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Jaisalmer पैरों में छाले, सिर पर बारिश, फिर भी मीलों पैदल चलने वाले ये भक्त हैं अनोखे

 
Jaisalmer पैरों में छाले, सिर पर बारिश, फिर भी मीलों पैदल चलने वाले ये भक्त हैं अनोखे

जैसलमेर न्यूज़ डेस्क, आस्था और श्रद्धा, वो भाव ले आती है कि फिर प्राण जाए पर संकल्प न जाए... का मंत्र लेकर भक्त अपने आराध्य पर ऐसे समर्पित होते है कि देखने वालों की आंखें बरस जाए। श्रद्धा के ऐसे हजारों दृश्य देखने हों तो रामदेवरा पहुंच जाइए। सैकड़ों किमी दूर से सफर करके आ रहे श्रद्धालुओं के पांवों में छाले पड़ गए है। बारिश के पानी से भीग-भीगते आने पर एक डग भरना मतलब दर्द को सौ गुुना करना। पर, संकल्प नहीं छोड़ा, हिमत नहीं हारी और पहुंच गए बाबा के दरबार। यहां जैकारा करते ही मानो उनका सारा दर्द काफूर हो गया। लाखों श्रद्धालु मेले में रामसापीर की समाधि के आगे मत्था टेककर रहे है, कोई मांगने आया है तो किसी को विश्वास है जो मांगा मिल गया इसलिए बाबा की कृपा..।

रेगिस्तान में बाबा रामदेव के मंदिर में मेला भाद्रपद की द्वितीया से मेला शुरू हो गया है। श्रद्धालुओं का सैलाब चरम पर है। यहां लग्जरी गाड़ियों और बड़े-बड़े वाहनों से आने वालों के वाहन पार्किंग में लग गए है। दूसरी ओर एक बड़ा रैला उनका आया है जो पैदल यात्री है। गुजरात, महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों के अलावा राजस्थान व आसपास से लाखों भक्त अपनी गांव-ढाणी-शहर से बाबा के नाम की ध्वजा उठाकर पैदल चलकर आए है। श्रावण-भाद्रपद की बारिश, उमस की गर्मी, जंगली रास्ते में जहरीले कीट-जानवरों का खतरा और उस पर पैदल चलने से पांव में पडऩे वाले छालों का दर्द सहते-सहते आए ये श्रद्धालु थके लग रहे हैै लेकिन यहां आकर मुस्कराते हुए।अब कई शहरों से संघ आने लगे है। ये संघ साथ में डीजे, भजन गायक, खाने पीने का सामान और तमाम व्यवस्थाएं लेकर चलते है। इनके आने से गांव-गांव में भक्ति का माहौल और जोरदार बढ़ रहा है।

मजदूरी पेशा ही नहीं धन्नासेठ भी

ऐसा नहीं है कि पैदल आने वाले जातरूओं में केवल मजदूरी पेशा है, इसमें कई धन्नासेठ भी है। साधारण आदमी की तरह जंगलों को रास्ता पार कर पैदल आने वालों को देखकर अंदाजा ही नहीं लगा सकते कि यह अमीर है या गरीब..बाबा की इस पदयात्रा में सारे भक्त केवल भक्त नजर आते है।

पूछ पैदल आने वालों की

बरसों से यहां मंदिर की ओर से एक व्यवस्था तय है कि पैदल जातरूओं को अलग से दर्शन करवाने का इंतजाम होगा। कतार में अलग से जैकारे लगाते दर्शन करते है और इनका दर्द काफूर हो जाता है। यहां कतार में लगने वाले समय को ये लोग अपने लिए विश्राम ही मानते है।  पैदल आने वाले अपने चप्पल-जूते यहीं रामदेवरा में उतारकर जाते है। मेले के बाद यहां इतने चप्पल जूते होते है कि उससे अंदाजा लगता हैै कि पैदल आने वालों की संया लगातार बढ़ रही है।