कौन थे राजस्थान के भागीरथ गंगासिंह जिन्होंने कराया 'गंगानहर' का निर्माण ? वीडियो में जानिए इंदिरा गांधी नहर बनने की कहानी
राजस्थान का रेगिस्तान, जिसे कभी केवल रेत के समंदर के रूप में जाना जाता था, आज हरियाली की मिसाल बन चुका है। इस चमत्कार के पीछे है एक दूरदर्शी सोच, दशकों की मेहनत और एक ऐतिहासिक सिंचाई परियोजना – गंगानहर, जिसे आज हम इंदिरा गांधी नहर के नाम से जानते हैं। यह नहर न केवल राजस्थान बल्कि भारत की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजनाओं में से एक है, जिसने सूखे और बंजर माने जाने वाले थार क्षेत्र को उपजाऊ बना दिया।
गंगानहर की अवधारणा: एक राजा की दूरदर्शिता
गंगानहर का विचार सबसे पहले बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने प्रस्तुत किया था। ब्रिटिश काल के इस प्रगतिशील शासक ने देखा कि अगर सतलुज नदी का पानी पश्चिमी राजस्थान की ओर मोड़ा जाए, तो यह क्षेत्र उपजाऊ बन सकता है। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सामने यह विचार रखा और काफी प्रयासों के बाद इसे मंजूरी मिली।वर्ष 1927 में गंगानहर परियोजना की शुरुआत हुई, जो पंजाब के फिरोजपुर से शुरू होकर बीकानेर तक आती थी। यह एक ऐतिहासिक कदम था जिसने राजस्थान के पश्चिमी भाग में हरियाली की नींव रखी। नहर का नाम महाराजा गंगा सिंह के नाम पर गंगानहर रखा गया।
स्वतंत्र भारत में परियोजना का विस्तार
आजादी के बाद भारत सरकार ने इस परियोजना के महत्व को पहचाना और इसका बड़ा रूप देने की योजना बनाई। 1958 में इस सिंचाई योजना का विस्तार करते हुए इसे एक बहु-राज्यीय परियोजना के रूप में विकसित किया गया, जिसे शुरुआत में राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट कहा गया। यह परियोजना न केवल पंजाब, बल्कि राजस्थान के गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, जोधपुर, नागौर, चूरू और जैसलमेर जिलों तक सिंचाई का पानी पहुंचाने के लिए बनाई गई थी।
इंदिरा गांधी नहर: नाम परिवर्तन और नया युग
वर्ष 1984 में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, उनकी स्मृति में राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट का नाम बदलकर इंदिरा गांधी नहर परियोजना (IGNP) कर दिया गया। यह नाम बदलाव केवल प्रतीकात्मक नहीं था, बल्कि यह परियोजना अब और अधिक विस्तार और तकनीकी उन्नति की दिशा में आगे बढ़ चुकी थी।इंदिरा गांधी नहर का पानी सतलुज और ब्यास नदियों से हरिके बैराज (पंजाब) से लिया जाता है और फिर यह राजस्थान की सीमा में प्रवेश करता है। कुल लंबाई लगभग 649 किलोमीटर है और इसकी शाखाएं मिलाकर यह नहर नेटवर्क हजारों किलोमीटर तक फैला हुआ है।
क्या बदला इस परियोजना से?
1. कृषि में क्रांति
जहां पहले केवल बाजरे और जोहड़ (रेत के टीले) दिखते थे, वहां अब गेहूं, सरसों, कपास और चारा फसलें लहराती हैं। गंगानगर और हनुमानगढ़ को अब "राजस्थान का अन्न भंडार" कहा जाता है।
2. जल संकट में राहत
इंदिरा गांधी नहर ने पीने के पानी की समस्या को भी काफी हद तक कम किया। बीकानेर, जोधपुर जैसे शहरों में पीने का पानी अब इसी नहर से आता है।
3. रोजगार और आर्थिक विकास
नहर के कारण कृषि आधारित उद्योग, डेयरी और ग्रामीण रोजगार के नए अवसर खुले हैं। गांवों में पलायन रुका और कई गांव समृद्धि की ओर बढ़े।
4. पर्यावरणीय बदलाव
रेगिस्तान में हरियाली बढ़ने से स्थानीय जलवायु में भी सुधार हुआ है। वनस्पति और जैव विविधता में वृद्धि दर्ज की गई है।
चुनौतियां भी आईं सामने
हालांकि, इतनी बड़ी परियोजना के साथ चुनौतियां भी आईं।
रेत भराव: रेगिस्तान में बहने के कारण नहरों में बार-बार रेत भर जाती है, जिससे जल प्रवाह बाधित होता है।
पानी की चोरी और लीकेज: ग्रामीण क्षेत्रों में नहरों से पानी निकालने की अनधिकृत गतिविधियों ने आपूर्ति पर असर डाला।
मिट्टी की लवणता: अत्यधिक सिंचाई के कारण कुछ क्षेत्रों में मिट्टी की उर्वरता कम होने लगी।
गंगानहर से शुरू होकर इंदिरा गांधी नहर तक का सफर केवल एक सिंचाई परियोजना का नहीं, बल्कि राजस्थान के भाग्य परिवर्तन की गाथा है। यह नहर केवल पानी नहीं, आशा, हरियाली और जीवन लेकर आई। महाराजा गंगा सिंह की दूरदृष्टि और भारत सरकार के प्रयासों का यह परिणाम है कि आज रेगिस्तान में फसलें लहलहा रही हैं।इंदिरा गांधी नहर ने यह साबित कर दिया कि यदि संकल्प दृढ़ हो और योजना सही दिशा में हो, तो रेगिस्तान को भी उपजाऊ भूमि में बदला जा सकता है।
