Jaipur आज परशुराम जयंती, रुंडल गांव से है खास कनेक्शन
माता के नाम पर ही रखा गया नदी का नाम
सोबर संस्था के अध्यक्ष डॉ शिव गौतम ने बताया कि इस स्थल को ऋषि जमदग्नि का तपस्या स्थल माना जाता है। भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि ऋषि एवं माता रेणुका इसी आश्रम में रहते थे। कहते हैं कि भगवान परशुराम का बचपन इसी आश्रम में बीता था। इतिहास के 400-500 साल पुराने रिकॉर्ड की मानें तो कालवाड़ की पहाड़ियों से रेणुका नदी आती थी। इस नदी का नाम भी उनकी माता के नाम पर ही रखा गया था।
करीब छह लाख की लागत से मूर्ति का निर्माण
भगवान परशुराम की 7’6″ फीट ऊंची मूर्ति अष्टधातु से बनी है। इसे जयपुर के मूर्तिकार अर्जुन प्रजापति के बेटे राजेंद्र प्रजापति ने 15 कारीगारों की मेहनत से पांच महीने में तैयार किया है। मूर्ति देखने में आकर्षित हैं, जिसे देखकर ऐसा लगता है मानों भगवान स्वयं भक्तों को आशीर्वाद दे रहे हैं। संस्था के सहयोग से करीब छह लाख की लागत से मूर्ति का निर्माण किया गया है। संस्था का दावा है कि भगवान परशुराम की गर्भ गृह में स्थापित अष्ठ धातु की मूर्ति दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति है।
मार्बल से बना है मंदिर
सोबर सोसायटी के महासचिव इंजीनियर आर सी शर्मा ने बताया कि परशुराम मंदिर का निर्माण मार्बल से किया गया है। इसमें ग्रामीणों का भी सहयोग है। मंदिर में आज आखातीज पर प्राण-प्रतिष्ठा का एक साल पूरा होने पर पाटोत्सव मनाया जा रहा है। भगवान परशुराम जी का अभिषेक कर सीताराम मंदिर से शोभायात्रा निकाली गई। भगवान परशुराम के भोग लगाने के बाद प्रसादी का आयोजन होगा।
जन्म को लेकर अलग-अलग मान्याताएं
भगवान परशुराम के जन्मस्थल को लेकर अलग-अलग मत हैं। पुराणों की मानें तो त्रेतायुग में भगवान राम से पहले ब्रह्मवंश भृगु कुल में महर्षि जमदग्नि ऋषि एवं माता रेणुका के यहां काशी वाराणसी में वैशाख शुक्ला अक्षय तृतीया को मध्याह्न काल में भगवान परशुराम ने अवतार लिया था। परशुराम महान तपस्वी और भगवान के अवतार हैं। वे सप्त चिरंजीवियों में से एक हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार वे आज भी इसी पृथ्वी पर तपस्या में लीन हैं।