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Jalore गांवों में शिक्षा का प्रचार कागज पर, धरातल पर शून्य

 
Jalore गांवों में शिक्षा का प्रचार कागज पर, धरातल पर शून्य

जालोर न्यूज़ डेस्क, जालोर शिक्षा को बढ़ावा देने के दावों के विपरीत नेहड़ के सुदूर क्षेत्र में एजुकेशन सिस्टम की पोल खुल रही है। शिक्षा विभाग और सरकार के दावों के विपरीत यहां बच्चे पेड़ की छांव और टीन शेड के नीचे पढऩे को मजबूर है। कुछ तो मूल भवन नहीं होने से आस पास की ढाणियों तक में चल रहे। बच्चे 3 से 5 किमी पैदल सफर तय कर इन कामचलाऊ स्कूलों तक पहुंच रहे हैं। अभावों और विभिन्न परेशानियों के बीच शिक्षक भी परेशानी के बीच अपने फर्ज का निर्वहन कर रहे हैं। दूसरी तरफ विभाग के जिम्मेदार नुमाइंदे तो यहां तक कभी पहुंचेे ही नहीं है। ऐसे में सरकार के शिक्षा के स्तर सुधारने के दावे दम तोड़ रहे हैं। नेहड़ के पांच सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर और व्यवस्थाओं के बारे में जानकारी जुटाई तो विकट हालात सामने आए। सुदूर क्षेत्र पर स्थिति इन स्कूलों में शिक्षा और व्यवस्था की पोल खुलती नजर आई।

राप्रा. विद्यालय वराह की ढाणी साकरिया

वराह की ढाणी साकरीया में स्कूल 2023 से संचालति है, यह विद्यालय भी पांचवी तक है। भवन नहीं होने से बच्चे पेड़ की छांव में ही अध्ययन को मजबूर है। पोषाहार भी पास ही ढाणी में रहने वाले हासम खान के यहां रखते हैं। पानी का प्रबंध नहीं होने से बच्चे घर से बोतलें लेकर आते हैं। अध्यापक श्याम सुंदर का कहना है कि विद्यालय भवन की स्वीकृति हुई, लेकिन काम धीमी गति से चल रहा है। भवन बन जाए और व्यवस्था में सुधार हो तो शैक्षणिक स्तर में सुधार होगा।

आकोडिया संस्कृत विद्यालय

आकोडिय़ा स्थित राजकीय प्राथमिक संस्कृत विद्यालय का छप्पर बिखर चुका। शिक्षक 20 बच्चों को पास की ढाणी में रतनाराम के यहां बच्चों को अध्ययन करवा रहे हैं। वर्तमान में यहां कक्षा प्रथम और द्वितीय के बच्चे आते हैं। अध्यापक संतोष कुमार मीणा का कहना है कि समस्या के बारे में अधिकारियों को लिखित में अवगत करवाया। मिड डे मील भी नहीं बर रहा। भवन नहीं होने से अध्ययन कार्य में खासी दिक्कत होती है। व्यवस्थाओं में सुधार की गुंजाइश है।