13 पहाड़ियों से घिरा वह दुर्ग जिसे शत्रु कभी जीत न सका, इस ऐतिहासिक वीडियो में देखे कुम्भलगढ़ किले की निर्माण गाथा और महत्त्व
राजस्थान की वीर भूमि पर जब भी दुर्गों की बात होती है, तो चित्तौड़ और आमेर जैसे किलों के साथ एक नाम विशेष श्रद्धा और गौरव के साथ लिया जाता है — कुम्भलगढ़ किला। अरावली की तेरह पहाड़ियों से घिरा यह दुर्ग न सिर्फ अपनी मजबूत दीवारों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि अपनी अभेद सुरक्षा व्यवस्था और ऐतिहासिक विरासत के लिए भी जाना जाता है। यह किला कभी भी शत्रुओं द्वारा पूरी तरह जीता नहीं जा सका, और यही बात इसे अद्वितीय बनाती है।
निर्माण की अद्वितीय कथा
कुम्भलगढ़ किले का निर्माण 15वीं शताब्दी में राणा कुम्भा ने करवाया था। इसे बनाने में वर्षों लग गए और इसे राजस्थान के महान वास्तुकार मांडन की देखरेख में तैयार किया गया। यह किला मेवाड़ राज्य की उत्तरी सीमा पर एक रणनीतिक स्थान पर स्थित है और शत्रुओं के आक्रमण से मेवाड़ की रक्षा के लिए इसे विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया था।कहा जाता है कि जब किले की नींव बार-बार धंसती रही, तब राणा कुम्भा को एक साधु ने सुझाव दिया कि किले की नींव में किसी मानव बलिदान की आवश्यकता है। एक तपस्वी ने स्वयं को बलिदान हेतु प्रस्तुत किया और जिस स्थान पर उसका सिर गिरा, वहीं मुख्य द्वार और शरीर गिरा, वहां दीवार बनाई गई। इस कथा ने कुम्भलगढ़ को आध्यात्मिक रहस्य से भी जोड़ दिया।
किले की संरचना और विशेषताएं
कुम्भलगढ़ किला समुद्र तल से लगभग 1100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और इसकी सबसे अनोखी बात है इसकी 36 किलोमीटर लंबी परकोटा दीवार, जो चीन की दीवार के बाद दूसरी सबसे लंबी दीवार मानी जाती है। इस दीवार की चौड़ाई इतनी है कि पांच घोड़े एक साथ दौड़ सकते हैं। दीवार के भीतर किले परिसर में 360 से अधिक मंदिर हैं — जिनमें 300 जैन और शेष हिंदू मंदिर हैं।किले के भीतर बादल महल, वस्तु संग्रहालय, बड़ाल महल, और राणा कुंभा का महल जैसे कई ऐतिहासिक स्मारक हैं। इसके अलावा किले से सटे जंगल में कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य भी स्थित है, जो पर्यटकों के लिए एक और आकर्षण का केंद्र है।
अभेद्य सुरक्षा और युद्धकला का अद्भुत उदाहरण
इतिहास गवाह है कि कुम्भलगढ़ किले पर मुगल सम्राट अकबर, गुजरात के सुल्तान, और मालवा के शासक सहित कई बार आक्रमण हुए, लेकिन शत्रु कभी भी इस दुर्ग को पूर्ण रूप से जीत नहीं सका। केवल एक बार, जब अकबर, आमेर के राजा मानसिंह और गुजरात के सुल्तान की संयुक्त सेना ने किला घेर लिया, तब भारी साजो-सामान और महीनों की घेराबंदी के बाद किले पर अस्थायी कब्जा हो पाया।इस किले की ऊंचाई, छिपे हुए रास्ते, चक्करदार चढ़ाई और दूर-दराज से दिखाई न देना — इसे एक ऐसा अभेद दुर्ग बना देता है जिसकी तुलना भारत में कम ही किलों से की जा सकती है।
महाराणा प्रताप का जन्मस्थान
कुम्भलगढ़ किला ना केवल सैन्य दृष्टि से बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यही वह पावन धरती है जहां महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता, स्वाभिमान और संघर्ष की प्रतीक माने जाते हैं। उनका जन्म इस किले को और भी गौरवमयी बनाता है।
आज का कुम्भलगढ़
आज यह किला यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित हो चुका है और लाखों पर्यटकों को अपनी स्थापत्य कला, इतिहास और प्रकृति के सौंदर्य से आकर्षित करता है। हर साल यहां "कुम्भलगढ़ महोत्सव" भी आयोजित होता है, जिसमें लोक संगीत, नृत्य और ऐतिहासिक प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है।
