राजस्थान का अनदेखा स्वर्ग! वायरल डॉक्यूमेंट्री में जानिए 100 द्वीपों वाले बाँसवाड़ा का रहस्यमय इतिहास और इसकी स्थापना की कहानी
राजस्थान अपनी वीरता, महलों, किलों और रेगिस्तान के लिए जाना जाता है, लेकिन इसके दक्षिणी हिस्से में एक ऐसा इलाका भी है, जो अपने अनोखे भूगोल और समृद्ध इतिहास के लिए जाना जाता है — बाँसवाड़ा। यह जिला अपने '100 द्वीपों वाले नगर' के रूप में पहचान रखता है, जो इसे राजस्थान के अन्य भागों से अलग बनाता है। यह एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जो झीलों, हरियाली, जनजातीय संस्कृति और ऐतिहासिक विरासत का अद्भुत संगम है।आज हम जानेंगे बाँसवाड़ा के 100 द्वीपों की कहानी, इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और इस नगर की नींव किसने और कब रखी थी।
बाँसवाड़ा: 100 द्वीपों की धरती
बाँसवाड़ा को अक्सर ‘सिटी ऑफ हंड्रेड आइलैंड्स’ कहा जाता है, क्योंकि यहाँ की माही नदी पर बने माही बांध और उसकी सहायक झीलों में वर्ष भर पानी भरा रहता है, जिससे छोटे-बड़े कई टापू (आइलैंड) बन गए हैं। यह दृश्य इतना खूबसूरत होता है कि लोग इसे राजस्थान का 'अनदेखा स्वर्ग' भी कहते हैं।बरसात के मौसम में जब माही का जलस्तर बढ़ता है, तब ये द्वीप और भी अधिक सुंदर दिखाई देते हैं। नौकायन और फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए यह स्थान किसी स्वप्न से कम नहीं।
बाँसवाड़ा का इतिहास: किसने रखी थी नींव?
बाँसवाड़ा रियासत की स्थापना 1527 ईस्वी में महारावल जगमाल सिंह ने की थी। वह भील प्रमुख बांसा को हराकर यहाँ के शासक बने। ऐसा कहा जाता है कि इसी ‘बांसा’ नामक भील सरदार के नाम पर इस क्षेत्र का नाम बाँसवाड़ा पड़ा।महारावल जगमाल सिंह ने इस क्षेत्र में एक सुदृढ़ प्रशासनिक व्यवस्था कायम की और यहीं से बाँसवाड़ा राज्य की नींव पड़ी। बाद में यह रियासत माही नदी के किनारे स्थित होकर एक प्रमुख सामरिक और व्यापारिक केंद्र बन गई।
भील संस्कृति का केंद्र
बाँसवाड़ा जिले की सबसे बड़ी विशेषता है यहां की जनजातीय संस्कृति। यहाँ की लगभग आधी आबादी भील जनजाति से संबंधित है। भील समुदाय की अपनी अलग भाषा, पारंपरिक पोशाक, नृत्य और रीति-रिवाज हैं, जो इस क्षेत्र को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाते हैं।गवरी, वालर, भगोरिया और गौर नृत्य जैसे पारंपरिक लोकनृत्य बाँसवाड़ा की पहचान हैं। यहाँ के मेलों में इन लोकनृत्यों की प्रस्तुति देखने हजारों लोग आते हैं।
प्राकृतिक सुंदरता और पर्यटन स्थल
बाँसवाड़ा केवल इतिहास या जनजातीय संस्कृति तक सीमित नहीं है, यह प्राकृतिक दृष्टि से भी बेहद संपन्न जिला है। यहां कई प्रमुख पर्यटन स्थल हैं:
माही बांध – राजस्थान का सबसे बड़ा बांध, जिसकी वजह से 100 द्वीप अस्तित्व में आए।
केशर कालिया धाम – धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल, जिसे स्थानीय लोग गहरी आस्था से पूजते हैं।
तालवाड़ा – यहाँ प्राचीन जैन मंदिर और शिव मंदिर स्थित हैं।
कागदी पिकअप वियर – प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध, झील और हरियाली का संगम।
चितरी माता मंदिर – स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र, खासकर नवरात्रों में यहाँ भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
राजस्थान में हरियाली का स्वर्ग
बाँसवाड़ा को अक्सर 'छोटा कश्मीर' भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ का तापमान राजस्थान के अन्य हिस्सों की तुलना में अपेक्षाकृत ठंडा और हरियाली से भरपूर रहता है। खासकर मानसून के समय, यह जिला झीलों, पहाड़ियों और हरियाली से ढक जाता है, जो इसे एक रोमांचक पर्यटन गंतव्य बना देता है।
बाँसवाड़ा की अनदेखी खूबसूरती
बाँसवाड़ा अभी तक राजस्थान के बड़े पर्यटन मानचित्र में उतना प्रमुख नहीं हो पाया है, जितना कि इसे होना चाहिए। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि यह राज्य के सुदूर दक्षिण में स्थित है और इसके बारे में व्यापक प्रचार नहीं हुआ है।
हालांकि अब सरकार और स्थानीय प्रशासन मिलकर यहाँ के पर्यटन स्थलों को विकसित करने और प्रचारित करने में जुटे हैं। आने वाले वर्षों में यह क्षेत्र एक प्रमुख पर्यटन हॉटस्पॉट बन सकता है।
कैसे पहुंचे बाँसवाड़ा?
नजदीकी रेलवे स्टेशन: रतलाम (मध्य प्रदेश) – लगभग 80 किमी
नजदीकी एयरपोर्ट: उदयपुर – लगभग 160 किमी
सड़क मार्ग: जयपुर, उदयपुर और अहमदाबाद से सीधा सड़क संपर्क उपलब्ध है।
बाँसवाड़ा, राजस्थान का वह अनमोल रत्न है, जिसे अभी पूरी दुनिया ने सही मायनों में देखा ही नहीं है। इसका ‘100 द्वीपों वाला शहर’ कहलाना, समृद्ध इतिहास, भील संस्कृति, हरियाली और झीलों से सजी सुंदरता इसे एक अद्भुत और अनोखा गंतव्य बनाती है।अगर आप इतिहास प्रेमी हैं, संस्कृति में रुचि रखते हैं या फिर प्रकृति की गोद में कुछ सुकून भरे पल बिताना चाहते हैं — तो बाँसवाड़ा की यात्रा जरूर करें। यह राजस्थान का वह चेहरा है, जिसे देखने के बाद आपको राजस्थान की पारंपरिक छवि से अलग एक नई पहचान मिलेगी — हरियाली, झीलें और द्वीपों वाला राजस्थान।
