Aapka Rajasthan

बीजेपी में 17 जिलाध्यक्ष के चुनाव में कहां फंसा पेंच, Video में देखें बड़ी खबर

 
बीजेपी में 17 जिलाध्यक्ष के चुनाव में कहां फंसा पेंच, Video में देखें बड़ी खबर 

जयपुर न्यूज़ डेस्क, बीजेपी में संगठन चुनाव चल रहे हैं। राजस्थान शुरू से ही पार्टी संगठन चुनाव में पीछे चल रहा है। पहले बूथ, फिर मंडल अध्यक्षों के चुनाव देरी से हुए। इस देरी ने जिलाध्यक्ष के चुनाव में भी पीछा नहीं छोड़ा। बीजेपी में संगठनात्मक दृष्टि से 44 जिले हैं। इनमें से 27 जिलों में जिलाध्यक्ष का निर्वाचन हो चुका है।17 जिलों में जिलाध्यक्ष के निर्वाचन में पेंच फंसा हुआ है। ये जिले बीजेपी के दिग्गज नेताओं के गृह या निर्वाचन क्षेत्र वाले हैं। इन जिलों में बड़े नेताओं के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और स्थानीय नेताओं की खींचतान की वजह से जिलाध्यक्ष का निर्वाचन अटक गया है।

दिग्गज नेताओं के क्षेत्र में अटका चुनाव

बीजेपी जहां जिलाध्यक्ष का निर्वाचन नहीं करवा पाई है, उनमें जयपुर शहर भी शामिल है। जयपुर शहर सीएम भजनलाल शर्मा और डिप्टी सीएम दीया कुमारी का निर्वाचन क्षेत्र है। इसी तरह से जयपुर देहात उत्तर जिला पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया का क्षेत्र है।चित्तौड़गढ़ और प्रतापगढ़ जिले पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी का संसदीय क्षेत्र है। झालावाड़ जिला पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का निर्वाचन और धौलपुर उनका गृह क्षेत्र है। यहां भी जिलाध्यक्ष का निर्वाचन अटका है।किरोड़ी लाल मीणा के निर्वाचन क्षेत्र सवाई माधोपुर और गृह क्षेत्र दौसा में भी पार्टी जिलाध्यक्ष नहीं बना पाई है। बीकानेर शहर केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल का संसदीय क्षेत्र है।

पढ़िए, आखिर जिलाध्यक्ष के निर्वाचन में कहां फंसा पेंच...

1. जयपुर शहर: विधायकों की नहीं बनी सहमति

जयपुर शहर में अभी राघव शर्मा जिलाध्यक्ष हैं। यहां से इस बार नगर निगम ग्रेटर डिप्टी मेयर पुनीत कर्नावट का जिलाध्यक्ष के पद पर निर्वाचन तय माना जा रहा था। लेकिन, स्थानीय विधायकों में इनके नाम को लेकर सहमति नहीं बन पाई। पुनीत कर्नावट को सीएम भजनलाल शर्मा का करीबी माना जाता है। लेकिन, विधायक कालीचरण सराफ व अन्य विधायकों की उनके नाम पर सहमति नहीं थी।दूसरा नाम विमल अग्रवाल का है। इनके नाम को लेकर हवामहल विधायक बालमुकुंद आचार्य सहमत नहीं हैं। विमल अग्रवाल हवामहल विधानसभा क्षेत्र से ही पार्षद भी हैं।तीसरा नाम राजेश तांबी का है। इनके नाम को लेकर भी सभी में सहमति नहीं बना पा रही है। इस वजह से जयपुर शहर जिलाध्यक्ष का पेंच फंसा हुआ है।

2. जयपुर देहात उत्तर: स्थानीय नेता सहमत नहीं
जयपुर देहात उत्तर से श्याम शर्मा जिलाध्यक्ष हैं। इन्हें फिर से रिपीट करने की चर्चा चल रही है। इनके नाम पर चौमूं से बीजेपी प्रत्याशी रहे रामलाल शर्मा सहमत नहीं हैं।

