भाजपा कार्यकारिणी में सांसद और विधायकों को ज्यादा पद देने पर छिडी जंग, एक्सक्लुसीव फुटेज में देखें फिर गरमाया राजनितीक माहौल
राजस्थान भाजपा में नई प्रदेश कार्यकारिणी के गठन को लेकर अंदरूनी मंथन तेज हो गया है। खासकर सांसदों और विधायकों को कार्यकारिणी में शामिल किए जाने को लेकर पार्टी के प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व के बीच मतभेद सामने आ रहे हैं। प्रदेश नेतृत्व जहां करीब एक दर्जन सांसदों और विधायकों को कार्यकारिणी में स्थान देने की तैयारी में है, वहीं केंद्रीय नेतृत्व इस संख्या को सीमित रखने के पक्ष में है।
सूत्रों के अनुसार, प्रदेश नेतृत्व का मानना है कि आगामी निकाय और पंचायत चुनावों को देखते हुए वरिष्ठ सांसदों और विधायकों को संगठनात्मक जिम्मेदारियां देकर पार्टी के जमीनी स्तर पर प्रभाव को मजबूत किया जा सकता है। इससे न केवल कार्यकर्ताओं में उत्साह बना रहेगा, बल्कि चुनावी रणनीति को भी मजबूती मिलेगी।
दूसरी ओर, पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व इस रणनीति से पूरी तरह सहमत नहीं है। दिल्ली में बैठे वरिष्ठ नेता मानते हैं कि सांसद और विधायक पहले से ही विधायी जिम्मेदारियों में व्यस्त हैं। यदि उन्हें संगठन में ज्यादा पद दे दिए गए तो इससे न केवल संगठन के अन्य सक्रिय कार्यकर्ताओं के लिए अवसर कम होंगे, बल्कि संसदीय कार्यों पर भी असर पड़ सकता है। ऐसे में केंद्रीय नेतृत्व का सुझाव है कि कार्यकारिणी में सांसदों और विधायकों की संख्या चार से पांच तक सीमित रखी जाए।
इस मुद्दे को लेकर हाल ही में दिल्ली में कुछ अहम बैठकों में भी चर्चा हुई है, जहां प्रदेश नेतृत्व ने अपने तर्क रखे और केंद्रीय नेतृत्व ने संतुलन बनाए रखने की बात कही। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, "प्रदेश में कई ऐसे सांसद और विधायक हैं जो संगठनात्मक कार्यों में भी काफी सक्रिय हैं। अगर उन्हें कार्यकारिणी में शामिल किया जाता है तो यह निर्णय पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकता है।"
वहीं, एक केंद्रीय पदाधिकारी का कहना है कि, "संगठन और सरकार की भूमिकाएं अलग-अलग हैं। पार्टी में नई ऊर्जा भरने के लिए युवाओं, महिला कार्यकर्ताओं और बूथ स्तर के नेताओं को मौका मिलना चाहिए।"
भाजपा की यह अंदरूनी खींचतान ऐसे समय में सामने आई है जब पार्टी राजस्थान में निकाय चुनावों की तैयारी में जुटी है और संगठन को मजबूत करने की दिशा में लगातार कदम उठाए जा रहे हैं। कार्यकारिणी के गठन को लेकर अंतिम फैसला केंद्रीय नेतृत्व की सहमति से ही लिया जाएगा, लेकिन इस बीच दोनों पक्षों में विचारों की टकराहट ने राजनीतिक गलियारों में हलचल जरूर बढ़ा दी है।
