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Jhalawar अब गाय पालकों के लिए आम के साथ-साथ गुठली के भी दाम बढ़े

 
Jhalawar अब गाय पालकों के लिए आम के साथ-साथ गुठली के भी दाम बढ़े
झालावाड़ न्यूज़ डेस्क, झालावाड़ आम के आम, गुठलियों के दाम वाली कहावत गोपालकों के लिए सटीक साबित हो रही है। अब गोपालन के साथ ही गाय के गोबर से जैविक खाद की दो यूनिट लगाने वाले किसानों को सरकार दस हजार रुपए देगी।इस योजना से गोपालन को बढ़ावा मिलेगा। वहीं, देसी खाद भी खेतों की सेहत संवार सकेगी। खेती में रसायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करने एवं जैविक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने ‘गोवर्धन जैविक उर्वरक’ योजना शुरू की है। इसके तहत किसानों को गोवंश से जैविक खाद उत्पादन को प्रेरित करने के लिए कृषि विभाग की ओर से अनुदान दिया जाएगा। कृषि आयुक्तालय जयपुर की ओर से जारी दिशा-निर्देश के अनुसार गोवंश धारी किसानों को गोवर्धन जैविक उर्वरक योजना के तहत वर्मी कपोस्ट इकाई निर्माण करने पर 10 हजार रुपए का अनुदान दिया जाएगा।

योजना का उद्देश्य

गोवर्धन योजना से पर्यावरण, जीव एवं वनस्पति पर रसायन के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकेगा। वहीं, मृदा की सेहत और उर्वरा शक्ति को बढ़ाकर टिकाऊ खेती की जा सकेगी। झालावाड़ जिले को बजट घोषणा के अनुसार 400 इकाई का लक्ष्य आवंटित किया गया है। योजना के अनुसार प्रत्येक ब्लॉक में 50-50 यूनिट लगाने का लक्ष्य राज्य सरकार से दिया गया है।

विभागीय मापदंड

जैविक उर्वरक उत्पादन के लिए विभागीय मापदण्ड अनुसार वर्मी कंपोस्ट इकाई निर्माण पर लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 10 हजार रुपए प्रति इकाई आकार अनुसार यथानुपात अनुदान देय होगा। वर्मी कंपोस्ट इकाई की स्थापना के लिए 20 फीट गुणा 3 फीट आकार की एक बेड की इकाई या 10 फीट गुणा 3 फीट गुणा 1.5.2 फीट आकार की 2 बेड की इकाई पर अनुदान देय होगा।

उपकरण किसान के पास उपलब्ध हो

शेड में स्थानीय उपलब्धता अनुसार टीन आदि की छाया सामग्री उपयोग में ली जाएगी। एक इकाई में कम से कम 8.10 किग्रा केचुएं किसान स्वयं खरीद कर उपयोग करेगा। साथ ही प्रत्येक बेड में ट्राईकोडर्मा, पीएसबी, एजोटोबेक्टर एवं नीम खळी स्वयं के स्तर से उपयोग करेगा। वर्मी बेड तैयार करने के लिए सहायक सामग्री दांतली, पंजा, झारा, पाइप,फावड़ा, परात आदि उपकरण किसान के पास उपलब्ध होने चाहिए। इसके साथ निर्मित वर्मी कंपोस्ट पर विभागीय बोर्ड योजना का विवरण अंकित करना होगा। इकाई का कम से कम 3 वर्ष तक सपूर्ण रख-रखाव किसान की ओर से किया जाएगा।