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टोंक की शाही जामा मस्जिद राजस्थान की वो खूबसूरत इबादतगाह जिसे नवाबों ने बनवाया, वीडियो में जानिए 200 साल पुराना इतिहास

टोंक की शाही जामा मस्जिद राजस्थान की वो खूबसूरत इबादतगाह जिसे नवाबों ने बनवाया, वीडियो में जानिए 200 साल पुराना इतिहास
 
टोंक की शाही जामा मस्जिद राजस्थान की वो खूबसूरत इबादतगाह जिसे नवाबों ने बनवाया, वीडियो में जानिए 200 साल पुराना इतिहास

राजस्थान की ऐतिहासिक धरोहरों में टोंक स्थित शाही जामा मस्जिद एक ऐसी भव्य रचना है, जो न सिर्फ राज्य की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है, बल्कि स्थापत्य कला और धार्मिक महत्व के लिहाज से भी पूरे भारत में अपनी एक विशिष्ट पहचान रखती है। टोंक शहर को 'राजस्थान का लखनऊ' कहा जाता है, और इसकी गवाही यहां की हवेलियां, उर्दू-फारसी संस्कृति और सबसे प्रमुख रूप से जामा मस्जिद देती हैं। यह मस्जिद एक ऐसी ऐतिहासिक इमारत है जो आज भी नवाबी काल के वैभव और वास्तुशिल्पीय शिल्प का सजीव उदाहरण है।


स्थापना का इतिहास
टोंक शहर की स्थापना 18वीं शताब्दी में पश्तून मूल के नवाब मोहम्मद अमीर खान द्वारा की गई थी। टोंक रियासत की नींव रखने वाले अमीर खान ने न केवल प्रशासनिक और राजनीतिक दृष्टि से शहर को व्यवस्थित किया, बल्कि कला, शिक्षा और धार्मिक स्थापत्य में भी अहम योगदान दिया।शाही जामा मस्जिद का निर्माण कार्य 1244 हिजरी (1828 ई.) में नवाब अमीर खान द्वारा शुरू करवाया गया था। मस्जिद का निर्माण उनके पुत्र नवाब वज़ीर-उद-दौला के शासन काल (1289 हिजरी) में पूरा हुआ। यह मस्जिद नवाबों की धार्मिक आस्था और उनकी स्थापत्य कुशलता का प्रमाण है।

वास्तुकला की खासियत
जामा मस्जिद, टोंक की स्थापत्य शैली राजपूत और मुगल वास्तुकला का सुंदर संगम है। इसका निर्माण सफेद संगमरमर और लाल बलुआ पत्थर से किया गया है। यह मस्जिद एक ऊँचे चबूतरे पर बनाई गई है जिससे इसकी भव्यता और भी अधिक निखर कर सामने आती है।मस्जिद में तीन प्रमुख गुंबद हैं, जो दिल्ली और आगरा की मस्जिदों की शैली को दर्शाते हैं। चारों ओर चार ऊँची मीनारें हैं, जो दूर से ही इसकी भव्य उपस्थिति का एहसास कराती हैं। मस्जिद के अंदर प्रवेश करते ही सोने की पेंटिंग, मीनाकारी की नक्काशी और कुरान की आयतों से सजी दीवारें आंखों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं।इसके मुख्य द्वार के दोनों ओर दो छोटी मीनारें हैं, जो सुरक्षा के प्रतीक मानी जाती हैं। मस्जिद के उत्तर भाग में एक विशाल द्वार बनाया गया है, जिसमें नौ मीनारें हैं, जबकि पश्चिमी दिशा में एक और छोटा द्वार है। मस्जिद के दक्षिण-पश्चिम कोने में हौज (जलाशय) बना है जिसका प्रयोग वुज़ू (प्रार्थना से पूर्व हाथ-मुँह धोने) के लिए किया जाता है।

मान्यताएं और धार्मिक महत्व
यह मस्जिद टोंक के नवाबों की धार्मिक श्रद्धा और इस्लाम के प्रति समर्पण का सजीव प्रतीक है। यहां ईद, जुमा और रमज़ान जैसे पर्वों पर बड़ी संख्या में नमाज़ी एकत्र होते हैं। धार्मिक दृष्टि से यह मस्जिद न केवल टोंक के लोगों के लिए, बल्कि समूचे राजस्थान के मुस्लिम समुदाय के लिए पवित्र तीर्थ स्थल के समान मानी जाती है।मान्यता है कि इस मस्जिद में मांगी गई सच्चे मन की दुआ कबूल होती है। यहां का वातावरण शांति, आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक सौहार्द का संदेश देता है।

दिल्ली की जामा मस्जिद से तुलना
हालांकि टोंक की यह जामा मस्जिद दिल्ली की जामा मस्जिद से प्रेरित है, लेकिन इसमें कुछ खास अंतर हैं। जैसे दिल्ली की जामा मस्जिद में हौज परिसर के बीचोंबीच होता है, वहीं टोंक की मस्जिद में यह हौज कोने में स्थित है। इसके अलावा टोंक की मस्जिद में की गई मीनाकारी और सुनहरी सजावट इसे विशिष्ट बनाती है।

कैसे पहुंचे जामा मस्जिद, टोंक?
टोंक, जयपुर से लगभग 95 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यहां पहुंचना बेहद आसान है।
रेल मार्ग: नजदीकी रेलवे स्टेशन टोंक रेलवे स्टेशन है, जो मस्जिद से लगभग 4 किलोमीटर दूर है।
सड़क मार्ग: टोंक बस स्टेशन से मस्जिद लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
हवाई मार्ग: सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट है, जो टोंक से 95 किलोमीटर दूर है।

निष्कर्ष
टोंक की शाही जामा मस्जिद सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक ऐसा धरोहर स्थल है जहां इतिहास, वास्तुकला और अध्यात्म का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। इसकी बनावट, भव्यता और मान्यताएं इसे भारत की सबसे खूबसूरत और महत्वपूर्ण मस्जिदों में शुमार करती हैं।अगर आप भी राजस्थान की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को करीब से देखना चाहते हैं, तो टोंक की जामा मस्जिद की यात्रा जरूर करें।