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आखिर पुष्कर के सावित्री देवी मंदिर में पुरुषों का जान क्यों है वर्जित ? 2 मिनट के वीडियो में जाने सदियों पुरानी पौराणिक कहानी

आखिर पुष्कर के सावित्री देवी मंदिर में पुरुषों का जान क्यों है वर्जित ? 2 मिनट के वीडियो में जाने सदियों पुरानी पौराणिक कहानी
 
आखिर पुष्कर के सावित्री देवी मंदिर में पुरुषों का जान क्यों है वर्जित ? 2 मिनट के वीडियो में जाने सदियों पुरानी पौराणिक कहानी

राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित पुष्कर तीर्थ धार्मिक दृष्टि से विश्व प्रसिद्ध है। यह स्थान न केवल ब्रह्मा जी के एकमात्र मंदिर के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां स्थित सावित्री माता मंदिर भी भक्तों के लिए विशेष आस्था का केंद्र है। यह मंदिर पुष्कर झील के पास एक पहाड़ी पर स्थित है और यहां पहुंचने के लिए 200 से अधिक सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। लेकिन इस मंदिर से जुड़ी एक मान्यता है जो इसे और भी खास बनाती है- कुछ अवसरों पर यहां पुरुषों का प्रवेश वर्जित है। अब सवाल यह उठता है कि सावित्री माता मंदिर में पुरुषों का प्रवेश वर्जित क्यों है? क्या इसके पीछे कोई सामाजिक कारण है या फिर यह सिर्फ धार्मिक परंपरा है? आइए इस रहस्य से पर्दा उठाते हैं

सावित्री माता कौन थीं?
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार सावित्री माता भगवान ब्रह्मा की पत्नी थीं। सृष्टि की रचना के समय जब ब्रह्मा जी को यज्ञ करने के लिए पत्नी की आवश्यकता महसूस हुई तो उन्होंने सावित्री जी को बुलाया। लेकिन किन्हीं कारणों से वह समय पर नहीं पहुंच पाईं। यज्ञ का समय बीत रहा था, इसलिए ब्रह्मा जी ने गायत्री नाम की कन्या से विवाह कर यज्ञ पूर्ण किया। जब सावित्री माता पहुंचीं और उन्होंने देखा कि ब्रह्मा जी ने किसी दूसरी स्त्री से विवाह कर लिया है, तो वे बहुत क्रोधित हुईं। उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि उनकी पूजा केवल पुष्कर में ही होगी। इसके बाद वे इस पहाड़ी पर आकर तपस्या में लीन हो गईं। आज उनका मंदिर वहीं स्थित है।

पुरुषों का प्रवेश वर्जित क्यों है?
सावित्री माता मंदिर में पुरुषों का प्रवेश सामान्यतः वर्जित नहीं है, लेकिन कुछ विशेष अवसरों जैसे सावित्री अमावस्या, नवरात्रि या विशेष पूजा के दिनों में मंदिर में पुरुषों का प्रवेश वर्जित माना जाता है। इस परंपरा के पीछे धार्मिक मान्यता यह है कि इन विशेष अवसरों पर सावित्री माता की शक्ति अत्यधिक जागृत होती है। यह वह समय होता है जब केवल महिलाएं देवी से सीधे संवाद करती हैं और अपने परिवार और अपने पति की सुरक्षा, समृद्धि और लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इन समयों में मंदिर में पुरुषों के प्रवेश से देवी क्रोधित हो सकती हैं, क्योंकि सावित्री जी के ब्रह्मा जी से क्रोधित होने की घटना इसी स्थान से जुड़ी हुई है। इसलिए परंपराओं और लोक मान्यताओं के अनुसार इन अवसरों पर पुरुषों को मंदिर परिसर से दूर रखा जाता है।

क्या यह परंपरा आज भी उतनी ही प्रभावी है?
समय के साथ कई परंपराएं बदल गई हैं, लेकिन सावित्री माता मंदिर में पुरुषों के प्रवेश पर रोक लगाने की यह परंपरा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में खास तौर पर महिलाओं द्वारा बड़ी श्रद्धा के साथ निभाई जाती है। मंदिर ट्रस्ट के अनुसार, विशेष तिथियों पर केवल महिलाओं को ही पूजा समारोह में भाग लेने की अनुमति है। वे देवी के सामने दीप जलाती हैं, भोग लगाती हैं और पूरे परिवार के सुखी जीवन की प्रार्थना करती हैं। कुछ लोग इस परंपरा को महिला सशक्तिकरण का प्रतीक भी मानते हैं। जहां अधिकांश धार्मिक स्थलों पर पुरुषों का वर्चस्व है, वहीं सावित्री माता मंदिर जैसे स्थान महिलाओं को पूजा में प्राथमिकता देकर उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता का एहसास कराते हैं।

क्या यह भेदभाव है या आस्था का प्रतीक?
हालांकि, कुछ आधुनिक विचारधाराएं इस परंपरा को लैंगिक भेदभाव के रूप में देखती हैं। उनका कहना है कि धर्म सभी का है और किसी भी व्यक्ति को उसके लिंग के आधार पर किसी भी धार्मिक स्थल पर जाने से नहीं रोका जाना चाहिए। लेकिन दूसरी ओर, भक्त इसे केवल आस्था और परंपरा के मामले के रूप में देखते हैं। उनका मानना है कि ये प्रतिबंध स्थायी नहीं हैं, बल्कि ये सिर्फ विशेष तिथियों और धार्मिक आयोजनों तक ही सीमित हैं। सामान्य दिनों में कोई भी भक्त सावित्री माता के दर्शन कर सकता है, चाहे वो पुरुष हो या महिला।

निष्कर्ष
सावित्री माता मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह प्राचीन परंपराओं, महिलाओं के सम्मान और आस्था का प्रतीक है। अगर हम धार्मिक भावनाओं और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के संदर्भ में पुरुषों के प्रवेश पर प्रतिबंध को देखें तो यह किसी के खिलाफ नहीं बल्कि एक विशेष परिस्थिति और कहानी के प्रति सम्मान है। पुष्कर का यह मंदिर आज भी हजारों भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है और यहां का सन्नाटा, हवा और पहाड़ी पर माता की मौजूदगी हर किसी को एक अनोखा आध्यात्मिक अनुभव देती है। चाहे आप भक्त हों, इतिहास प्रेमी हों या संस्कृति में रुचि रखने वाले, सावित्री माता मंदिर आपके लिए निश्चित रूप से एक यादगार जगह होगी।