राजस्थान का अनदेखा स्वर्ग! 3 मिनट के इस ड्रोन वीडियो में करे बांसवाड़ा की उन गुप्त जगहों की सैर, जिनकी खूबसूरती से अनजान हैं सैलानी
राजस्थान का बांसवाड़ा जिला आमतौर पर अपनी जनजातीय संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। हालांकि उदयपुर, जैसलमेर या जयपुर की तरह यह टूरिज़्म मैप पर उतना हाईलाइटेड नहीं है, लेकिन यहीं छिपे हैं ऐसे गुप्त रत्न, जो पर्यटकों की नजरों से अब तक बचे हुए हैं। खासकर जग मेरु हिल्स, जो प्राकृतिक शांति, पहाड़ियों की गोद और अद्वितीय शुद्धता के लिए जाना जाता है, वहां के दृश्य किसी भी पहाड़ी पर्यटन स्थल से कम नहीं।
जग मेरु हिल्स: आत्मिक शांति और प्रकृति का अद्भुत संगम
बांसवाड़ा से करीब 20-25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जग मेरु हिल्स एक ऐसा स्थल है जिसे अभी तक मुख्यधारा के पर्यटन ने छुआ भी नहीं है। यह पहाड़ी इलाका न केवल ट्रैकिंग और नेचर लवर्स के लिए स्वर्ग है, बल्कि अध्यात्म की तलाश में भटक रहे लोगों के लिए भी यह एक शांतिपूर्ण स्थान है। सुबह-सुबह जब सूरज की किरणें इन पहाड़ियों पर पड़ती हैं, तब यहां की हरियाली और नीला आकाश मिलकर एक ऐसा नज़ारा पेश करते हैं, जो आपको शहरों की भागदौड़ से कोसों दूर ले जाता है।
माही डैम के आसपास की शांत घाटियां
बांसवाड़ा का माही बांध तो प्रसिद्ध है ही, लेकिन इसके पास की घाटियां और छोटे-छोटे गांव भी देखने लायक हैं। खासकर मानसून के मौसम में जब यह इलाका हरियाली की चादर ओढ़ लेता है, तब पर्यटक यहां पहुंचने लगते हैं। हालांकि, डैम तो सभी को पता है, लेकिन इसके पास की नदी किनारे बसे शांत घाट, झरने, और छोटे जलप्रपात अब भी गुप्त गहनों जैसे हैं।
दियाबर मंदिर: चुपचाप बैठा एक अद्वितीय आस्था स्थल
बांसवाड़ा शहर से थोड़ी दूरी पर स्थित दियाबर मंदिर एक प्राचीन शिव मंदिर है, जो किसी धार्मिक तीर्थ से कम नहीं। पहाड़ियों से घिरे इस मंदिर तक पहुंचना थोड़ा कठिन जरूर है, लेकिन जब आप वहां पहुंचते हैं तो वातावरण में एक अजीब सी ऊर्जा महसूस होती है। यहाँ कोई भीड़ नहीं, कोई शोर नहीं — बस आप और शिव। इस मंदिर की खास बात यह है कि यहाँ के जलस्रोत कभी सूखते नहीं, और स्थानीय लोगों की मान्यता है कि यह स्थल शिव की तपस्थली रहा है।
पारहड़ा गांव की रहस्यमयी गुफाएं
बांसवाड़ा जिले का एक और छुपा हुआ खजाना है पारहड़ा गांव, जहां की प्राकृतिक गुफाएं आज भी पुरातत्व और रहस्य प्रेमियों के बीच कम जानी जाती हैं। इन गुफाओं में कुछ शैलचित्र भी देखे गए हैं, जिन पर रिसर्च होना अभी बाकी है। गांववाले बताते हैं कि यहां पहले साधु-संत आकर तप किया करते थे। इन गुफाओं के अंदर की ठंडक, उनका रहस्यमयी अंधेरा और वहां की प्राकृतिक आकृतियां आज भी रोमांच पैदा करती हैं।
कुसुम्बा झील: सूरज की पहली किरण और पक्षियों की चहचहाहट
कुसुम्बा झील, जो बांसवाड़ा शहर के नजदीक है, मगर फिर भी पर्यटकों की नजरों से ओझल है। सुबह-सुबह इस झील के किनारे बैठना अपने आप में एक थेरेपी है। यहां आने वाले प्रवासी पक्षी, झील के साफ पानी में तैरते हुए कमल के फूल, और आस-पास का शांत वातावरण इसे मेडिटेशन और सुकून चाहने वालों के लिए आदर्श जगह बनाते हैं।
क्या कहती है लोकल पहचान?
बांसवाड़ा की इन छुपी हुई जगहों की एक खास बात यह भी है कि यहां अब तक कोई कॉमर्शियल निर्माण नहीं हुआ है। न बड़े होटल, न भीड़, न ही शोर। लोकल ग्रामीण आज भी इन स्थलों को पवित्र मानते हैं और संरक्षण की भावना से इन्हें छूते तक नहीं। यही वजह है कि इन जगहों की प्राकृतिक सुंदरता आज भी उतनी ही बनी हुई है, जैसी सदियों पहले थी।
बांसवाड़ा – अगला इको-टूरिज़्म हब?
इन तमाम अनजानी और गुप्त जगहों को देखने के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि बांसवाड़ा आने वाले वर्षों में इको-टूरिज्म का अगला केंद्र बन सकता है। यहां की प्राकृतिक विविधता, जनजातीय संस्कृति, और अविकसित किन्तु सशक्त सांस्कृतिक धरोहर मिलकर एक ऐसा अनुभव देते हैं जो आज के व्यावसायिक पर्यटन स्थलों में नहीं मिलता।
