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इतिहास का अजेय योद्धा! वायरल डॉक्यूमेंट्री में जानिए कुंभलगढ़ किले पर हुए प्रमुख आक्रमणों की कहानी और कैसे रहा यह शत्रुओं के लिए अभेद्य

इतिहास का अजेय योद्धा! वायरल डॉक्यूमेंट्री में जानिए कुंभलगढ़ किले पर हुए प्रमुख आक्रमणों की कहानी और कैसे रहा यह शत्रुओं के लिए अभेद्य
 
इतिहास का अजेय योद्धा! वायरल डॉक्यूमेंट्री में जानिए कुंभलगढ़ किले पर हुए प्रमुख आक्रमणों की कहानी और कैसे रहा यह शत्रुओं के लिए अभेद्य

राजस्थान की वीरभूमि मेवाड़ की मिट्टी में शौर्य और बलिदान की गाथाएं रची-बसी हैं। इस धरती ने कई दुर्गों को जन्म दिया है, लेकिन इनमें कुंभलगढ़ किला एक ऐसा नाम है जो न केवल स्थापत्य और प्राकृतिक सुरक्षा के लिहाज से अद्भुत है, बल्कि अपने अजेय इतिहास के लिए भी जाना जाता है। अरावली पर्वत की गोद में बसा यह किला अपनी विशाल दीवारों, रणनीतिक स्थिति और ऐतिहासिक घटनाओं के कारण अद्वितीय बन गया है।

महाराणा कुंभा का निर्माण और रणनीतिक सोच

कुंभलगढ़ का निर्माण 15वीं शताब्दी में महाराणा कुंभा ने करवाया था। इसे 1443 ईस्वी में बनवाया गया और इसे पूरा करने में करीब 15 साल लगे। यह किला 1100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और इसकी दीवारें करीब 36 किलोमीटर लंबी हैं, जिसे भारत की ‘ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया’ भी कहा जाता है। इस दुर्ग की बनावट इतनी सुदृढ़ और रणनीतिक है कि यह लंबे समय तक शत्रुओं के लिए अभेद्य रहा।

किसने किया इस अजेय दुर्ग पर आक्रमण?

इतिहास में दर्ज कई घटनाएं यह बताती हैं कि कुंभलगढ़ किला कई शासकों के लिए एक आक्रोश और ईर्ष्या का केंद्र बना रहा। हालांकि इस पर कई आक्रमण हुए, लेकिन इसे जीतना आसान नहीं था। आइए जानते हैं किन-किन शक्तिशाली शासकों ने कुंभलगढ़ पर आक्रमण करने की कोशिश की:

1. मलिक शाह और गुजरात सल्तनत का आक्रमण

महाराणा कुंभा के शासनकाल में गुजरात सल्तनत के शासक मलिक शाह ने इस किले पर हमला किया था। मगर दुर्ग की ऊंचाई, मजबूत दीवारें और महाराणा कुंभा की रणनीति के आगे वह असफल रहा। कुंभलगढ़ के किले में पानी और राशन की उत्तम व्यवस्था होने के कारण दीर्घकालीन घेराबंदी भी बेअसर हो गई।

2. मुगल सम्राट अकबर का अभियान

कुंभलगढ़ का सबसे बड़ा आक्रमण तब हुआ जब मुगल सम्राट अकबर ने 1576 में इसे जीतने के लिए विशाल सेना भेजी। यह हमला महाराणा प्रताप के संघर्ष काल में हुआ था। अकबर की फौज ने कुंभलगढ़ को घेरे में लिया, लेकिन उसकी जीत तब संभव हो पाई जब राजपूतों के कुछ गद्दारों ने सहायता की। हालांकि यह कब्जा ज्यादा समय नहीं चला और मेवाड़ के वीर योद्धाओं ने इसे वापस जीत लिया।

3. औरंगज़ेब का असफल प्रयास

मुगल बादशाह औरंगज़ेब ने भी इस किले को जीतने का प्रयास किया। उसने अपने सेनापतियों को कुंभलगढ़ भेजा लेकिन उसका भी प्रयास नाकाम रहा। किले की प्राकृतिक बनावट, घाटियों और पहाड़ियों के बीच की स्थिति ने किसी भी बाहरी शक्ति के लिए इसे जीतना बेहद कठिन बना दिया।

4. मराठा आक्रमण और अस्थायी कब्जा

18वीं शताब्दी में मराठाओं ने मेवाड़ क्षेत्र पर आक्रमण किया और कुंभलगढ़ पर भी अधिकार करने की कोशिश की। उन्होंने कुछ समय के लिए किले पर नियंत्रण पाया लेकिन यह स्थायी नहीं रहा। मेवाड़ के राणाओं ने अपने अस्तित्व और सम्मान की रक्षा के लिए इसे पुनः वापस हासिल कर लिया।

5. ब्रिटिश औपनिवेशिक दौर और अंतिम छाया

अंग्रेजों के भारत आगमन के बाद भी कुंभलगढ़ उनके निशाने पर आया, लेकिन चूंकि ब्रिटिश प्रशासनिक रणनीति युद्ध से ज़्यादा समझौते और सहयोग पर आधारित थी, उन्होंने इस किले को सीधे तौर पर नहीं जीता। हालांकि 19वीं सदी के अंत में यह भी ब्रिटिश अधीनता में आ गया।

क्यों कहलाता है कुंभलगढ़ "अजेय किला"?

इतिहास में दर्ज 84 बार हमले हुए, लेकिन कुंभलगढ़ केवल एक बार ही किसी बाहरी आक्रांता के पूर्ण नियंत्रण में जा सका — वह भी राजनीतिक धोखे के कारण, युद्ध के दम पर नहीं। यही कारण है कि इतिहासकार इसे ‘अजेय दुर्ग’ कहते हैं।कुंभलगढ़ न केवल एक स्थापत्य चमत्कार है, बल्कि यह मेवाड़ की संघर्ष, स्वाभिमान और स्वतंत्रता की प्रतीक भी है। यहां महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था, जो स्वयं स्वतंत्रता संग्राम के अमर योद्धा माने जाते हैं।