ब्लैकआउट का आदेश कब दिया जाता है और क्यों? इस वायरल वीडियो में जानिए युद्धकाल, मॉक ड्रिल और सुरक्षा के अहम पहलू

जब देश की सीमाओं पर तनाव चरम पर हो, दुश्मन की ओर से हमले की आशंका बनी हो, या आकाश में दुश्मन के फाइटर जेट मंडरा रहे हों—ऐसे हालात में देश को सिर्फ फौजी ताकत नहीं, बल्कि जनता की सतर्कता और सुरक्षा प्रबंधन की भी जरूरत होती है। ऐसी ही स्थिति में "ब्लैकआउट" जैसी रणनीति अपनाई जाती है। यह सिर्फ एक तकनीकी आदेश नहीं, बल्कि युद्धकालीन सुरक्षा का एक अहम स्तंभ होता है, जो नागरिकों को हमले से बचाने और दुश्मन को लक्ष्य विफल करने का तरीका है।
ब्लैकआउट क्या होता है?
ब्लैकआउट एक सुरक्षा रणनीति है, जिसमें किसी इलाके की बिजली, लाइट और हर प्रकार की रोशनी को बंद कर दिया जाता है। इसका मकसद होता है कि दुश्मन का हवाई हमला या मिसाइल निशाना सही न लगा सके। जब शहर की लाइटें बुझा दी जाती हैं और सड़कों, घरों, वाहनों से रोशनी गायब हो जाती है, तो आसमान से देखना और निशाना साधना बेहद मुश्किल हो जाता है।
ब्लैकआउट का आदेश कब और क्यों दिया जाता है?
ब्लैकआउट का आदेश मुख्य रूप से तीन परिस्थितियों में दिया जाता है:
युद्धकाल में:
जब किसी देश के खिलाफ युद्ध छिड़ा हो और दुश्मन द्वारा हवाई हमले की आशंका हो, उस समय ब्लैकआउट का आदेश तत्काल दिया जाता है। इसका उद्देश्य आम नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना होता है। भारत में 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान बड़े स्तर पर ब्लैकआउट किया गया था।
मॉक ड्रिल के दौरान:
शांति काल में, संभावित खतरे के अभ्यास के रूप में सरकार मॉक ड्रिल आयोजित करती है। इसमें लोगों को युद्धकाल की परिस्थितियों के लिए तैयार किया जाता है। मॉक ड्रिल में ब्लैकआउट का हिस्सा होने का कारण यह है कि नागरिकों को प्रशिक्षित किया जा सके कि रोशनी बंद करके कैसे सुरक्षित रहा जाए।
विशेष आतंकी अलर्ट या खुफिया इनपुट मिलने पर:
कभी-कभी आतंकी हमले या हवाई घुसपैठ की आशंका पर भी सीमित समय के लिए ब्लैकआउट किया जाता है। खासकर सैन्य या परमाणु ठिकानों के आसपास।
हाल की बड़ी मॉक ड्रिल और ब्लैकआउट अभ्यास
7 मई 2025 को भारत ने 1971 के बाद पहली बार इतने बड़े पैमाने पर मॉक ड्रिल और ब्लैकआउट अभ्यास किया। 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 244 जिलों में यह अभ्यास आयोजित किया गया, जो देश के 259 नागरिक सुरक्षा जिलों में से हैं। गृह मंत्रालय ने इन जिलों को उनकी संवेदनशीलता के आधार पर तीन श्रेणियों में बांटा है — श्रेणी-1 (सबसे संवेदनशील), श्रेणी-2 और श्रेणी-3।इन ड्रिल्स का उद्देश्य था नागरिकों को ये सिखाना कि सायरन की आवाज सुनते ही कैसे सुरक्षित स्थान पर जाएं, लाइटें बंद करें, और कैसे परिवार या समुदाय के साथ मिलकर शांति और अनुशासन बनाए रखें।
ब्लैकआउट के दौरान क्या करें और क्या नहीं?
क्या करें:
घर की सभी लाइटें, बल्ब, ट्यूबलाइट बंद करें।
खिड़कियों पर मोटे पर्दे या काले कपड़े डालें ताकि रोशनी बाहर न जाए।
गैस, स्टोव या किसी प्रकार की लौ जलाने से बचें।
टॉर्च या मोबाइल लाइट का प्रयोग केवल जरूरत पड़ने पर करें।
परिवार को एक जगह सुरक्षित रूप से रखें, खासकर बच्चों और बुजुर्गों पर ध्यान दें।
क्या न करें:
बाहर निकलने से बचें।
कार, बाइक या किसी भी वाहन की हेडलाइट जलाकर न चलें।
फोन या कैमरे की फ्लैश लाइट का इस्तेमाल न करें।
अफवाहों पर विश्वास न करें, केवल सरकारी निर्देशों का पालन करें।
सायरन का क्या मतलब होता है?
ब्लैकआउट से पहले अक्सर एयर रेड सायरन बजाया जाता है। यह एक चेतावनी होती है कि संभावित हवाई हमला हो सकता है। सायरन सुनते ही लोगों को सुरक्षित स्थान की ओर जाना होता है और सभी रोशनी बंद करनी होती है।
ब्लैकआउट का इतिहास
भारत ने अब तक युद्धकाल में कई बार ब्लैकआउट का सहारा लिया है। 1947, 1965, और 1971 के युद्धों के दौरान बड़े शहरों में अंधकार की चादर फैलाकर दुश्मन के विमानों को भ्रमित किया गया था। खासकर 1971 के युद्ध में दिल्ली, अमृतसर, जोधपुर, बरेली जैसे शहरों में ब्लैकआउट किया गया था।