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राजस्थान में यहां स्थित है विश्व की सबसे पुरानी विष्णु प्रतिमा, वीडियो में जाने क्या यही है वो स्थान जहां ब्रह्मा जी का हुआ था उद्भव ?

राजस्थान में यहां स्थित है विश्व की सबसे पुरानी विष्णु प्रतिमा, वीडियो में जाने क्या यही है वो स्थान जहां ब्रह्मा जी का हुआ था उद्भव ?
 
राजस्थान में यहां स्थित है विश्व की सबसे पुरानी विष्णु प्रतिमा, वीडियो में जाने क्या यही है वो स्थान जहां ब्रह्मा जी का हुआ था उद्भव ?

देशभर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं। ईटीवी भारत आज आपको वो स्थान दिखा रहा है जहां भगवान श्री विष्णु पहली बार धरती पर प्रकट हुए थे। यहां आज भी शेषनाग पर विश्राम करते हुए भगवान विष्णु की दुनिया की सबसे प्राचीन प्रतिमा मौजूद है। ये वही प्रतिमा है जिसकी पूजा स्वयं जगतपिता ब्रह्मा ने की थी। तीर्थ नगरी पुष्कर के वन क्षेत्र में मौजूद सूरजकुंड गांव के पास कनबे के नाम से ये पावन स्थान प्रसिद्ध है। श्री हरि के इस पावन स्थल का उल्लेख हरिवंश पुराण में मिलता है. पुष्कर वन क्षेत्र इतना पवित्र है कि सृष्टि निर्माण यज्ञ से पहले ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने यहां घोर तपस्या की थी।इस स्थान का बड़ा पौराणिक महत्व है। यही वजह है कि यहां स्वयं भगवान श्रीराम दो बार और स्वयं भगवान श्रीकृष्ण सात बार आए थे. तीर्थराज पुष्कर नगरी में जगतपिता ब्रह्मा का दुनिया का एकमात्र मंदिर है। माना जाता है कि सृष्टि के रचयिता जगतपिता ब्रह्मा की उत्पत्ति भगवान विष्णु की नाभि से हुई थी।

लाखों वर्ष पूर्व पुष्कर से 12 किलोमीटर दूर नागौर की ओर एक समुद्र था। शास्त्रों के अनुसार यह समुद्र क्षीर सागर था। पुष्कर से 8 किलोमीटर दूर सूरजकुंड गांव स्थित है, जहां पास में ही कनबे नामक एक अति प्राचीन स्थान है। लाखों वर्ष पूर्व यहां क्षीर सागर हुआ करता था। समुद्र मंथन के बाद क्षीर सागर का क्षेत्र सिकुड़ गया। देवी लक्ष्मी की उत्पत्ति भी समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। ऐसे में माना जाता है कि लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान पुष्कर अरण्य क्षेत्र में हुई थी। भगवान विष्णु सबसे पहले यहां पहुंचे थे: पद्म पुराण के अनुसार हजारों वर्ष पूर्व पुष्कर के कनबे क्षेत्र में पंच धाराएं (नदियां) मिलती थीं। इन नदियों में नंदा, कनक, सुप्रभा, सुधा और प्राची शामिल थीं। यह वह स्थान है जहां भगवान विष्णु सबसे पहले धरती पर आए थे। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने यहां 10 वर्ष और भगवान शिव ने 9 वर्ष तक कठोर तपस्या की थी। कनबे में क्षीर सागर नाम का एक तालाब भी है, जहां स्नान करके ऋषि च्यवन ने वृद्ध होने के श्राप से मुक्ति पाई थी। कनबे में भगवान विष्णु की विश्व की सबसे प्राचीन मूर्ति है। इस स्थान पर आसपास के ग्रामीण वर्षों से पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं, लेकिन पुष्कर आने वाले तीर्थयात्रियों को भगवान विष्णु के इस अति प्राचीन स्थान के बारे में बहुत कम जानकारी है। यही कारण है कि सरकार और प्रशासन भी वर्षों से इस स्थान के प्रति उदासीन है।

