माउंट आबू में 5 हजार साल से दफन है रसिया बालम और कुंवारी कन्या की लव स्टोरी, आज भी अनजान है लोग
माउंट आबू की खूबसूरत वादियां 5,000 साल पुरानी प्रेम कहानी का राज समेटे हुए हैं। यह प्रेम कहानी रसिया बालम और एक कुंवारी लड़की से जुड़ी है, जिसे आज भी वहां के लोग आस्था और प्यार से याद करते हैं। यह प्रेम कहानी सिर्फ एक लोक कथा नहीं है, बल्कि नक्की झील और देलवाड़ा के पीछे पुराने मंदिरों में पत्थर की मूर्तियों के रूप में भी ज़िंदा है। इसका संदर्भ एक कहानी से जुड़ा है। माना जाता है कि करीब 5,000 साल पहले देलवाड़ा के एक मज़दूर रसिया बालम को एक राजकुमारी से प्यार हो गया था। लेकिन राजकुमारी के पिता उनकी शादी के लिए तैयार नहीं थे। राजकुमारी के पिता ने शादी के लिए एक नामुमकिन शर्त रखी: जो कोई भी एक रात में अपने नाखूनों से झील खोद देगा, उसे उनका दामाद माना जाएगा। माना जाता है कि रसिया बालम ने यह शर्त मान ली। अपनी ज़बरदस्त हिम्मत और प्यार की ताकत से उन्होंने पूरी रात काम करके नक्की झील को आकार दिया।
राजकुमारी की माँ ने साज़िश रची
लेकिन, राजकुमारी की माँ इस शादी के लिए तैयार नहीं थी। कहा जाता है कि उसने रात में मुर्गे की बांग दी, जिससे रसिया बालम को लगा कि सुबह हो गई है और वह शर्त हार गया है। लेकिन जब उसे सच्चाई पता चली, तो वह दुख से मर गया। कहा जाता है कि उसके श्राप से पहले, राजकुमारी की माँ, रसिया बालम और राजकुमारी सभी पत्थर की मूर्तियों में बदल गए थे।
नए जोड़े यहाँ आशीर्वाद लेते हैं
देल्वाड़ा मंदिर के पीछे मौजूद रसिया बालम-कुंवारी कन्या मंदिर की मूर्तियाँ इस घटना से जुड़ी हैं। नए जोड़े और प्रेमी यहाँ आशीर्वाद लेने आते हैं। माना जाता है कि प्रेम कहानी अधूरी रहने के कारण, स्थानीय लोग आज भी राजकुमारी की माँ की मूर्ति पर पत्थर चढ़ाते हैं, जिससे वहाँ पत्थरों का ढेर लग जाता है।
मान्यता: चारों युग पूरे होने के बाद पुनर्मिलन
मान्यता है कि जब चारों युग पूरे हो जाएँगे, तो यह अमर जोड़ा फिर से मिल जाएगा। मंदिर परिसर में दो खास पेड़ों को "रसिया बालम का तोरण" कहा जाता है, और उनके बीच बना हवन कुंड मनचाहे मिलन का प्रतीक है। यह कहानी प्यार, समर्पण और धोखे की एक अनोखी गाथा है, जो सदियों से माउंट आबू की घाटियों में गूंजती आ रही है।
