ की यूनिफॉर्म पहनते है तो गर्व की अनुभूति होती है। इस काबिल है कि देश की सेवा कर सकते है और परिवार व समाज में एक मैसेज दे सकते है कि महिला किसी भी फील्ड में पीछे नहीं है। महिला कॉन्स्टेबल का कहना है कि दो बच्चे है अभी क्वाटर में साथ रहते है। पति गांव में रहते है क्योंकि सिविल जॉब में है। उसने बताया कि कही भी रहे चैलेंज तो रहता ही है। चैलेंज के साथ आगे बढ़ना ही असली जिंदगी हैं।
बच्चों को रहता इंतजार
सीकर की नानची देवी ने बताया कि 10 साल से बीएसएफ में हैं। गर्व की अनुभूति होती है कि मैं एक अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर पर ड्यूटी करती हूं। मेरे बच्चे मेरा इंतजार करते है। उन्हें बहुत प्राउड फील होता है कि उनकी मम्मी बॉर्डर पर ड्यूटी देती है। केवल 22 साल की उम्र, दो दिन पहले बॉर्डर पर आई ट्रेनिंग खत्म करके पहली ड्यूटी देने भारत-पाक बॉर्डर पर पहुंची थी। महिला कॉन्स्टेबल भारती गोदारा 22 साल की है। ट्रेनिंग पास करते ही राजपथ पर दिल्ली परेड में शामिल हुई। दो दिन पहले ही वह तन्नोट से आगे भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर तैनात है। महिला कॉन्स्टेबल अर्चना भी ट्रेनिंग करके ड्यूटी देने पहुंचीं है। उनका कहना है कि पहली बार घर से दूर हूं लेकिन यहां बाकी दीदी है, वह घर जैसा अनुभव करवाती है हम एक परिवार की तरह रहते है।