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राजपूतों की वीरता और शौर्य का प्रतीक है चित्तौड़गढ़ का विजय स्तम्भ, 3 मिनट के वायरल वीडियो में देखे गौरवशाली इतिहास

राजपूतों की वीरता और शौर्य का प्रतीक है चित्तौड़गढ़ का विजय स्तम्भ, 3 मिनट के वायरल वीडियो में देखे गौरवशाली इतिहास
 
राजपूतों की वीरता और शौर्य का प्रतीक है चित्तौड़गढ़ का विजय स्तम्भ, 3 मिनट के वायरल वीडियो में देखे गौरवशाली इतिहास

भारत की ऐतिहासिक धरोहरों में चित्तौड़गढ़ का विजय स्तम्भ एक ऐसा स्मारक है, जो न केवल स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि भारतीय वीरता, बलिदान और आत्मसम्मान की जीवंत कहानी भी सुनाता है। राजस्थान के चित्तौड़गढ़ किले के अंदर स्थित यह स्तम्भ आज भी अपनी भव्यता और ऐतिहासिक महत्व के कारण लाखों पर्यटकों को आकर्षित करता है। आइए जानते हैं विजय स्तम्भ के इतिहास, निर्माण, वास्तुकला और इसके पीछे छिपे प्रेरणादायक किस्सों के बारे में।

विजय स्तम्भ का निर्माण
विजय स्तम्भ का निर्माण 15वीं सदी में मेवाड़ के महाराणा कुम्भा ने करवाया था। इसका निर्माण कार्य 1442 ईस्वी में शुरू हुआ और 1449 ईस्वी में पूरा हुआ। इस स्तम्भ का निर्माण मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर विजय के उपलक्ष्य में करवाया गया था। इस कारण इसे "विजय स्तम्भ" कहा गया। विजय स्तम्भ सिर्फ एक युद्ध में जीत का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह मेवाड़ की असाधारण सैन्य शक्ति और रणनीतिक कौशल का भी प्रतीक है।

स्थापत्य और डिजाइन
विजय स्तम्भ लगभग 37.19 मीटर (करीब 122 फीट) ऊंचा है और इसकी 9 मंजिलें हैं। इसे राजस्थान की विशिष्ट स्थापत्य शैली में लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से बनाया गया है। स्तम्भ के भीतर 157 संकरे घुमावदार सीढ़ियों से चोटी तक जाया जा सकता है। ऊपर से चित्तौड़गढ़ का विहंगम दृश्य दिखाई देता है, जो पर्यटकों के लिए किसी रोमांच से कम नहीं होता।स्तम्भ की दीवारों पर हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ, पौराणिक कथाओं के दृश्य और जटिल नक्काशियाँ उकेरी गई हैं। हर मंजिल पर सुंदर मंडप (छत्रियाँ) बने हुए हैं, जो स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। इसकी खासियत यह है कि स्तम्भ के चारों ओर भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की सुंदर मूर्तियाँ खुदी हुई हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
विजय स्तम्भ न केवल एक ऐतिहासिक इमारत है, बल्कि यह मेवाड़ के गौरव और आत्मगौरव का भी प्रतीक है। स्तम्भ की दीवारों पर संस्कृत शिलालेख अंकित हैं, जिनमें मेवाड़ के शासकों की वंशावली और उनके वीर कार्यों का विवरण मिलता है। यह भारत के इतिहास में धर्म, संस्कृति और वीरता की अमिट छाप छोड़ता है।कहा जाता है कि विजय स्तम्भ का निर्माण केवल सत्ता के प्रदर्शन के लिए नहीं किया गया था, बल्कि इसे धर्म, संस्कृति और आत्मसम्मान के प्रतीक के रूप में भी स्थापित किया गया था। महाराणा कुम्भा स्वयं संस्कृत के महान विद्वान थे और उन्होंने इस स्तम्भ को धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ने का भी प्रयास किया।

विजय स्तम्भ और आज का समय
आज विजय स्तम्भ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है। यह विश्व धरोहर स्थल चित्तौड़गढ़ किले का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे UNESCO द्वारा विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। हर साल लाखों पर्यटक देश-विदेश से इस ऐतिहासिक स्थल को देखने आते हैं।रात के समय विजय स्तम्भ को विशेष लाइटिंग से सजाया जाता है, जो इसकी सुंदरता को और भी बढ़ा देता है। इसकी भव्यता और ऐतिहासिक गाथा आज भी देशवासियों को प्रेरणा देती है और आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारे गौरवशाली अतीत की झलक प्रस्तुत करती है।

विजय स्तम्भ से जुड़े रोचक तथ्य
विजय स्तम्भ का निर्माण महाराणा कुम्भा ने अपनी विजय के स्मारक के रूप में करवाया था, जो उस समय के भारतीय स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण है।
स्तम्भ की नक्काशियों में रामायण और महाभारत के प्रसंगों के चित्रण भी शामिल हैं।
यह स्तम्भ मुख्यतः हिंदू धर्म की विरासत को दर्शाता है, जो उस दौर की सांस्कृतिक समृद्धि का प्रमाण है।
विजय स्तम्भ के शीर्ष पर एक छोटा सा मंडप है, जहां से चित्तौड़गढ़ किले और आसपास के इलाके का अद्भुत नजारा दिखाई देता है।
स्तम्भ के निर्माण में उपयोग की गई शिल्प कला इतनी अद्भुत है कि यह आज भी विशेषज्ञों और इतिहासकारों को चकित करती है।

विजय स्तम्भ का संदेश
विजय स्तम्भ केवल एक पत्थर की इमारत नहीं है। यह उस समय के भारतीय शासकों की दूरदर्शिता, साहस, संघर्ष और जीत के जज्बे का प्रतीक है। यह आज भी हमें बताता है कि चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, धैर्य, पराक्रम और संकल्प से हर कठिनाई पर विजय पाई जा सकती है।

निष्कर्ष
चित्तौड़गढ़ का विजय स्तम्भ भारतीय इतिहास का वह अद्भुत अध्याय है, जिसमें वीरता, स्थापत्य कला और सांस्कृतिक चेतना का एक भव्य संगम दिखाई देता है। यह न सिर्फ अतीत की गौरवगाथा का स्मरण कराता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी अपनी जड़ों से जुड़ने और अपने इतिहास पर गर्व करने की प्रेरणा देता है।आज जब हम आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं, ऐसे स्मारक हमें हमारी विरासत का एहसास कराते हैं और बताते हैं कि हमारी सभ्यता ने कितनी ऊंचाइयों को छुआ है। चित्तौड़गढ़ का विजय स्तम्भ भारतीय संस्कृति की उसी महान यात्रा का प्रतीक है, जो युगों-युगों तक अमर रहेगी।