अरावली पर्वतमाला को लेकर विवाद फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, वीडियो में देखें नई परिभाषा पर कोर्ट ने लिया संज्ञान, आज होगी सुनवाई
अरावली पर्वतमाला को लेकर चल रहा विवाद एक बार फिर देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंच गया है। अरावली की नई परिभाषा को लेकर उठे सवालों के बीच सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया है। दरअसल, हाल ही में अरावली पर्वतमाला की परिभाषा को सीमित करते हुए यह प्रस्ताव सामने आया कि केवल वही पहाड़ियां अरावली मानी जाएंगी, जिनकी ऊंचाई जमीन से 100 मीटर या उससे अधिक होगी। इस नई परिभाषा का पर्यावरणविदों, सामाजिक संगठनों और कई विशेषज्ञों ने विरोध किया है।
माना जा रहा है कि इस परिभाषा के लागू होने से अरावली क्षेत्र का बड़ा हिस्सा संरक्षित दायरे से बाहर हो सकता है, जिससे पर्यावरणीय संतुलन पर गंभीर असर पड़ने की आशंका है। अरावली पर्वतमाला देश की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है और यह राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात के कई हिस्सों में फैली हुई है। यह क्षेत्र भूजल संरक्षण, जलवायु संतुलन और जैव विविधता के लिहाज से बेहद अहम माना जाता है।
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई का फैसला किया है। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली वैकेशन बेंच सोमवार को इस मामले की सुनवाई करेगी। इस बेंच में जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल होंगे। सुप्रीम कोर्ट के वैकेशन कोर्ट में यह मामला पांचवें नंबर पर सूचीबद्ध किया गया है।
सूत्रों के मुताबिक, कोर्ट इस बात की समीक्षा करेगा कि अरावली की परिभाषा में बदलाव किन आधारों पर किया गया और इसका पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। साथ ही यह भी देखा जाएगा कि क्या यह परिभाषा पहले जारी किए गए न्यायिक आदेशों और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कानूनों के अनुरूप है या नहीं। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट अरावली क्षेत्र में अवैध खनन, निर्माण गतिविधियों और पर्यावरणीय क्षरण पर सख्त रुख अपनाता रहा है।
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि केवल ऊंचाई के आधार पर अरावली को परिभाषित करना वैज्ञानिक दृष्टि से सही नहीं है। उनका तर्क है कि पर्वतमाला की पहचान उसकी भौगोलिक संरचना, पारिस्थितिकी तंत्र और ऐतिहासिक विस्तार के आधार पर होनी चाहिए, न कि केवल ऊंचाई के मानक से।
अब सभी की नजरें सुप्रीम कोर्ट की इस अहम सुनवाई पर टिकी हैं। माना जा रहा है कि अदालत इस मामले में केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों से जवाब तलब कर सकती है और नई परिभाषा पर अंतरिम रोक या नए दिशा-निर्देश जारी किए जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला न सिर्फ अरावली क्षेत्र के भविष्य को तय करेगा, बल्कि देश में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी एक अहम मिसाल साबित हो सकता है।
