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Ajmer में बदलाव की मिसाल बनी बाल विवाह की शिकार सोनू, पति के साथ मिलकर रुकवाईं दर्जनों शादियां

Ajmer में बदलाव की मिसाल बनी बाल विवाह की शिकार सोनू, पति के साथ मिलकर रुकवाईं दर्जनों शादियां
 
Ajmer में बदलाव की मिसाल बनी बाल विवाह की शिकार सोनू, पति के साथ मिलकर रुकवाईं दर्जनों शादियां

राजस्थान के एक छोटे से गांव भावता की सोनू कंवर राठौड़ का जीवन किसी प्रेरणादायक कहानी से कम नहीं है। मात्र 12 वर्ष की आयु में उनकी शादी हो गई और वे छोटी सी उम्र में ही तीन लड़कियों की मां बन गईं। बाल विवाह के दर्द और कठिनाइयों का अनुभव करने के बाद, उन्होंने यह सुनिश्चित करने का संकल्प लिया कि किसी अन्य लड़की का जीवन इस सामाजिक बुराई का शिकार न हो।

अब 28 वर्षीय सोनू स्कूटर पर गांव-गांव घूमकर बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता अभियान चला रहे हैं। अब तक उन्होंने कई कम उम्र की लड़कियों की शादी रोकी है और उन्हें शिक्षा के प्रति प्रेरित किया है। उनका प्रयास समाज के लिए मिसाल बन गया है, जिससे कई लड़कियों का भविष्य सुधर रहा है।

जब सोनू खुद बाल विवाह का शिकार हो गए

सोनू कहते हैं कि 12 साल की उम्र में उन्हें यह भी नहीं पता था कि शादी क्या होती है। उसके पिता ने उसकी शादी उसकी बड़ी बहन से तय कर दी। सोनू की विरोध की आवाज परिवार में जश्न और संगीत के शोर में डूब गई। ऐसा सिर्फ सोनू के साथ ही नहीं हुआ, बल्कि उसका पति लक्ष्मण सिंह भी नाबालिग है। बाल विवाह की कठिनाइयों को एक साथ झेलने के बाद, लक्ष्मण भी इस लड़ाई में सोनू के साथ खड़े रहे।

सोनू गर्व से अपने पति लक्ष्मण की तस्वीर दिखाते हुए कहती हैं, "हम दोनों के साथ अन्याय हुआ है। हमने बाल विवाह की कठिनाइयों का सामना किया है, इसलिए हम जानते हैं कि यह बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए कितना खतरनाक है।"

शादी के बाद सोनू कुछ वर्षों तक अपने माता-पिता के घर पर रही और अपनी पढ़ाई जारी रखी। फिर, 17 साल की उम्र में उसने तीन बच्चों को जन्म दिया। अपनी बेटियों के चेहरे देखकर सोनू ने प्रण किया कि अब वह उनके अधिकारों की रक्षा करेंगे और उन्हें बाल विवाह के दर्द से बचाएंगे।

अपने संकल्प को पूरा करने के लिए सोनू ने घर पर ही ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया और बाद में राजस्थान महिला कल्याण मंडल (आरएमकेएम) नामक एक गैर-सरकारी संगठन से जुड़ गईं। यह संगठन बाल विवाह के खिलाफ काम करता है और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता है।

सोनू की लगन को देखते हुए संस्था ने उन्हें अपनी टीम में शामिल कर लिया। तब से वह गांवों और स्कूलों का दौरा कर लोगों को बाल विवाह के दुष्परिणामों और कानूनी पहलुओं के बारे में जागरूक कर रही हैं।

बाल विवाह रोकने का साहसिक प्रयास

एक घटना को याद करते हुए सोनू कहते हैं कि एक दिन उन्होंने 10 साल के दूल्हे को घोड़े पर बैठे देखा। उन्हें यकीन हो गया कि यह बाल विवाह था। उन्होंने तुरंत एनजीओ को सूचित किया और लगभग 50 किलोमीटर तक बारात का पीछा किया।

बारात में शामिल लोगों ने उसे रोकने की कोशिश की, धमकी भी दी, लेकिन सोनू ने हार नहीं मानी। अंततः, वह आरएमकेएम टीम के साथ मिलकर बाल विवाह रोकने में सफल रहीं।

अब तक दर्जनों शादियां रद्द हो चुकी हैं।

सोनू अब तक एक दर्जन से अधिक बाल विवाह रोक चुके हैं। उनका कहना है कि जिस दिन सभी माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजेंगे और उन पर जल्दी शादी करने का दबाव डालना बंद कर देंगे, वह दिन सच्ची जीत होगी।

सोनू कंवर राठौड़ का यह संघर्ष उन हजारों लड़कियों के लिए आशा की किरण है, जिनका जीवन बाल विवाह की कुप्रथा के कारण अंधकार में डूबा हुआ था। उनकी कहानी यह साबित करती है कि अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी बदलाव असंभव नहीं है।