राजस्थान हाईकोर्ट बोला केवल नॉमिनेशन से नहीं मिलता पेंशन या संपत्ति का हक, फुटेज में समझें पेंशन पर दो पत्नियों का दावा
राजस्थान हाईकोर्ट ने पारिवारिक पेंशन को लेकर दो महिलाओं के बीच चल रहे विवाद में अहम फैसला सुनाया है। जस्टिस फरजंद अली की अदालत ने रिपोर्टेबल जजमेंट में स्पष्ट किया कि केवल नॉमिनेशन (नामांकन) में नाम होने से किसी को पेंशन या संपत्ति का मालिकाना हक नहीं मिल जाता।
कोर्ट ने कहा कि नॉमिनी केवल एक ट्रस्टी की तरह होता है, जिसका काम संपत्ति या पेंशन का संचालन करना है। असली हकदार वही होगा जो कानूनन उत्तराधिकारी है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी की वैवाहिक वैधता या 'असली पत्नी' कौन है, यह तय करना हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। इसके लिए गवाहों और सबूतों की पूरी जांच आवश्यक होती है।
यह मामला 2016 से लंबित था और इसमें दोनों पक्षों ने पारिवारिक पेंशन के वितरण को लेकर याचिका दायर की थी। अदालत ने याचिका खारिज करते हुए दोनों पक्षों को सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर करने की अनुमति दी है।
जस्टिस फरजंद अली ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि पेंशन या संपत्ति के वास्तविक हकदार को पहचानने के लिए कानूनी उत्तराधिकारियों का निर्धारण आवश्यक है। नॉमिनी केवल उस संपत्ति या पेंशन के संचालन के लिए जिम्मेदार होता है, लेकिन उसका स्वामित्व का अधिकार नहीं होता।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि ऐसे मामलों में सिविल कोर्ट में साक्ष्यों और गवाहों की पूरी जाँच के बाद ही निर्णय लिया जा सकता है। अदालत ने यह कदम इसलिए उठाया क्योंकि यह मामला पारिवारिक और संवेदनशील प्रकृति का था।
विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत का यह निर्णय नॉमिनेशन और वास्तविक उत्तराधिकारियों के बीच अंतर को स्पष्ट करता है। इससे भविष्य में ऐसे मामलों में गलतफहमी और विवादों को रोकने में मदद मिलेगी।
कोर्ट ने यह भी ध्यान दिलाया कि विवाह की वैधता और असली पत्नी का निर्धारण केवल सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है। उच्च न्यायालय ने यह साफ किया कि हाईकोर्ट केवल कानूनन उत्तराधिकारी और नॉमिनेशन के अधिकारों की सीमाओं को स्पष्ट कर सकता है।
इस फैसले के बाद दोनों पक्ष अब सिविल कोर्ट में अपने दावे पेश कर सकते हैं। यह मामला राजस्थान में पारिवारिक पेंशन और उत्तराधिकार से जुड़े विवादों के लिए महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है।
