चंबल नदी को क्यों कहा जाता है शापित? जानिए इस रहस्यमयी नदी का धार्मिक इतिहास और उससे जुड़ी पौराणिक कथाएं

चंबल मध्य भारत की प्रमुख नदी है, जो मध्य प्रदेश में विंध्य पर्वतमाला से महू के जानापाव से निकलकर राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्यों से होकर बहती है। यमुना की इस सहायक नदी की लंबाई 960 किलोमीटर है, जो उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के मुरादगंज (भरेह के पास पचनदा) में यमुना नदी में मिलती है। इस नदी की 11 सहायक नदियाँ भी हैं जिन्हें काली, पार्वती, बनास, कुरई, बामनी, शिप्रा आदि नामों से जाना जाता है। इस नदी पर कोटा बैराज, राणा प्रताप सागर बाँध और गांधी सागर बाँध बनाए गए हैं, जो क्षेत्र में सिंचाई आदि की ज़रूरतों को पूरा करते हैं।
किंवदंतियों और धार्मिक कहानियों के अनुसार चंबल नदी की उत्पत्ति जानवरों के खून से हुई है। महाकाव्य महाभारत में इसका उल्लेख चर्मण्यवती के रूप में किया गया है। इसके अनुसार प्राचीन काल में एक राजा रंतिदेव थे जिन्होंने यज्ञ के लिए हजारों जानवरों की बलि दी और उनका खून बहाया। जानवरों की खाल और खून ने एक नदी का रूप ले लिया। इसलिए इसे अशुद्ध माना जाता है और गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा कावेरी जैसी नदियों की तरह इसकी पूजा नहीं की जाती है।
एक अन्य कथा के अनुसार द्रौपदी ने इस नदी को श्राप दिया था। कहा जाता है कि महाभारत काल में चंबल के किनारे कौरवों और पांडवों के बीच पासे का खेल खेला गया था। इसमें पांडव द्रौपदी को दुर्योधन के हाथों हार गए थे। इस घटना से आहत होकर द्रौपदी ने चंबल की पूजा से दूर रहने का श्राप दिया था। जिसके कारण लोग इसका उपयोग नहीं करते थे।
यह भी किवदंती है कि इस नदी का पानी पीने से लोग आक्रामक हो जाते हैं। किवदंती के अनुसार एक बार अपने माता-पिता को कांवड़ लेकर तीर्थ यात्रा पर ले जा रहे श्रवण कुमार ने चंबल का पानी पी लिया तो वे भी आक्रामक हो गए और अपने माता-पिता पर गुस्सा होकर उन्हें वहीं छोड़ दिया। हालांकि, थोड़ा आगे जाने पर उन्हें अहसास हुआ और उन्होंने माफी मांगी और उन्हें साथ ले गए।