3. दौसा: मंडल अध्यक्ष ही पूरे नहीं बने

दौसा जिले में पार्टी के लिए जिलाध्यक्ष से पहले मंडल अध्यक्ष बनाना चुनौती बना हुआ है। दौसा जिले में 27 मंडल अध्यक्ष में से पार्टी केवल 11 ही बना पाई है। पार्टी संविधान के अनुसार आधे से ज्यादा मंडल अध्यक्ष बनने पर ही पार्टी जिलाध्यक्ष का चुनाव करवा सकती है। इसके कारण दौसा में जिलाध्यक्ष का निर्वाचन फंसा हुआ है।दौसा विधानसभा सीट और महवा विधानसभा क्षेत्र में नेताओं की आपसी खींचतान के चलते एक भी मंडल अध्यक्ष का निर्वाचन नहीं हो सका है। बांदीकुई विधानसभा क्षेत्र में पार्टी केवल शहर मंडल अध्यक्ष का चुनाव करवा पाई है।दौसा जिला मंत्री किरोड़ीलाल मीणा का गृह क्षेत्र है। यहां पूर्व विधायक शंकर शर्मा, उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी रहे जगमोहन मीणा और अन्य स्थानीय नेताओं की खींचतान में जिलाध्यक्ष का पेंच फंस गया है।

4. झालावाड़: नए चेहरे की तलाश बनी चुनौती

झालावाड़ में वसुंधरा राजे के करीबी संजय जैन 'ताऊ' पिछले 9 साल से जिलाध्यक्ष हैं। अब पार्टी उनकी जगह किसी अन्य का नाम तय नहीं कर पा रही है। पार्टी के संविधान के अनुसार कोई व्यक्ति दो से अधिक कार्यकाल तक इस पद पर नहीं रह सकता। ऐसे में अब नया चेहरा तलाशना पार्टी के लिए चुनौती बना हुआ है।

5. बारां: पार्टी की बैठक तक नहीं हुई

बारां में करीब 11 महीने पहले ही भाजपा ने जिलाध्यक्ष पद पर नंदलाल सुमन को नियुक्त किया था। नंदलाल सुमन वसुंधरा राजे गुट के हैं। बारां झालावाड़ लोकसभा क्षेत्र में आता है। ऐसे में यहां भी भाजपा में झालावाड़ जिले जैसी ही स्थिति है। यहां अब तक जिलाध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर पार्टी की बैठक भी नहीं हुई है।

6. सवाई माधोपुर: मंडल अध्यक्ष नहीं बनने से अटका निर्वाचन

इस जिले में स्थानीय नेताओं की राय और आपसी असहमति के चलते अभी तक पूरे मंडल अध्यक्षों की घोषणा नहीं हो पाई है। इसकी वजह से जिलाध्यक्ष की घोषणा भी नहीं हो सकी है। यह मंत्री किरोड़ीलाल मीणा का विधानसभा क्षेत्र है। उनकी सहमति के बिना यहां भी पार्टी आगे नहीं बढ़ सकती है।

7. चित्तौड़गढ़: सांसद और विधायक में खींचतान

यहां पूर्व प्रदेशाध्यक्ष व सांसद सीपी जोशी और विधायक चंद्रभान सिंह आक्या की आपसी खींचतान के चलते जिलाध्यक्ष के नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है। चित्तौड़गढ़ जिले में अधिकतर जगह मंडल अध्यक्ष का निर्वाचन हो चुका है। लेकिन, चित्तौड़गढ़ विधानसभा क्षेत्र में एक भी मंडल अध्यक्ष नहीं बन पाया है। इसके साथ ही जिले से आने वाले चार विधायक श्रीचंद्र कृपलानी, सुरेश धाकड़, अर्जुनलाल जीनगर और गौतम दक भी किसी एक नाम पर सहमत नहीं हो पा रहे हैं।

8. प्रतापगढ़: स्थानीय नेताओं की गुटबाजी हावी
यह जिला पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी के संसदीय क्षेत्र में आता है। यहां भी स्थानीय नेताओं की आपसी गुटबाजी के कारण पार्टी जिलाध्यक्ष का निर्वाचन नहीं करवा पा रही है। यहां जिलाध्यक्ष के पद के लिए आधा दर्जन नेताओं ने दावेदारी पेश की है। ऐसे में पार्टी यहां भी एकराय नहीं बना पा रही है।

9. बूंदी: मजबूत नेता पर नहीं बन रही एक राय
यह जिला कभी भाजपा का गढ़ रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में जिले की तीनों सीट कांग्रेस के खाते में गईं। ऐसे में पार्टी यहां किसी मजबूत पैठ वाले नेता को जिम्मेदारी देना चाहती है। स्थानीय नेताओं की गुटबाजी के चलते यहां भी पार्टी निर्णय नहीं कर पा रही है।

