Jaipur किडनी ट्रांसप्लांट की लिस्ट लेकर ढाका पहुंचा रिपोर्टर, दलालों के बीच रहकर की जाँच
मेरी किडनी किसे लगाई, मैं नहीं जानता - इमाम हुसैन
ढाका के नूरुल इस्लाम से किडनी का 5 लाख रु. में सौदा किया। उसी ने पासपोर्ट, दस्तावेज बनवाए। दिल्ली पहुंचने पर सुखमय नंदी मिला, जो जयपुर ले गया। 5 मार्च को मेरी किडनी निकाली। किसे लगी, मुझे नहीं पता। चार दिन बाद दिल्ली होकर मैं बांग्लादेश आ गया।
मैंने किडनी बेची थी, किसने खरीदी नहीं पता - अरिफुल
फेसबुक पर मुंशीगंज के शाजेदुल ने किडनी के बदले 5 लाख रु. का ऑफर दिया। मेरे पास कागज नहीं थे। फरवरी में शाजेदुल ने ढाका में मेरे कागज बनवाए। 4 मार्च को दिल्ली भेजा। 12 मार्च को जयपुर में किडनी निकाली। किसे लगी नहीं पता। मुजे 2 लाख रु. ही दिए।”
4 लाख में सौदा, किडनी लेकर 3 लाख दिए- तौहीदुल
ढाका के अशरफुल ने भतीजे तौहीदुल से 4 लाख रु. में सौदा किया। जनवरी में अशरफुल ने ही पासपोर्ट बनवा दिया, वीजा फरवरी में मिला। मार्च में तौहीदुल भारत गया। दिल्ली में मुर्तजा ने 1 लाख रु. दिए और जयपुर ले जाकर किडनी निकाली। अशरफुल ने 2 लाख रु. ही दिए।
कर्ज था तो किडनी बेची, पैसे पूरे नहीं दिए - जुबैर अहमद
ढाका के शोभन मंडल ने मुझे किडनी के बदले 4 लाख रु. देने को कहा। मैं मान गया। मेरे पास दस्तावेज नहीं थे, सब उसी ने बनवाए। 2 मार्च को दिल्ली गया, फिर जयपुर। 7 मार्च को किडनी निकली। 14 को ढाका लौटा। किडनी किसे लगी, नहीं पता। सिर्फ 2 लाख रु. दिए।”
मेरी किडनी निकाल ली, पूरे पैसे नहीं दिए - राना मियां
ढाका में अफसर मंडल से फरवरी में 3 लाख में सौदा हुआ। उसने टेस्ट करवाए और आईडी कार्ड लिया। 22 फरवरी को दिल्ली गया, 6 मार्च को जयपुर में किडनी दी और 13 मार्च को ढाका लौटा। किडनी किसे लगी, पता नहीं। जयपुर में मुर्तजा ने संभाला। 1 लाख रु. लेना बाकी हैं।”
जयपुर में 32 लाख रु. में किडनी ट्रांसप्लांट की बात हुई थी
आप किसकी बात कर रहे हैं? मैं तो इमान हुसैन नाम के किसी लड़के को नहीं जानती। हां, जयपुर में मेरा ऑपरेशन हुआ था। इलाज पर 32 लाख रु. खर्च हुए हैं, किडनी देने वाले का पता नहीं।”
हमें किडनी किसने दी ये हम नहीं जानते
बहुत तकलीफ थी। परिवार से किसी से बात की। भारत में इलाज होना बताया। हमारे पास डोनर नहीं था। 30 लाख रुपए ट्रांसप्लांट में खर्च हुए थे। तौहीदुल को मैं नहीं जानती, मगर उसका शुक्रिया।”
चूक या मिलीभगत? बांग्लादेशी उच्चायोग ने न रिश्ते जांचे और ना दस्तावेज, दे दी एनओसी
बांग्लादेशी उच्चायोग ने डोनर व रिसीवर के बीच रिश्ते की पड़ताल नहीं की। दोनों से एक भी सवाल नहीं पूछा। सिर्फ दस्तावेज देखकर आपस में रिश्तेदार होने पर मुहर लगा दी जबकि इन्हें दलालों ने फर्जी तरीके से बनवाया था। इससे दूतावास की भूमिका भी सवालों के घेरे में आ गई है। बता दें कि दूतावास की ओर से जारी लेटर के आधार पर ही अस्पताल रिसीवर व डोनर के बीच रिश्ता होने की पुष्टि करता है। अस्पताल अपने स्तर पर कोई पूछताछ नहीं करता। अस्पतालों की ओर से बांग्लादेशी दूतावास की ओर से जारी लेटर का वेरिफिकेशन जरूर करवाया जाता है। दूतावास ने मेल पर लेटर वेरिफाई करता है।