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Jaisalmer सोनार दुर्ग का एक ही रास्ता फिर बना परेशानी का सबब, पथरा गई आंखें

 
Jaisalmer सोनार दुर्ग का एक ही रास्ता फिर बना परेशानी का सबब, पथरा गई आंखें

जैसलमेर न्यूज़ डेस्क, जैसलमेर हजारों लोगों का पीढिय़ों से निवास स्थान और सालाना लाखों सैलानियों के आगमन का साक्षी सैकड़ों साल प्राचीन सोनार दुर्ग से वैकल्पिक रास्ता निकालने के लिए अब तक उठी सभी आवाजों को केंद्र सरकार के पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग बेदर्दी से ठुकराता रहा है। पुरातत्व विभाग सोनार दुर्ग से आवाजाही का एक या दो नए रास्ते निकालने की गंभीर से गंभीर आवाज या सुझाव को नजरअंदाज करता रहा है। इनमें जिला प्रशासन और सरकारी तंत्र के ही उच्चाधिकारी भी शामिल हैं। 12वीं शताब्दी में त्रिकुट पहाड़ी पर निर्मित जैसलमेर के सोनार दुर्ग में प्रवेश और निकासी के लिए वैकल्पिक राह नहीं निकाला जाना किसी दिन बड़े हादसे का कारण बन सकता है। भूकम्प जैसी किसी प्राकृतिक आपदा या पर्यटन सीजन के चरम पर रहने के दौरान हजारों लोगों के एक साथ दुर्ग में चढऩे और उतने के समय वाली परिस्थितियों में भगदड़ से लेकर किसी का दम घुटने जैसी अप्रिय घटनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। हाल में दिवाली के दूसरे दिन से लेकर छठे-सातवें दिन तक किले पर कमोबेश ऐसे ही हाल रहे और स्थानीय बाशिंदों से लेकर सैलानियों को दुर्ग के अंदर-बाहर होने के नए रास्तों की कमी खली।

दिवाली के दो दिन बाद से लगातार 4-5 दिनों तक हजारों गुजराती और अन्य देशी सैलानियों व सैकड़ों विदेशी पर्यटक सुबह के समय दुर्ग पहुंचे तब उन्हें पैदल जाम में फंस कर रहना पड़ा। उतरने-चढऩे का एक ही मार्ग होने से वे दुर्ग की चार प्रोलों वाले घाटीदार रास्ते में चींटियों की चाल से रेंगने को विवश हो गए। उनमें स्थानीय शहरवासी व दुर्गवासी भी शामिल थे। ऐसे जाम के हालात में अगर किसी कारण से भगदड़ हो जाए या किसी का स्वास्थ्य बिगड़ जाए तो तुरंत निकलने का रास्ता नहीं मिलता। इसी वजह से दुर्ग में निवास करने वाले करीब 3500 लोगों व सैलानियों के बीच वैकल्पिक मार्ग का मसला चर्चा में आ गया।

सोनार दुर्ग पुरातत्व विभाग के संरक्षित स्मारकों में शामिल है। दुर्ग के मौलिक स्वरूप व सौन्दर्य को बनाए रखने के लिए विभाग ने कई पाबंदियां लगा रखी हैं। इसी वजह से सैकड़ों साल प्राचीन चार प्रोलों वाले एकमात्र रास्ते के साथ एक और नया मार्ग बनाने की किसी भी सिफारिश को पुरातत्व विभाग स्वीकार नहीं करता। गौरतलब है कि विभाग के नियम जब बने तब इतनी बड़ी तादाद में दुर्ग में सैलानियों की आवक के बारे नहीं सोचा गया था। यह वह दौर था, जब दुर्ग में भी बमुश्किल हजार लोग निवास करते थे और वहां व्यावसायीकरण नाममात्र का था।

कई साल पहले राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने दुर्ग में करीब साढ़े तीन हजार की आबादी और दर्जनों होटल्स, गेस्ट हाऊस व हजारों पर्यटकों की आवाजाही आदि के मद्देनजर दुर्ग के दक्षिण-पूर्वी हिस्से से 99 सीढिय़ों वाले वैकल्पिक मार्ग की जरूरत जताई थी। इसकी सीढ़ी डेढ़ मीटर चौड़ी और छह इंच मोटाई वाली रखने का सुझाव दिया गया था। कुछ साल पहले जिला प्रशासन ने पुरातत्व विभाग को वैकल्पिक मार्ग निर्माण की स्वीकृति के लिए पत्राचार किया था। जिसे विभाग ने अस्वीकार किया था। बॉम्बे आइआइटी के एक शोध दल ने भी अपनी रिपोर्ट ेमं बताया था कि भूकम्प आने के लिहाज से जैसलमेर का सोनार दुर्ग संवेदनशील क्षेत्र में है। दुर्ग में साल 2001 की 26 जनवरी को आए तेज गति वाले भूकम्प से प्राचीन इमारतों को नुकसान पहुंचा था।