Jaisalmer स्वर्णनगरी के मुख्य मार्गों पर खुल रहा है अव्यवस्था का पिटारा
जैसलमेर न्यूज़ डेस्क, जैसलमेर सदियों पुराने ऐतिहासिक और कलात्मक जैसलमेर नगर के सौन्दर्य में बढ़ोतरी करने के नगरपरिषद सहित प्रशासन के दावों के विपरीत यहां मुख्य चौराहों की दुर्दशा से कुरूपता में इजाफा हो रहा है। हनुमान चौराहा से लेकर गड़ीसर चौराहा तक के सर्किल की पत्थर से बनी रैलिंग से लेकर थम्बलियां क्षतिग्रस्त पड़ी हैं। उनमें लगाए फव्वारे ठप हैं और आसपास का प्लेटफार्म तक बैरंग हो चुका है लेकिन इन चौराहों की सुध लेने की फुर्सत किसी के पास नहीं है। पत्थर की रैलिंग व थम्बलियों की रिपेयरिंग का काम कितनी ही बार करवाया जा चुका है लेकिन उनके टिकाऊपन की तरफ कतई ध्यान नहीं दिया जाता और कुछ ही दिनों बाद फिर से वे टूट कर बिखर जाती है। इन पर होने वाला खर्च फिजूलखर्ची की मिसाल बन गया है। शहर में सैलानियों के आगमन का सिलसिला शुरू हो गया है, उसके बावजूद चौराहों की सार-सम्भाल करने की दिशा में नगरपरिषद उदासीन है।
योजनाएं कागजों से बाहर नहीं निकली
जैसलमेर के सबसे प्रमुख हनुमान चौराहा को आमूल रूप से परिवर्तित कर उसे सुंदर बनाने के लिए मौखिक जमाखर्च नगरपरिषद की तरफ से पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से किया जा रहा है।
जरूरत से ज्यादा बड़े घेरे को सुधार कर इसे शहर में आने वाले लाखों सैलानियों के सामने सुंदरता की एक मिसाल के तौर पर विकसित करने की योजनाएं भी कई बार बनाई गई लेकिन सब कुछ हवा-हवाई साबित हुआ है।
इस चौराहे की रैलिंग और थम्बलियां वर्ष पर्यंत टूटती रहती है। नगरपरिषद ने अभी तक इसके स्वरूप को स्थायी बनाने की डिजाइन से विकसित करने का बीड़ा नहीं उठाया है और न ही प्रशासन उसके माध्यम से यह काम करवाने में सफल हुआ।
गड़ीसर सरोवर के ठीक सामने बने चौराहे की रामकहानी भी ऐसी ही है। वहां की रैलिंग व थम्बलियां भी जगह-जगह टूटी हुई है।
इनके अलावा पंचायत समिति सम कार्यालय चौराहा, एसबीआई चौराहा, एयरफोर्स चौराहा, स्वर्णनगरी चौराहा, गीता आश्रम चौराहा आदि पर बने सर्किलों को सुंदर व टिकाऊ बनाने की जहमत तक नहीं उठाई गई है।
प्रत्येक मरु महोत्सव या किन्हीं खास मौकों पर इन चौराहों को कामचलाऊ अंदाज में संवार दिया जाता है। जो चार दिन की चांदनी से ज्यादा साबित नहीं होता।
अब नहीं तो कब?
जैसलमेर में पर्यटन सीजन का आगाज जुलाई माह से हो चुका है। पिछले एक-दो सप्ताहों के दौरान देशी के साथ विदेशी सैलानी भी आना शुरू हो चुके हैं। आगामी अगस्त-सितम्बर माह में यह सिलसिला और तेजी पकड़ेगा। इन सैलानियों की आवाजाही के दौरान ये सभी चौराहें निश्चित तौर पर उनकी आंखों के आगे आते हैं। शहर की बुरी तस्वीर वे अपनी जेहन में ले जाते हैं। कायदे से अप्रेल से लेकर जून तक की अवधि में चौराहों को संवारने का काम करवा लिया जाना चाहिए था लेकिन जिम्मेदारों को लगता है, शहर के सौन्दर्यीकरण से कोई मतलब नहीं रह गया है। इसी तरह से हनुमान चौराहा सहित बालिका विद्यालय के आगे विगत वर्षों के दौरान यूआईटी की तरफ से बनाए गए रीडिंग कॉर्नर भी धूल फांक रहे हैं। उन पर खर्च की गई लाखों रुपए की राशि एक तरह से जाया हो गई।
