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शूरवीर महाराणा प्रताप की गौरवमयी गाथा सुनाता है राजस्थान का ये आलीशानी किला, 36 किमी दीवार है आकर्षण का केंद्र

शूरवीर महाराणा प्रताप की गौरवमयी गाथा सुनाता है राजस्थान का ये आलीशानी किला, 36 किमी दीवार है आकर्षण का केंद्र
 
शूरवीर महाराणा प्रताप की गौरवमयी गाथा सुनाता है राजस्थान का ये आलीशानी किला, 36 किमी दीवार है आकर्षण का केंद्र

राजस्थान की वीरभूमि मेवाड़ की शान है कुंभलगढ़ किला, जो न केवल स्थापत्य की दृष्टि से अद्वितीय है, बल्कि यह महाराणा प्रताप जैसे महान योद्धा की गौरवगाथा का साक्षी भी है। यह किला इतिहास, परंपरा और साहस की मिसाल है, जिसे देखकर हर भारतवासी गर्व से भर उठता है।

महाराणा प्रताप का जन्मस्थल

कुंभलगढ़ किला मेवाड़ के राणा कुंभा द्वारा 15वीं शताब्दी में बनवाया गया था, लेकिन इसे अमर कर दिया महाराणा प्रताप ने। यहीं पर 9 मई 1540 को वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। वे मेवाड़ के ऐसे शासक थे जिन्होंने कभी मुगल बादशाह अकबर के आगे सिर नहीं झुकाया और मातृभूमि की रक्षा के लिए जीवन भर संघर्ष किया।

36 किलोमीटर लंबी दीवार – भारत की 'ग्रेट वॉल'

कुंभलगढ़ किला सिर्फ ऐतिहासिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि अपनी विशाल दीवार के कारण भी प्रसिद्ध है। इसकी 36 किलोमीटर लंबी दीवार दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार मानी जाती है। इसे 'भारत की ग्रेट वॉल' भी कहा जाता है। यह दीवार इतनी चौड़ी है कि आठ घोड़े एक साथ दौड़ सकते हैं।

अजेय रहा यह किला

अरावली की पहाड़ियों में 1100 मीटर की ऊँचाई पर बना यह किला सदियों तक दुश्मनों के लिए अभेद्य रहा। यह मेवाड़ की संकट कालीन राजधानी भी थी, जहाँ राजवंशों ने अकाल और युद्ध के समय शरण ली। मुगलों, दिल्ली सल्तनत और माराठों ने कई बार इस किले पर कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन इसकी मज़बूत दीवारें और राजपूती वीरता के सामने वे टिक नहीं सके।

स्थापत्य और धार्मिक धरोहर

कुंभलगढ़ किले के भीतर 360 से अधिक मंदिर हैं, जिनमें 300 जैन और शेष हिंदू मंदिर शामिल हैं। यहां का नीलकंठ महादेव मंदिर, वेदी महल और बादल महल वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरण हैं। किले के चारों ओर फैला हर दृश्य एक नई ऐतिहासिक कहानी कहता है।

कुंभलगढ़ महोत्सव

राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा हर साल दिसंबर में आयोजित कुंभलगढ़ महोत्सव इस किले को सांस्कृतिक रंगों से सजा देता है। लोक नृत्य, संगीत, कठपुतली शो, और शौर्य गाथाओं की प्रस्तुति इस पर्व को अनोखा बनाती है।

निष्कर्ष

कुंभलगढ़ सिर्फ एक किला नहीं, बल्कि यह राजपूती शौर्य, आत्मसम्मान और बलिदान की जीवंत प्रतीक है। महाराणा प्रताप की जन्मस्थली के रूप में यह दुर्ग आज भी युवाओं में राष्ट्रप्रेम और साहस की प्रेरणा भरता है। इसकी प्राचीरों से टकराती हवा आज भी वीरता के गीत सुनाती है।