क्या विजय स्तम्भ में हुआ था कभी बलिदान का तांत्रिक यज्ञ? इतिहास के पन्ने खोलते इस वीडियो में सामने आया 500 साल पुराना गहरा राज

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ किले में स्थित विजय स्तम्भ आज भी भारतीय गौरव, वीरता और स्थापत्य कला का प्रतीक माना जाता है। 15वीं शताब्दी में राणा कुंभा द्वारा बनवाया गया यह स्तम्भ न केवल एक ऐतिहासिक स्मारक है, बल्कि इसके चारों ओर समय के साथ अनेक रहस्यमयी कहानियाँ भी बुनी गई हैं। इन सभी में से एक सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि – क्या वाकई विजय स्तम्भ में कभी कोई बलिदान से जुड़ा तांत्रिक यज्ञ हुआ था? इस सवाल ने इतिहास प्रेमियों और रहस्य खोजियों के बीच गहरी जिज्ञासा पैदा कर दी है।
अफवाह या सच्चाई?
लोककथाओं और कुछ पुरानी मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि विजय स्तम्भ की स्थापना से पहले या उसके शीर्ष पर कभी एक तांत्रिक यज्ञ कराया गया था, जिसमें "मानव बलिदान" की आशंका भी जताई जाती है। इस कथित यज्ञ को राणा कुंभा के शासन में किए गए शक्ति संरक्षण और विजय की स्थायित्वता के लिए बताया जाता है। यह बात कोई ऐतिहासिक दस्तावेज़ स्पष्ट रूप से नहीं कहता, लेकिन कुछ पुरानी संस्कृत शिलालेखों और लोकगाथाओं में ऐसे संकेत जरूर मिलते हैं जो इस रहस्य को और गहरा बनाते हैं।
वीडियो में क्या सामने आया?
हमारे वीडियो में हमने राजस्थान के इतिहासकारों, पुरातत्व विशेषज्ञों और स्थानीय गाइड्स से बात की है। वीडियो में एक पुराने दस्तावेज़ की चर्चा की गई है, जिसमें उल्लेख है कि कुछ विशेष प्रकार के यज्ञ, जिसे "शत्रु विनाश तंत्र यज्ञ" कहा जाता था, कभी-कभी युद्ध से पहले किए जाते थे – ताकि शत्रु की ऊर्जा कमजोर हो और विजेता को शक्ति प्राप्त हो। ऐसे यज्ञों में पशु बलिदान आम था, लेकिन मानव बलिदान की संभावना केवल विशेष और गुप्त तांत्रिक अनुष्ठानों में होती थी।
विजय स्तम्भ के शीर्ष का रहस्य
विजय स्तम्भ की ऊपरी मंज़िल तक जाने के लिए बेहद संकीर्ण रास्ता है। कहा जाता है कि इस शीर्ष भाग पर ही संभवतः कोई तांत्रिक क्रिया की गई थी, क्योंकि वहीं से पूरे चित्तौड़ की निगरानी की जा सकती थी, और ऊंचाई वाले स्थानों को तंत्र साधना के लिए शक्तिशाली माना जाता रहा है। कुछ पुरानी रिपोर्टों में यहां रक्त के धब्बों की मौजूदगी की भी बात सामने आई है – हालांकि इसकी पुष्टि आज तक नहीं हो सकी है।
इतिहासकारों का मत
कुछ इतिहासकार इन बातों को कल्पनाओं पर आधारित मानते हैं। उनके अनुसार, विजय स्तम्भ पूरी तरह एक धार्मिक और विजय प्रतीक था, और इसमें तांत्रिक यज्ञ जैसी किसी हिंसात्मक गतिविधि का कोई ठोस प्रमाण आज तक नहीं मिला। लेकिन वे यह भी मानते हैं कि 15वीं शताब्दी में राजनीति, धर्म और तंत्र एक-दूसरे से जुड़े होते थे, इसलिए इन संभावनाओं को पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता।
निष्कर्ष
भले ही विजय स्तम्भ में तांत्रिक बलिदान हुआ या नहीं – इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। लेकिन इसकी बनावट, ऊंचाई, और इसके चारों ओर फैली कहानियाँ इसे केवल एक स्मारक नहीं, बल्कि एक जीवंत रहस्य बना देती हैं।