राजस्थान की शाही सब्जी जिसे लोग चटकारे ले-लेकर खाते है, कीमत के मामले में काजू को भी छोड़ देती है पीछे

राजस्थान अपनी समृद्ध संस्कृति और अनोखे खान-पान के लिए देश-विदेश में मशहूर है। दाल-बाटी चूरमा हो या गट्टे की सब्जी, हर कोई इन्हें बड़े चाव से खाता है। लेकिन, गर्मी का मौसम आते ही मरुधरा की एक और सब्जी है जिसके बिना यह मौसम अधूरा सा लगता है। इस मौसम के आते ही राजस्थान के हर घर में इसकी मनमोहक खुशबू लोगों का पेट भरने लगती है। हम बात कर रहे हैं 'केर सांगरी' की, जो अपनी अनूठी पहचान और बेमिसाल स्वाद के लिए जानी जाती है।
जीआई टैग से मिली खास पहचान
हाल ही में केंद्र सरकार ने राजस्थान के इस अमूल्य व्यंजन को भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग प्रदान किया है। इस महत्वपूर्ण कदम से अब केर सांगरी की पहचान मरुधरा की माटी के बिना अधूरी नहीं लगेगी, बल्कि इसकी विशिष्टता को कानूनी संरक्षण भी मिल गया है। मुख्य रूप से राजस्थान में पाई जाने वाली यह सब्जी अपनी प्राकृतिक उत्पत्ति और औषधीय गुणों के लिए भी प्रसिद्ध है।
राजस्थान में कहां मिलती है केर सांगरी
पश्चिमी राजस्थान में प्राकृतिक रूप से उगने वाली केर-सांगरी सूखी सब्जी के रूप में देश-दुनिया में खास पहचान रखती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे बोने का कोई मौसम नहीं होता। यह पूरी तरह प्राकृतिक जलवायु पर निर्भर है। केर और सांगरी दोनों को बोया नहीं जाता, ये अपने आप उगती हैं। यही वजह है कि इसे किसी औषधि से कम नहीं माना जाता। अपने बेहतरीन स्वाद और खास तौर पर पूरी तरह प्राकृतिक रूप से पैदा होने के कारण केर सांगरी के साथ लोगों की पहली पसंद बन गई है।
स्वाद और सेहत का अनूठा संगम
गर्मी के दिनों में जब ताजी हरी सब्जियों की उपलब्धता कम होती है, केर सांगरी राजस्थानियों की थाली का अहम हिस्सा बन जाती है। इसके बिना खाने की थाली फीकी रह जाती है। राजस्थान के हर घर में इसे सुखाकर सुरक्षित रखा जाता है, ताकि यह साल भर उपलब्ध रहे। इसकी सब्जी बनाने में समय और कला दोनों लगती है, लेकिन इसका स्वाद इतना लजीज होता है कि लोग इसे चाव से खाते हैं। केर सांगरी न सिर्फ स्वाद में लजीज होती है, बल्कि सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद मानी जाती है। इसमें फाइबर की मात्रा अधिक होती है, जो पाचन में सहायक है और शरीर को गर्मी के हानिकारक प्रभावों से बचाने में मदद करता है।
महंगाई में भी क्रेज बरकरार: काजू से भी महंगा!
केर सांगरी के प्रति दीवानगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बाजार में इसकी कीमत कई बार काजू से भी ज्यादा हो जाती है। इसकी सीमित उपलब्धता और प्राकृतिक उपज इसे और भी महंगा बनाती है। इसके बावजूद राजस्थान के लोग इसे खरीदने और अपने खाने का हिस्सा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते, क्योंकि उन्हें पता है कि यह महज सब्जी नहीं, रेगिस्तान का अनमोल तोहफा है।