Aapka Rajasthan

रियासत काल की अनोखी विरासत! इस मोहल्ले में पाले जाते थे हिरण और बारहसिंगे, जानिए इस अनोखी परंपरा के बारे में सबकुछ

रियासत काल की अनोखी विरासत! इस मोहल्ले में पाले जाते थे हिरण और बारहसिंगे, जानिए इस अनोखी परंपरा के बारे में सबकुछ
 
रियासत काल की अनोखी विरासत! इस मोहल्ले में पाले जाते थे हिरण और बारहसिंगे, जानिए इस अनोखी परंपरा के बारे में सबकुछ

जयपुर शहर के परकोटे में जिसे पुराना जयपुर भी कहा जाता है, यहां का हर मोहल्ला और हर गली किसी खास वजह से जानी जाती है। परकोटे के रामगंज में एक मोहल्ला है, जिसे हिरणवालान के नाम से जाना जाता है। इस नाम के पीछे असली वजह यह है कि रियासत काल में इस मोहल्ले के हर घर में हिरण और बारहसिंगा पाले जाते थे और उन्हें प्रशिक्षित किया जाता था। हालांकि आजादी के बाद जब राजशाही का दौर खत्म हुआ और लोकतंत्र लागू हुआ तो वाइल्ड लाइफ एक्ट बनने के बाद घरों में हिरण, बारहसिंगा और दूसरे जंगली जानवरों को पालने पर रोक लगा दी गई।

भले ही अब इस मोहल्ले में हिरण और बारहसिंगा जैसे जंगली जानवर नहीं पाले जाते, लेकिन यह मोहल्ला आज भी मोहल्ला हिरणवालान के नाम से जाना जाता है। यहां रहने वाले बुजुर्ग लोग भी अपनी आंखों से बताते हैं और दावा करते हैं कि घरों में हिरण पाले जाते थे। रामगंज और घाटगेट के बीच बसा यह मोहल्ला पहले काफी खुला हुआ था, लेकिन आबादी बढ़ने के बाद यह इलाका भी सिमट गया। अब छोटी-छोटी गलियों से होते हुए मोहल्ला हिरणवालान पहुंचा जा सकता है। क्या कहते हैं इतिहासकार?: जयपुर के इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत बताते हैं कि रियासत काल में छोटी चौपड़ के पास स्थित चौगान स्टेडियम में प्रशिक्षित जंगली जानवरों की कुश्ती होती थी। रामगंज के पास मोहल्ला हिरणवालान स्थित है, वहां भी हिरण और हरिण पाले जाते थे, जिन्हें स्टेडियम में लड़ाया जाता था। इसे देखने के लिए कई बार अंग्रेज अफसर आते थे, जयपुर के महाराजा और अन्य सामंत और जागीरदार भी आते थे।

घरों में पाले जाते थे जंगली जानवर: प्रसिद्ध शिक्षाविद् और जयपुर के इतिहास के जानकार सुनील शर्मा बताते हैं कि जब मुगल साम्राज्य बिखर रहा था, तब दिल्ली में मुगल सल्तनत के अधीन काम करने वाले कलाकारों और पशु-पक्षियों को पालने वाले लोगों को जयपुर के कछवाहा राजा जयपुर लाए थे। यहां उन्हें अलग-अलग इलाकों में बसाया गया। हिरण और हरिण जैसे जानवरों को पालने वाले लोगों को रामगंज के पास लाकर बसाया गया और इसका नाम मोहल्ला हिरणवालान रखा गया। उस जमाने में यह आम बात थी। पहले जयपुर इतना बड़ा शहर नहीं था। सब कुछ प्राचीर तक ही सीमित था। आबादी बढ़ने के साथ मोहल्ले और गलियां भी छोटी होती गईं, लेकिन आज भी यह मोहल्ला हिरणवालान के नाम से जाना जाता है। हिरणवालान के बारे में कई भारतीय और विदेशी इतिहासकारों ने भी काफी कुछ लिखा है।

महाराजा मानसिंह ने इन्हें आमेर में बसाया था: मोहल्ला हिरणवालान निवासी 91 वर्षीय मिर्जा अशफाक बेग ने बताया कि जब जयपुर बसा था, तब जयपुर के तत्कालीन राजाओं ने हाथी, शेर, तेंदुआ, हिरण और अन्य जंगली जानवर पालने वाले परिवारों को अलग-अलग मोहल्लों में बसाया था। हिरण पालने वालों को रामगंज के पास लाकर बसाया गया और इसका नाम मोहल्ला हिरणवालान रखा गया। हिरण और बारहसिंगा पालने वाले परिवारों को एक हिरण के बदले दो बोरी गेहूं और उस समय के दो रुपए जयपुर दरबार की ओर से उनकी देखभाल के लिए दिए जाते थे। उनका काम सिर्फ हिरणों को प्रशिक्षित करना था।

चौहान मैदान में होती थी जानवरों की लड़ाई: मिर्जा अशफाक बेग ने बताया कि उन्होंने भी बचपन में घरों में हिरणों को पाला जाता देखा था। रियासतकाल में उनके दादा हैदर बेग और चाचा नासिर बेग जो शिकारखाने में काम करते थे, वे भी अपने घरों में हिरण और हरिण पालते थे। जयपुर के राजाओं को जानवरों की कुश्ती और कुश्ती देखने का शौक था। इसके लिए छोटी चौपड़ के पास चौहान मैदान में हाथी, शेर, तेंदुए और हरिण की लड़ाई देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। यहां तक ​​कि जब ब्रिटिश राज के बड़े अधिकारी जयपुर आते थे तो उनके लिए चौहान मैदान में जानवरों की लड़ाई और कुश्ती का आयोजन किया जाता था। उन्होंने बताया कि इसी तर्ज पर हरिण और हिरणों को भी प्रशिक्षित किया जाता था।

इस समय तक पाले जाते थे हिरण और अन्य जानवर: वे बताते हैं कि 19वीं सदी में जयपुर के अंतिम राजा महाराजा मानसिंह द्वितीय के शासनकाल तक घरों में हिरण, तेंदुए, शेर और अन्य जंगली जानवर पाले जाते थे। जब देश आजाद हुआ, राजशाही खत्म हुई और लोकतंत्र लागू हुआ तो वाइल्ड लाइफ एक्ट बना। इसके बाद सभी जंगली जानवरों को पालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। जिन लोगों के घरों में हिरण व अन्य जानवर थे, उन्हें जयपुर चिड़ियाघर ले जाकर छोड़ दिया गया।