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डॉक्यूमेंट्री में देखे जयपुर का इतिहास! जानिए कैसे बना भारत का पहला नियोजित नगर, किसने रखी नींव और क्यों कहलाता है 'गुलाबी शहर' ?

डॉक्यूमेंट्री में देखे जयपुर का इतिहास! जानिए कैसे बना भारत का पहला नियोजित नगर, किसने रखी नींव और क्यों कहलाता है 'गुलाबी शहर' ?
 
डॉक्यूमेंट्री में देखे जयपुर का इतिहास! जानिए कैसे बना भारत का पहला नियोजित नगर, किसने रखी नींव और क्यों कहलाता है 'गुलाबी शहर' ?

भारत के गौरवशाली शहरों में से एक जयपुर, न केवल राजस्थान की राजधानी है, बल्कि यह देश का पहला नियोजित नगर (Planned City) भी माना जाता है। इसकी स्थापना की कहानी जितनी ऐतिहासिक है, उतनी ही वास्तुकला और शहरी नियोजन की दृष्टि से प्रेरणादायक भी है। ‘गुलाबी नगर’ के नाम से प्रसिद्ध जयपुर आज जिस खूबसूरती, आधुनिकता और ऐतिहासिकता का प्रतीक है, उसका आधार 18वीं शताब्दी में रख दिया गया था।


महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय की दूरदर्शिता

जयपुर की स्थापना महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1727 ई. में की थी। उस समय आमेर (अब आमेर किला) उनका राजधानी स्थल हुआ करता था। लेकिन आमेर की भौगोलिक सीमाएं, पानी की कमी और बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए उन्होंने एक नए शहर की योजना बनाई। सवाई जयसिंह न केवल एक प्रबल योद्धा थे, बल्कि खगोल विज्ञान, वास्तुकला और शहरी नियोजन के भी महान ज्ञाता थे।उन्होंने एक ऐसा नगर बसाने की कल्पना की जो सुरक्षा, व्यापार, संस्कृति और विज्ञान – इन सभी आवश्यकताओं को पूरा कर सके। इस उद्देश्य के साथ जयसिंह द्वितीय ने एक नए शहर की नींव रखी, जिसे आज हम जयपुर के नाम से जानते हैं।

नियोजित शहर का अनोखा प्रारूप
जयपुर को बसाने के लिए उन्होंने उस समय के प्रसिद्ध वास्तुकार और शिल्प विशेषज्ञ विद्याधर भट्टाचार्य की मदद ली। विद्याधर ने वास्तुशास्त्र और शिल्पशास्त्र के अनुसार नगर की रचना की। जयपुर का नक्शा “ग्रिड सिस्टम” पर आधारित है, जो उस समय की भारतीय वास्तु परंपरा और आधुनिकता का अनूठा संगम था।शहर को नौ चौक-चौराहों और चौड़ी सड़कों में विभाजित किया गया। प्रत्येक मोहल्ला एक निर्धारित उद्देश्य के लिए था – जैसे व्यापारी, कारीगर, राजपरिवार के लोग, साधु-संत आदि। पूरा नगर चारदीवारी से घिरा हुआ था, जिसमें सात विशाल द्वार बनाए गए – जैसे अजमेरी गेट, चांदपोल, सांगानेरी गेट आदि।

गुलाबी रंग की पहचान
जयपुर को गुलाबी नगर कहे जाने का कारण इसकी एक ऐतिहासिक घटना है। 1876 में प्रिंस ऑफ वेल्स (बाद में किंग एडवर्ड VII) के आगमन पर महाराजा राम सिंह द्वितीय ने पूरे नगर को गुलाबी रंग से रंगवा दिया था, क्योंकि गुलाबी रंग अतिथि सत्कार और खुशी का प्रतीक माना जाता है। यह रंग बाद में जयपुर की स्थायी पहचान बन गया।आज भी शहर के पुराने हिस्से की इमारतें गुलाबी रंग की हैं और यह परंपरा राजस्थान सरकार द्वारा संरक्षित है।

खगोलशास्त्र और स्थापत्य का अद्भुत संगम
जयपुर की स्थापत्य कला में खगोल विज्ञान का प्रभाव भी स्पष्ट देखा जा सकता है। सवाई जयसिंह द्वितीय ने यहाँ जंतर-मंतर की स्थापना की, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों में शामिल है। यह एक खगोलीय वेधशाला है जिसमें सूर्य घड़ी, यंत्र, कोण मापन उपकरण आदि मौजूद हैं, जो आज भी कार्य करते हैं।इसी तरह, सिटी पैलेस, हवा महल, जल महल, और अल्बर्ट हॉल म्यूज़ियम जैसी संरचनाएं भी जयपुर के स्थापत्य कौशल और नियोजित विकास की मिसाल हैं।

व्यापार, संस्कृति और कारीगरी का केंद्र
जयपुर अपने प्रारंभ से ही एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र रहा है। यहां की चौपड़ें (बाजारों के चौराहे), जौहरी बाजार, बापू बाजार, त्रिपोलिया बाजार आदि उस दौर में भी व्यापारिक गतिविधियों से गुलजार रहते थे। यहां के मीनाकारी, ब्लू पॉटरी, लाह की चूड़ियां, और ठप्पा प्रिंटिंग आज भी विश्व प्रसिद्ध हैं।शहर के निर्माण के साथ ही यहां संस्कृति, संगीत, कला और हस्तशिल्प का भी संगठित विकास हुआ। जयपुर घराना, कत्थक नृत्य और हस्तकला के विविध रूपों ने शहर को सांस्कृतिक राजधानी बना दिया।