10. बीकानेर शहर: दावेदारों की खींचतान आई आड़े
इस जिले में दावेदारों के बीच की खींचतान के कारण पार्टी जिलाध्यक्ष का चुनाव नहीं करवा पा रही है। यहां वैश्य समुदाय के 3 नेता दावेदार हैं। इसमें सबसे आगे महावीर रांका और मोहन सुराना का नाम है। महावीर पहले नगर विकास न्यास के चेयरमैन रह चुके हैं, जबकि मोहन लंबे अरसे से संगठन में महासचिव के पद पर काबिज हैं। इन दोनों के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के कारण सहमति नहीं बन पा रही है।

11. डूंगरपुर: 28 नाम आए, लेकिन सहमति नहीं बनी
डूंगरपुर में जिलाध्यक्ष के पद के लिए पार्टी के पास 28 आवेदन आए हैं। इन सभी नेताओं में से किसी एक नाम पर आम सहमति नहीं बन पाने के कारण यहां भी जिलाध्यक्ष का निर्वाचन नहीं हो सका है।

12. टोंक: बीच का रास्ता निकालने में लगा समय
टोंक में पार्टी ने मार्च 2024 में ही अजीत मेहता को जिलाध्यक्ष बनाया था। मेहता उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी के करीबी माने जाते हैं। दूसरा गुट राजेंद्र पराना को जिलाध्यक्ष बनाना चाहता है। यहां पार्टी बीच का रास्ता तलाश रही है। इसमें समय अधिक लग रहा है।

13. करौली: एक भी मंडल अध्यक्ष नहीं बना
यह एक ऐसा जिला है, जहां पार्टी अभी तक एक भी मंडल अध्यक्ष का निर्वाचन नहीं कर सकी है। जिले में 23 मंडल अध्यक्ष हैं। जिले में आधे से ज्यादा मंडल अध्यक्षों के निर्वाचन से पहले जिलाध्यक्ष का चुनाव नहीं हो सकता है। ऐसे में यहां जिलाध्यक्ष का चुनाव अटक गया है।

14. धौलपुर: समय पर नहीं हो सका मंडल अध्यक्ष का निर्वाचन

यहां भी मंडल अध्यक्षों का निर्वाचन समय पर नहीं हो सका है। ऐसे में यहां जिलाध्यक्ष के निर्वाचन में देरी हुई है। यह जिला पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का गृह नगर भी है।

इसी तरह से झुंझुनूं, भीलवाड़ा और जोधपुर उत्तर में भी स्थानीय नेताओं में सहमति नहीं बन पाने से पार्टी यहां जिलाध्यक्ष का निर्वाचन नहीं करवा पाई है।

अब निर्वाचन कराने के मूड में नहीं पार्टी

पार्टी जिन 17 जिलों में अभी तक निर्वाचन नहीं करवा पाई है। उनमें से अब दो या तीन जिलों को छोड़कर पार्टी कहीं भी निर्वाचन कराने के मूड में नहीं है। इन जिलों में अब जिलाध्यक्ष के निर्वाचन की जगह सीधे उनकी नियुक्ति होगी।पार्टी संविधान के अनुसार प्रदेशाध्यक्ष के निर्वाचन के लिए 23 जिलाध्यक्षों का निर्वाचन होना जरूरी है। पार्टी 27 जिलाध्यक्ष निर्वाचित कर चुकी है। ऐसे में अब सीधे प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव होगा। नव निर्वाचित प्रदेशाध्यक्ष इन जिलों में जिलाध्यक्षों की नियुक्ति करेंगे।


प्रदेशाध्यक्ष के चुनाव में भी देरी

बीजेपी में प्रदेशाध्यक्ष के निर्वाचन की डेडलाइन 5 फरवरी थी। अभी तक पार्टी ने प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव कार्यक्रम जारी नहीं किया। प्रदेशाध्यक्ष का निर्वाचन कार्यक्रम करीब तीन दिन का होगा। इसमें पहले दिन नामांकन जमा कराने का समय होगा। दूसरे दिन नाम वापसी के लिए होगा। वहीं, तीसरे दिन जरूरत पड़ने पर चुनाव होंगे।इस पद पर वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ का निर्वाचन तय माना जा रहा है। इसके संकेत पहले ही प्रदेश प्रभारी राधा मोहन दास अग्रवाल दे चुके हैं। लेकिन, पार्टी चाहती है कि प्रदेशाध्यक्ष के निर्वाचन से पहले बकाया जिलों में से दो से तीन में जिलाध्यक्ष का निर्वाचन हो जाए। इसे लेकर इन जिलों में सहमति बनाई जा रही है। ऐसे में प्रदेशाध्यक्ष के चुनाव में भी देरी हो रही है।