राजस्थान में निकाय चुनावों की देरी का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, फुटेज में जानें 19 दिसंबर को होगी सुनवाई
राजस्थान में शहरी निकायों का कार्यकाल समाप्त हुए एक वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बावजूद चुनाव नहीं कराए जाने का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। इस महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में 19 दिसंबर को निर्धारित की गई है। कांग्रेस नेता और पूर्व विधायक संयम लोढ़ा ने राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर की है, जिसमें शहरी निकायों के चुनाव तत्काल कराए जाने की मांग की गई है।
दरअसल, राजस्थान में नगर पालिकाओं, नगर परिषदों और नगर निगमों का कार्यकाल पूरा होने के बाद लंबे समय से प्रशासकों के माध्यम से कामकाज चलाया जा रहा है। विपक्ष का आरोप है कि निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के अभाव में लोकतांत्रिक व्यवस्था कमजोर हो रही है और जनता को इसका नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसी मुद्दे को लेकर संयम लोढ़ा ने पहले राजस्थान हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
इस मामले में राजस्थान हाईकोर्ट ने 14 नवंबर को अहम फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने लोढ़ा की याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को अप्रैल 2026 तक शहरी निकाय चुनाव करवाने के आदेश दिए थे। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि सरकार को समयबद्ध तरीके से चुनाव प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए, ताकि स्थानीय स्वशासन की लोकतांत्रिक व्यवस्था बहाल हो सके।
हालांकि, इस फैसले से संतुष्ट न होते हुए संयम लोढ़ा ने अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। उनकी दलील है कि चुनाव को अप्रैल 2026 तक टालना संविधान की भावना और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। याचिका में कहा गया है कि शहरी निकायों का कार्यकाल खत्म हुए एक साल से ज्यादा हो चुका है और अब और देरी जनता के अधिकारों का हनन है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप कर तत्काल चुनाव करवाने के आदेश देने चाहिए।
लोढ़ा ने अपनी याचिका में यह भी उल्लेख किया है कि संविधान के अनुच्छेद 243U के तहत शहरी निकायों का कार्यकाल समाप्त होने से पहले या अधिकतम छह महीने के भीतर चुनाव कराना अनिवार्य है। ऐसे में चुनावों में लगातार हो रही देरी असंवैधानिक है। उनका कहना है कि प्रशासकों के जरिए नगर निकायों का संचालन करना केवल अस्थायी व्यवस्था हो सकती है, इसे लंबे समय तक नहीं खींचा जा सकता।
राजनीतिक रूप से भी यह मामला काफी अहम माना जा रहा है। कांग्रेस इस मुद्दे पर राज्य सरकार को घेर रही है, जबकि सरकार का तर्क है कि परिसीमन, ओबीसी आरक्षण और अन्य प्रक्रियाओं के चलते चुनाव में देरी हुई है। अब सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से यह तय हो सकता है कि राज्य में शहरी निकाय चुनावों की समयसीमा क्या होगी।
19 दिसंबर को होने वाली सुनवाई पर सभी की निगाहें टिकी हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला न केवल राजस्थान बल्कि देशभर में स्थानीय निकाय चुनावों की समयबद्धता को लेकर एक महत्वपूर्ण नजीर साबित हो सकता है।
