Aapka Rajasthan

Jaisalmer किले की घाटियाँ यात्रियों के लिए बनी परेशानी का कारण, चलना मुश्किल

 
Jaisalmer किले की घाटियाँ यात्रियों के लिए बनी परेशानी का कारण, चलना मुश्किल 

जैसलमेर न्यूज़ डेस्क, जैसलमेर  विश्वस्तरीय पहचान बना चुके ऐतिहासिक सोनार किले की घाटियां चिकनी होने के कारण राहगीरों व वाहन चालकों के लिए मुसीबत बनी हुई है। किले की घाटी व सीवरेज की नालियों पर लगे पत्थरों पर आवाजाही करने वाले राहगीरों व वाहन चालकों को असुविधा का सामना करना पड़ रहा है और आए दिन छोटे-मोटे हादसों का शिकार बन रहे हैं। बीते दिनों नगरपरिषद ने घाटियों के फर्श पर लगे पत्थरों की टंचाई का काम हाथ में लिया था लेकिन अभी तक काफी हिस्सों की टंचाई बाकी है। इसके अलावा हाल में होली के मौके पर बड़ी तादाद में इन घाटियों पर गुलाल व रंग बिखरने से वे और ज्यादा फिसलन भरी हो चुकी हैं। यहां से पैदल आवाजाही करने वाले हों या दुपहिया वाहन चालक, सभी को चार घाटियों में समाहित दुर्ग तक का रास्ता बहुत संभल कर पार करना पड़ता है। इसके बावजूद उनके फिसलने की घटनाएं रोजमर्रा का हिस्सा बन चुकी हैं। विशेषकर देशी-विदेशी सैलानियों व इस मार्ग से अनभिज्ञ दुपहिया चालकों की ये घाटियां कड़ी परीक्षा ले रही हैं।

हजारों का निवास दुर्ग में

गौरतबल है कि नगरपरिषद के वार्ड संख्या 16 और 17 के तौर पर पहचाने जाने वाले सोनार किले में करीब तीन हजार लोग स्थाई रूप से निवास करते हैं। वहीं दुर्ग में नगर आराध्य लक्ष्मीनाथ मंदिर, जैन मंदिर, रामदेव मंदिर सहित कई मंदिर होने के कारण बड़ी संख्या में दर्शनार्थियों की आवाजाही दिन भर बनी रहती है। सोनार किले की घाटियों पर टंचाई का काम अधूरा होने के कारण काफी जगहों पर पत्थर चिकने हो रहे हैं। ऐसे में यहां से पैदल या वाहन पर आवाजाही करने वाले लोगों को सावधानी बरतनी पड़ रही है। लंबे समय से किले की घाटियों के पत्थर चिकने होने के कारण वाहन फिसलने या लोगों के गिरकर घायल होने की घटनाएं सामने आ रही है। रही-सही कसर होली व धुलंडी के दिन घाटियों पर गुलाल और रंग बिखरने से पूरी हो गई। इतने दिनों बाद भी पत्थरों पर गुलाल जमा है।

गुणवत्तापूर्ण हो टंचाई कार्य

दुर्ग में घाटियों की टंचाई का कार्य पूरी गुणवत्ता के साथ करवाया जाना आवश्यक है। इसके अभाव में थोड़े समय में ही घाटियां फिर से चिकनी हो जाती हैं। वर्तमान में यहां जमा गुलाल की अच्छे ढंग से सफाई करवाना भी आवश्यक है।  दुर्ग की घाटियों पर से आवाजाही इन दिनों बहुत सावधानी के साथ करनी पड़ रही है। स्थानीय लोग तो फिर भी ध्यान रखते हैं लेकिन सैलानियों को इस राह की ज्यादा जानकारी नहीं होने से वे आए दिन फिसलते हैं।