जन्माष्टमी पर पूरी रात होता है कीर्तन: मंदिर के महंत दामोदर वैष्णव बताते हैं कि कनबे पुष्कर से दूर खजूर के जंगल में स्थित होने के कारण तीर्थयात्रियों को इस पवित्र स्थान के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है। आसपास के दर्जनों गांवों के अलावा अन्य जिलों से भी बड़ी संख्या में लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं। जन्माष्टमी के पर्व पर यहां पूरी रात कीर्तन होता है। अगले दिन मेला लगता है। श्रद्धालुओं का कहना है कि कनबे मंदिर में आने वाले लोगों को यहां विशेष अनुभव होता है। पहली बार आने पर श्रद्धालु की आस्था स्वतः ही मंदिर से जुड़ जाती है। श्रद्धालु नरेंद्र जोशी ने बताया कि वे बचपन से ही अपने माता-पिता के साथ मंदिर आते हैं। जन्माष्टमी के पर्व पर वे हमेशा मंदिर आते हैं। उन्होंने बताया कि पुष्कर आने वाले श्रद्धालुओं को भगवान विष्णु के इस पावन स्थल के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है। ऐसे में वे यहां नहीं पहुंच पाते हैं। यही कारण है कि मंदिर के इतिहास और इसके पौराणिक महत्व के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। जन्माष्टमी पर्व की रात को आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं।

भगवान विष्णु की विश्व की सबसे प्राचीन प्रतिमा : कनबे स्थित प्राचीन मंदिर में शेषनाग पर शयन करते हुए भगवान विष्णु की विश्व की सबसे प्राचीन प्रतिमा है। भगवान विष्णु के चरणों में माता लक्ष्मी जी विराजमान हैं। काले पत्थर से बनी यह प्रतिमा बेहद आकर्षक और सुंदर है। मंदिर के महंत महावीर वैष्णव ने बताया कि पुराणों के अनुसार जगतपिता ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की प्रतिमा का निर्माण किया था। वैष्णव ने बताया कि हरिवंश पुराण के अनुसार भगवान विष्णु की यह अद्भुत विशाल प्रतिमा 4 हजार 79 वर्ष पुरानी है। उन्होंने बताया कि मूर्ति से लिए गए कार्बन से पता चला है कि यह 3200 साल पुरानी है। यह आकलन अमेरिकी वैज्ञानिकों ने किया है, जबकि भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार यह मूर्ति 4 हजार साल पुरानी बताई जा रही है।

श्री राम यहां दो बार आए थे: श्री राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। पुराणों के अनुसार श्री राम दो बार पुष्कर आए थे। कानाबे मंदिर के महंत महावीर वैष्णव ने बताया कि वनवास के दौरान श्री राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ पुष्कर आए थे। यहां गया कुंड में उन्होंने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध किया था। वनवास के दौरान ही श्री राम एक माह तक पुष्कर के वन क्षेत्र कानाबे में रुके थे। दूसरी बार श्री राम अपने भाई भरत के साथ अयोध्या से लंका जाते समय पुष्पक विमान में विभीषण से मिलने यहां रुके थे। दरअसल लंका जाते समय श्री राम ने भरत को वे सभी स्थान दिखाए थे, जहां उन्होंने वनवास के दिन बिताए थे।

7 बार आए थे भगवान श्री कृष्ण: पुराणों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण 7 बार कानाबे आए थे। मंदिर के महंत महावीर वैष्णव ने बताया कि श्री कृष्ण पहली बार मथुरा से द्वारका जाते समय कानाबे में रुके थे। दूसरी बार ऋषि दुर्वासा के अनुरोध पर हंस और डिंबक नामक राक्षसों से लोगों की रक्षा के लिए कृष्ण और बलराम अपनी सेना के साथ यहां आए थे। दोनों शक्तिशाली राक्षसों का वध करने के बाद भगवान कृष्ण के साथ आए कई लोग कण्णय क्षेत्र के आसपास बस गए। इसका उल्लेख हरिवंश पुराण में भी मिलता है। इसके बाद जब भी श्रीकृष्ण द्वारका से मथुरा, कुरुक्षेत्र आते-जाते थे तो यहीं ठहरते थे। महंत वैष्णव बताते हैं कि श्रीकृष्ण के साथ आए लोगों ने यहां आसपास कई गांव बसाए और उनके नाम ब्रज में स्थित गांवों के नामों से मिलते-जुलते रखे, जो बाद में अपभ्रंश हो गए। जैसे गोकुल का नाम गोयला, नंद का नाम नंद और बरसाना का नाम बसेली गांव हो गया।

पुष्कर ने दी थी संसार को मिठास : सृष्टि की रचना करने के बाद जगतपिता ब्रह्मा ने माता लक्ष्मी की आराधना की थी। माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए जगतपिता ब्रह्मा ने पहली बार पुष्कर में गन्ना उत्पन्न किया ताकि संपूर्ण संसार को माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिले। ब्रह्मा ने गन्ने के रस से देवी लक्ष्मी का अभिषेक किया था। तब से संसार को गन्ने की मिठास मिली। बताया जाता है कि एक दशक पहले तक पुष्कर में गन्ने की खूब फसल होती थी, लेकिन बाद में पानी की कमी के कारण यहां के किसानों ने गन्ने की खेती लगभग न के बराबर कर दी।