Jhalawar प्रज्ञा सागर महाराज ने मुनि प्रिय तीर्थ सागर महाराज का केशलोच किया
केश लोचन के अवसर पर सुबह से ही विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। केश लोच स्वाभिमान और स्वावलंबन का प्रतीक है। आचार्य प्रज्ञा सागर महाराज ने कहा कि केश लोच स्वाभिमान और स्वावलंबन का प्रतीक है। बिना केश लोच के कभी भी दीक्षा नहीं हो सकती। जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों ने भी केश लोच करवाया था। उन्होंने कहा कि यह काफी कठिन साधना है। इसीलिए मुनि भी काफी कम होते हैं। संसारी लोग अपने एक-एक बाल को संभाल कर रखते हैं। केश को संवारने के लिए अपना समय व्यर्थ कर देते हैं, लेकिन जैन मुनि स्वयं के केश लोच कर इस कठिन मार्ग पर लगातार आगे बढ़ रहे हैं। शरीर की सुंदरता व्यर्थ है। आचार्य प्रज्ञा सागर महाराज ने कहा कि जिस शरीर की सुंदरता के लिए मनुष्य दिन-रात लगा हुआ है, उसको पता ही नहीं है कि यह शरीर उसका नहीं है। देह और आत्मा दोनों अलग-अलग है। यह देह ही दुखों की जड़ है। आत्मा और देह को एक मानना ही वैराग्य में बाधक है। जो व्यक्ति आत्मा और देह को भिन्न मानता है, वही इस वैराग्य और संयम पद पर टिक सकता है। कार्यक्रम का संचालन यशोवर्धन बाकलीवाल ने किया।