Jaisalmer जन्मदिन हो या श्रद्धांजलि, स्वैच्छिक रक्तदान का बढ़ रहा चलन
जैसलमेर न्यूज़ डेस्क, जैसलमेर. कभी रक्तदान के नाम से जिस सीमांत जैसलमेर जिले के बाशिंदों के पसीने छूट जाते थे, आज वे मोबाइल पर एक संदेश या कॉल मात्र पर स्वैच्छिक रक्तदान करने जिला मुयालय स्थित जवाहिर चिकित्सालय के रक्त कोष यानी ब्लड बैंक पहुंच जाते हैं। रक्तदान के प्रति जागरूकता बढऩे के साथ ही न केवल पुुरुष बल्कि महिलाएं व बालिकाएं भी इसके लिए आगे आ रही हैं। कई लोग तो गोपनीय ढंग से रक्तदान का पुनीत कार्य नियमित रूप से कर रहे हैं। यह विगत वर्षों में सरहदी जैसलमेर जिले में रक्तदान को लेकर जज्बे का ही कमाल है कि जिस राजकीय जवाहिर चिकित्सालय में हर समय रक्त का टोटा नजर आता था, वहीं अब 100 से 200 यूनिट या इससे भी ज्यादा रक्त जमा रहता है।
सरकारी-गैर सरकारी स्तर पर सतत प्रयासों और शिक्षा व सोशल मीडिया के प्रचार-प्रसार ने जैसलमेर जैसे पिछड़े माने जाने वाले इलाके में भी रक्तदान को लेकर पूर्व की भ्रांतियों का निर्मूलन कर दिया है। सुखद बात यह है कि सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों पर स्वैच्छिक रक्तदाताओं के ग्रुप बने हुए हैं और उनमें एक मैसेज मात्र से ही रक्तदाता तुरंत अस्पताल पहुंच जाते हैं। गौरतलब है कि जवाहिर चिकित्सालय में रक्त बैंक की स्थापना वर्ष 1996 में हुई थी। उस समय मरीजों के लिए रक्त की व्यवस्था एक चुनौतीपूर्ण कार्य हुआ करता था, लेकिन देखते ही देखते परिस्थितियों में व्यापक स्तर पर बदलाव आया है।
इन तथ्यों की रखें जानकारी
रक्तदान के लिए दाता पूरी तरह से स्वस्थ तथा वजन 45 किलो से अधिक होना चाहिए।
हिमोग्लोबिन की मात्रा 12.5 ग्राम से अधिक होनी जरूरी है।
इंसान के शरीर में 5 लीटर खून होता है। इसमें से 300 एमएल ही रक्त लिया जाता है।
3 माह में दोबारा रक्तदान किया जा सकता है।
अवश्य करें रक्तदान
रक्तदान से शरीर पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ता है बल्कि दिल के दौरे और स्ट्रोक का खतरा कम होता है। रक्तदान करने से रक्तचाप भी कम होता है। रक्तदान से लिपिड प्रोफाइल में सुधार आता है और अन्य भी कई शारीरिक लाभ होते हैं। ऐसा करने से तनाव कम होता है और भावनात्मक स्वास्थ्य में सुधार होता है। ऐसे में हमारी ओर से ज्यादा से ज्यादा लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
अस्पताल में थैलेसीमिया से ग्रसित करीब 25 बच्चों को वर्ष में 24 या इससे अधिक बार रक्त चढ़ाया जाता है। इस रोग से ग्रस्त मरीज के शरीर में विकृत रक्त बनता है। ऐसे में उन्हें महीने में 2 से 3 बार रक्त चढ़ाना जरूरी होता है।
इन मरीजों को यह सुविधा दी गई है कि इसके बदले में रक्त भी नहीं लिया जाता। जिला अस्पताल में हर माह 90 से 100 यूनिट रक्त की जरूरत रहती है।
कई बार हुए हादसों, प्रसव, ऑपरेशन, सांप के काटने तथा थैलेसीमिया रोग की स्थिति में मरीज को काफी मात्रा में रक्त की आवश्यकता रहती है, लेकिन रक्त की कमी अब नहीं रही है। कई रक्तदाता स्वयं तीन माह होते ही अस्पताल पहुंच जाते हैं।