Aapka Rajasthan

रणथम्भौर नेशनल पार्क जहाँ एक साथ चलते है इतिहास और जंगल का रोमांच, वीडियो में जानिए यहां क्यों बार-बार लौटते हैं पर्यटक ?

रणथम्भौर नेशनल पार्क जहाँ एक साथ चलते है इतिहास और जंगल का रोमांच, वीडियो में जानिए यहां क्यों बार-बार लौटते हैं पर्यटक ?
 
रणथम्भौर नेशनल पार्क जहाँ एक साथ चलते है इतिहास और जंगल का रोमांच, वीडियो में जानिए यहां क्यों बार-बार लौटते हैं पर्यटक ?

राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित रणथम्भौर नेशनल पार्क और रणथम्भौर दुर्ग न सिर्फ भारत की शान हैं, बल्कि यह दो ऐतिहासिक और प्राकृतिक धरोहरें एक ही भूभाग पर स्थित होकर पर्यटकों के लिए अनूठा अनुभव प्रस्तुत करती हैं। एक ओर जहां रणथम्भौर नेशनल पार्क जीव-जंतुओं और वन्यजीवों की विविधता के लिए मशहूर है, वहीं दूसरी ओर रणथम्भौर दुर्ग (किला) अपने इतिहास, वास्तुकला और रहस्यमयी आभा के लिए प्रसिद्ध है। आइए जानते हैं इस अद्वितीय स्थल की ऐतिहासिक, प्राकृतिक और पर्यटन की दृष्टि से खास बातें।

रणथम्भौर नेशनल पार्क: बाघों का स्वर्ग

रणथम्भौर नेशनल पार्क की स्थापना 1980 में की गई थी, जो टाइगर प्रोजेक्ट के अंतर्गत संरक्षित बाघ अभयारण्य के रूप में कार्य करता है। यह पार्क 1,334 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और इसे भारत के प्रमुख टाइगर रिज़र्व्स में गिना जाता है। यहां का मुख्य आकर्षण बंगाल टाइगर है, जो पर्यटकों को खुले जंगल में विचरण करता हुआ देखने को मिलता है। इसके अलावा यहां तेंदुआ, भालू, चीतल, नीलगाय, सांभर, जंगली सूअर और कई प्रकार के पक्षी भी पाए जाते हैं।पार्क का वन्य वातावरण, खुला जंगल, झीलें और घने वृक्ष इसे जीव-जंतुओं के लिए उपयुक्त आश्रय बनाते हैं। मानसून के दौरान पार्क में हरियाली का नज़ारा और भी मनमोहक हो जाता है। यही कारण है कि यह पार्क प्रकृति प्रेमियों और फोटोग्राफर्स के लिए स्वर्ग समान है।

रणथम्भौर दुर्ग: इतिहास और वीरता का प्रतीक

रणथम्भौर नेशनल पार्क के ठीक बीचोंबीच एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है रणथम्भौर दुर्ग, जो भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय समेटे हुए है। इसका निर्माण 10वीं सदी में चौहानों द्वारा करवाया गया था और यह कई राजवंशों के शासन, युद्धों और वीरता की कहानियों का गवाह रहा है। 1301 में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा किए गए प्रसिद्ध युद्ध में रणथम्भौर की वीरता इतिहास के पन्नों में दर्ज है।रणथम्भौर दुर्ग यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में भी शामिल है। यह दुर्ग अपने विशाल प्राचीर, भव्य प्रवेश द्वार, जलाशयों और मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। दुर्ग के भीतर स्थित गणेश मंदिर, जिसे "त्रिनेत्र गणेश मंदिर" कहा जाता है, श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत पूजनीय है।

प्राकृतिक और ऐतिहासिक सौंदर्य का अद्भुत संगम

रणथम्भौर का विशेष आकर्षण यह है कि यह स्थल इतिहास और प्रकृति का अनोखा संगम प्रस्तुत करता है। एक ही स्थान पर जहां जंगल की रहस्यमयी शांति और वन्यजीवों की चहचहाहट है, वहीं किले की ऊँचाई पर खड़े होकर वीरता और समृद्ध स्थापत्य कला का अनुभव होता है।यहां पर सुबह-सुबह की जंगल सफारी करना और फिर दोपहर में रणथम्भौर किले की ऊँचाइयों से पूरे वन क्षेत्र को निहारना एक अविस्मरणीय अनुभव होता है। यही कारण है कि हर साल हजारों की संख्या में देश-विदेश से पर्यटक यहां आते हैं।

पर्यटन, रोजगार और स्थानीय संस्कृति

रणथम्भौर न केवल एक पर्यटक स्थल है, बल्कि यह क्षेत्र स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का प्रमुख साधन भी है। यहां सफारी ड्राइवर, गाइड, होटल स्टाफ, हस्तशिल्प विक्रेता और कई अन्य व्यवसायिक गतिविधियां स्थानीय समुदाय को आर्थिक संबल प्रदान करती हैं।इसके अलावा यहां की स्थानीय राजस्थानी संस्कृति, खानपान और संगीत भी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। रणथम्भौर में स्थित रिसॉर्ट्स और होमस्टे भी राजस्थानी आतिथ्य और पारंपरिक जीवनशैली का सुंदर परिचय कराते हैं।

संरक्षा और चुनौतियां

हालांकि रणथम्भौर नेशनल पार्क में वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए कई प्रयास किए जाते हैं, लेकिन अब भी शिकार, वन कटाई और मानवीय हस्तक्षेप जैसी चुनौतियां मौजूद हैं। वन विभाग और सरकार द्वारा निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं ताकि इस प्राकृतिक विरासत को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखा जा सके।