इंद्रेश उपाध्याय की शादी में तिरुपति बालाजी का दिखा अदभुत नजारा, जयपुर में हुए सात फेरे शिप्रा शर्मा बनी जीवनसंगिनी
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर से भरपूर ऐतिहासिक नगरी जयपुर बीती रात एक विशेष अवसर की साक्षी बनी। वृंदावन (मथुरा) के सुप्रसिद्ध कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय शुक्रवार को यमुनानगर (हरियाणा) की शिप्रा शर्मा के साथ वैवाहिक बंधन में बंध गए। दोनों ने पारंपरिक वैदिक मंत्रोच्चार और शास्त्रोक्त विधि के बीच पवित्र अग्नि के सात फेरे लेकर अपने नए जीवन की शुरुआत की।
विवाह की मुख्य रस्में लगभग 3 घंटे तक चलीं, जिसमें धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष महत्व रहा। पूरा वातावरण मंत्रों, भजन और शहनाई की मधुर धुनों से गूँज उठा। दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद देने के लिए देशभर के आध्यात्मिक संत, कथावाचक और भक्तगण जयपुर पहुंचे। समारोह स्थल को पारंपरिक और दिव्य थीम से सुसज्जित किया गया था, जहाँ भक्तिमय माहौल ने सभी का मन मोह लिया।
विवाह के बाद जयपुर की सड़कों पर देर रात भव्य बारात निकाली गई। दूल्हे इंद्रेश उपाध्याय शाही अंदाज़ में पारंपरिक पोशाक पहने नजर आए। बारात में ढोल-नगाड़ों, बैंड-बाजों और शुभ शगुन की झांकियों ने सभी का ध्यान आकर्षित किया। रास्ते भर लोग झूमते और नाचते नजर आए। आतिशबाज़ी की चमक से आसमान भी रोशन हो उठा।
समारोह में आए गणमान्य साधु-संतों और अतिथियों ने इंद्रेश उपाध्याय को विवाहित जीवन की सफलता और समृद्धि के लिए शुभकामनाएँ दीं। परिवारजनों ने सभी मेहमानों का पारंपरिक आतिथ्य से स्वागत किया और इस शुभ अवसर को अविस्मरणीय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
खानपान की व्यवस्था भी आयोजन का खास आकर्षण रही, जहाँ संतों और श्रद्धालुओं के लिए विशेष प्रसाद, जबकि मेहमानों के लिए राजस्थानी और ब्रज के पारंपरिक व्यंजन परोसे गए।
इंद्रेश उपाध्याय की कथाएं देश-विदेश में लाखों श्रोताओं के बीच लोकप्रिय हैं और भक्त उन्हें कृष्ण भक्ति का संदेश देने वाला युवा स्वर मानते हैं। वहीं शिप्रा शर्मा अपनी सरलता और संस्कारप्रियता के लिए जानी जाती हैं। दोनों की जोड़ी को सभी ने “आध्यात्मिक संगम” बताते हुए शुभाशीष दिया।
धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के इस अद्भुत संगम ने जयपुर के इस आयोजन को यादगार बना दिया। भक्तों और श्रद्धालुओं के अनुसार यह विवाह केवल एक रस्म नहीं बल्कि भारतीय विश्वास, संस्कार और प्रेम की सुंदर मिसाल बनकर लोगों के दिलों में बस गया है।
