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जयपुर के जंतर-मंतर में बनी है दुनिया की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी, वीडियो में जाने 300 साल बाद भी कैसे सेकंड्स में बताती है सही समय ?

जयपुर के जंतर-मंतर में बनी है दुनिया की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी, वीडियो में जाने 300 साल बाद भी कैसे सेकंड्स में बताती है सही समय ?
 
जयपुर के जंतर-मंतर में बनी है दुनिया की सबसे बड़ी सूर्य घड़ी, वीडियो में जाने 300 साल बाद भी कैसे सेकंड्स में बताती है सही समय ?

राजस्थान की धरती सिर्फ वीरता, महलों और लोकसंस्कृति के लिए ही नहीं जानी जाती, बल्कि यह विज्ञान और खगोलशास्त्र के ऐतिहासिक चमत्कारों का भी अद्भुत संगम है। इसी श्रृंखला में सबसे उल्लेखनीय स्थान है — जयपुर का ‘जंतर-मंतर’, जहां स्थित है दुनिया की सबसे बड़ी और सटीक सूर्य घड़ी।करीब 300 साल पुरानी यह सूर्य घड़ी (सम्राट यंत्र) आज भी न सिर्फ पर्यटकों को आकर्षित करती है, बल्कि वैज्ञानिकों के लिए एक जीवंत आश्चर्य बनी हुई है। आइए जानते हैं क्या खास है इस ऐतिहासिक धरोहर में और क्यों इसे विश्व धरोहर (UNESCO World Heritage Site) का दर्जा दिया गया है।


जंतर-मंतर का इतिहास: राजा की विज्ञान के प्रति अद्भुत रुचि
जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने 18वीं शताब्दी में इस अद्भुत खगोल-वेधशाला का निर्माण करवाया। सवाई जय सिंह एक दूरदर्शी और वैज्ञानिक सोच वाले राजा थे। वे खगोलशास्त्र और समय-ज्ञान में गहरी रुचि रखते थे। उन्होंने महसूस किया कि तत्कालीन खगोल गणनाएं सटीक नहीं हैं और इस कमी को पूरा करने के लिए उन्होंने भारत के पाँच प्रमुख शहरों — दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, वाराणसी और मथुरा — में जंतर-मंतर वेधशालाओं का निर्माण करवाया।जयपुर का जंतर-मंतर इन सभी में सबसे विशाल और संरक्षित है, और यही इसे अद्वितीय बनाता है।

सम्राट यंत्र: सूर्य घड़ी जो समय बताती है सेकंड्स के सटीक अंतर से
जंतर-मंतर में मौजूद सबसे विशाल यंत्र है — सम्राट यंत्र, जिसे ‘सूर्य घड़ी’ भी कहा जाता है। यह दुनिया की सबसे बड़ी पत्थर की बनी हुई घड़ी है जो केवल सूर्य की छाया के आधार पर समय की गणना करती है।इस यंत्र की ऊँचाई करीब 27 मीटर है और इसका झुकाव पृथ्वी के अक्षीय झुकाव के अनुसार 27 डिग्री पर किया गया है। सम्राट यंत्र दिन में 2 सेकंड तक की सटीकता से समय बता सकता है — और यह आज भी काम करता है!जब सूर्य की किरणें इस घड़ी पर पड़ती हैं, तो इसकी छाया की लंबाई और स्थिति देखकर समय निकाला जाता है। यह तकनीक आज के आधुनिक उपकरणों से भी पीछे नहीं है — यही इसकी सबसे बड़ी खासियत है।

यहां और भी हैं अद्भुत यंत्र
जंतर-मंतर सिर्फ सूर्य घड़ी तक सीमित नहीं है। यहां कुल 19 खगोलीय यंत्र हैं, जो विभिन्न प्रकार की गणनाओं और अवलोकनों के लिए उपयोग किए जाते थे:
जयप्रकाश यंत्र: दो अर्धगोलाकार संरचनाएं जो आकाशीय पिंडों की स्थिति बताने में मदद करती हैं।
राम यंत्र: खगोलीय ऊँचाई और कोणों की माप के लिए उपयोगी।
दक्षिणोत्तर भित्ति यंत्र: दोपहर के समय सूर्य की स्थिति जानने के लिए।
कृन्तिवृत्त यंत्र: ग्रहों के गतियों और राशि चक्रों का अध्ययन करने के लिए।
इन सभी यंत्रों को पत्थर और ब्रांज़ से बनाया गया है, और इनके मापदंड इतने सटीक हैं कि वैज्ञानिक आज भी इनके डेटा का उपयोग कर सकते हैं।

पर्यटन और वैश्विक मान्यता
2010 में UNESCO ने जयपुर के जंतर-मंतर को "विश्व धरोहर स्थल" घोषित किया, जिससे यह न सिर्फ भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रसिद्ध हुआ। हर साल लाखों पर्यटक यहां आते हैं — देश और विदेश दोनों से।यह स्थल विशेष रूप से छात्रों, शोधकर्ताओं और विज्ञान प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। कई अंतरराष्ट्रीय डॉक्यूमेंट्रीज़, रिसर्च प्रोजेक्ट्स और फोटोग्राफिक अध्ययन भी यहां किए गए हैं।

वर्तमान में रखरखाव और संरक्षण
राजस्थान सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) मिलकर इस ऐतिहासिक स्थल को संजोए हुए हैं। समय-समय पर इसके यंत्रों की मरम्मत, परिसर की सफाई और पर्यटकों के लिए गाइडेड टूर की व्यवस्था की जाती है। जंतर-मंतर के संरक्षण में स्थानीय लोग भी जुड़ रहे हैं, जिससे यह धरोहर भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहे।

शैक्षणिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सीख
आज जबकि हम डिजिटल घड़ियों और स्मार्ट टेक्नोलॉजी से घिरे हैं, जंतर-मंतर हमें यह याद दिलाता है कि प्राचीन भारत विज्ञान, गणित और खगोलशास्त्र में कितना आगे था। 18वीं सदी में, जब दुनिया का अधिकांश हिस्सा समय मापने में संघर्ष कर रहा था, भारत ने ऐसा यंत्र तैयार किया जो आज भी बेजोड़ है।

निष्कर्ष:
जयपुर का जंतर-मंतर महज़ एक दर्शनीय स्थल नहीं, बल्कि यह भारत की वैज्ञानिक और स्थापत्य विरासत का अद्भुत प्रतीक है। सम्राट यंत्र जैसी सूर्य घड़ी हमें यह समझाने के लिए काफी है कि विज्ञान केवल किताबों या प्रयोगशालाओं में नहीं होता — वह हमारे इतिहास और संस्कृति में भी रचा-बसा है। अगर आप जयपुर आएं और जंतर-मंतर न देखें, तो यकीन मानिए आपने भारत की गौरवशाली वैज्ञानिक विरासत को महसूस करने का एक बड़ा मौका खो दिया।