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जहां रुका था गणेशजी का रथ वहीं बन गया भव्य मंदिर, 3 मिनट के शानदार वीडियो में जाने मोती डूंगरी मंदिर से जुड़ी दिलचस्प कथा

जहां रुका था गणेशजी का रथ वहीं बन गया भव्य मंदिर, 3 मिनट के शानदार वीडियो में जाने मोती डूंगरी मंदिर से जुड़ी दिलचस्प कथा
 
जहां रुका था गणेशजी का रथ वहीं बन गया भव्य मंदिर, 3 मिनट के शानदार वीडियो में जाने मोती डूंगरी मंदिर से जुड़ी दिलचस्प कथा

जयपुर की रॉयल और आध्यात्मिक विरासत में अगर कोई एक स्थान सबसे ज्यादा लोकप्रिय और श्रद्धेय माना जाता है, तो वह है मोती डूंगरी गणेश मंदिर। शहर के बीचोंबीच स्थित इस भव्य मंदिर की पहचान सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बेहद खास है।लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस मंदिर के निर्माण के पीछे एक अनोखी कहानी छिपी है, जिसे सुनकर हर श्रद्धालु हैरान रह जाता है?


राजस्थान की शाही रियासत और गणेश भक्ति का अद्भुत संगम
मोती डूंगरी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह उस समय के जयपुर राजघराने की गणेश भक्ति और स्थापत्य कला का प्रतीक भी है। इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में जयपुर के तत्कालीन महाराजा मदन सिंह ने करवाया था। लेकिन गणेश जी की यह मूर्ति जयपुर की नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के एक गांव से लाई गई थी।कहा जाता है कि जब यह मूर्ति जयपुर लाई जा रही थी, तो एक रथ पर उसे रखकर पूरे सम्मान और भक्ति के साथ यात्रा करवाई जा रही थी। इस मूर्ति को जहां-जहां विश्राम के लिए उतारा जाता, वहां गणेश भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ती।लेकिन निर्माण स्थान का चयन एक अनोखे तरीके से हुआ।

जहां रथ रुका, वहीं बन गया मंदिर
लोककथाओं के अनुसार, जब जयपुर की ओर गणेश जी की मूर्ति का रथ आ रहा था, तभी अचानक वह रथ मोती डूंगरी की पहाड़ी पर आकर रुक गया। न तो बैल आगे बढ़े, न ही रथ टस से मस हुआ। इसे दैवी संकेत मानकर महाराजा ने वहीं मंदिर बनवाने का निर्णय लिया। उन्होंने इस स्थान को भगवान गणेश की इच्छा का स्थल मानते हुए तुरंत निर्माण कार्य आरंभ करवाया।यह भी कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण केवल चार महीने में पूरा किया गया था, जो उस समय की निर्माण कला और शाही संसाधनों की मिसाल थी।

स्कॉटिश शैली और भारतीय आस्था का संगम
मोती डूंगरी मंदिर की स्थापत्य शैली भी इसे औरों से अलग बनाती है। इसे स्कॉटिश किले की शैली में बनाया गया है, जो अपने गुंबदों, नक्काशीदार छतों और संगमरमर की बारीक कारीगरी के कारण दूर से ही ध्यान आकर्षित करता है। यह एक दुर्लभ उदाहरण है जहां विदेशी स्थापत्य और भारतीय अध्यात्म का अद्भुत मेल देखने को मिलता है।

हर बुधवार बनता है आस्था का महासागर
जयपुर में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होगा जो गणपति बप्पा से कोई मन्नत लिए बिना मोती डूंगरी मंदिर न गया हो। खासकर बुधवार को यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। शादी, नया कारोबार, परीक्षा, वाहन खरीद या किसी भी नए शुभ कार्य से पहले यहां आकर लोग गणेश जी का आशीर्वाद लेना अनिवार्य समझते हैं।

देशभर के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र
मोती डूंगरी मंदिर न सिर्फ जयपुर, बल्कि पूरे भारत के भक्तों के लिए एक बड़ा आस्था स्थल बन चुका है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं, खासकर गणेश चतुर्थी और सावन महीने में यहां विशेष पूजा और आयोजन होते हैं। गणपति जी की यह मूर्ति एक खास बात के लिए भी प्रसिद्ध है—यह भगवान गणेश की दाईं सूंड वाली दुर्लभ प्रतिमाओं में से एक है, जिसे अत्यंत शुभ और चमत्कारी माना जाता है।