सरकारी फाइलों में मरम्मत पूरी जमीनी हकीकत में मौत के कुएं, 1500 करोड़ खर्चने के बाद भी राजस्थान के 900 स्कूल बच्चों की जान के लिए खतरा
झालावाड़ ज़िले के पिपलोदी गाँव में शुक्रवार को एक सरकारी स्कूल की पुरानी इमारत अचानक गिर गई, जिसमें 7 मासूम बच्चों की जान चली गई। इस हादसे ने राजस्थान में स्कूलों की जर्जर हालत और सरकारी लापरवाही को उजागर कर दिया है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि प्रशासन ऐसे मामलों में तभी सक्रिय क्यों होता है जब कोई बड़ा हादसा हो जाता है। सरकारी आंकड़े हैं जो सरकारी स्कूलों की खस्ता हालत को उजागर करते हैं।
जर्जर स्कूलों की संख्या: 900
शिक्षा विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, राजस्थान में इस समय लगभग 900 स्कूल जर्जर हालत में हैं। इनमें से कई स्कूलों की इमारतें इतनी कमज़ोर हैं कि बारिश या तेज़ हवाओं में हादसे का ख़तरा बना रहता है। सरकार पिछले दो सालों में 6000 स्कूलों की मरम्मत पर 1500 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। इस साल भी 500 करोड़ रुपये का प्रस्ताव वित्त विभाग की मंज़ूरी का इंतज़ार कर रहा है।
मनोहर थाना स्कूल को मिले थे एक लाख रुपये
हैरानी की बात यह है कि ढहे स्कूल भवन की छत की मरम्मत के लिए जिला परिषद को 2022-23 में एक लाख रुपये दिए गए थे और छत की मरम्मत भी कर दी गई थी। लेकिन भवन का ढांचा आरसीसी का नहीं था और नीचे की ज़मीन की कमज़ोरी को नज़रअंदाज़ कर दिया गया। इसी वजह से ज़मीन धंस गई और दीवार और छत दोनों गिर गईं।
शिक्षा निदेशक का बयान
हादसे पर शिक्षा निदेशक सीताराम जाट का बयान हैरान करने वाला है। उन्होंने कहा, "बारिश का मौसम है, पुरानी इमारतों में हादसे का डर बना रहता है। हम स्कूलों को लगातार आगाह करते रहते हैं।" उन्होंने यह भी बताया कि हर साल स्कूलों से इमारत की सुरक्षा के बारे में जानकारी ली जाती है। हादसे के बाद सरकार ने एक बार फिर स्कूलों को सुरक्षित करने के लिए पत्र जारी किया है। लेकिन सवाल यह है कि जब पहले से ही निर्देश दिए जा रहे हैं, तो हादसे क्यों हो रहे हैं? क्या सरकारी तंत्र की लापरवाही बच्चों की जान खतरे में डाल रही है?
