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गहलोत सरकार के एक और मंत्री पर गिरी गाज, 237 करोड़ रुपए के सरकारी विज्ञापन घोटाला मामले में कोर्ट ने जारी किया नोटिस

 
गहलोत सरकार के एक और मंत्री पर गिरी गाज, 237 करोड़ रुपए के सरकारी विज्ञापन घोटाला मामले में कोर्ट ने जारी किया नोटिस 

सुप्रीम कोर्ट ने आज भजनलाल सरकार की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर नोटिस जारी किया। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्ववर्ती गहलोत सरकार के कार्यकाल में कथित सरकारी विज्ञापन घोटाला मामले में सरकार की याचिका पर नोटिस जारी किया। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने मामले की सुनवाई की और इसे आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया। इस पूरे विवाद के केंद्र में वे सभी फैसले हैं, जो राजस्थान भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की जांच के दायरे में आए और जो उस समय लिए गए थे।

मामला उस समय का है, जब शांति धारीवाल तत्कालीन शहरी विकास मंत्री थे और जीएस संधू (सेवानिवृत्त आईएएस) राजस्थान सरकार में प्रमुख सचिव के पद पर कार्यरत थे। मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट में सामने आने के बाद यह जांच का विषय बन गया है कि क्या इन दोनों के कार्यकाल में सरकारी पदों का दुरुपयोग कर और खरीद प्रक्रियाओं की अनदेखी कर भारी वित्तीय फैसले लिए गए? राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) शिव मंगल शर्मा, अधिवक्ता निधि जसवाल और वरिष्ठ अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने मजबूत दलीलें दीं। 

बिना किसी टेंडर के फर्जी बिल तैयार कर राशि निकाली गई
उन्होंने कहा कि नवनिर्वाचित भजनलाल सरकार ने इस मामले में अपने पुराने रुख को बदलते हुए जनता के पैसे के दुरुपयोग की गंभीर सामग्री के आधार पर यह याचिका दायर की है। यह घोटाला 2014 में दर्ज 4 एफआईआर (संख्या 404, 406, 407 और 408) पर आधारित है। इस एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि क्रेयॉन्स एडवरटाइजिंग लिमिटेड और इसके निदेशक अजय चोपड़ा ने सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, स्थानीय निकाय विभाग और निवेश एवं प्रोत्साहन ब्यूरो के अधिकारियों के साथ मिलीभगत करके फर्जी विज्ञापन बिल तैयार किए। बिना किसी टेंडर प्रक्रिया के राज्य सरकार से करोड़ों रुपये निकाले गए।

राज्य को भारी वित्तीय नुकसान
जांच में पता चला कि 2008 से 2013 के बीच कुल विज्ञापन कार्य का लगभग 90% क्रेयॉन्स एडवरटाइजिंग को दिया गया था, जो स्पष्ट रूप से खरीद नियमों का उल्लंघन था। इसके कारण राज्य को भारी वित्तीय नुकसान हुआ। एसीबी की ओर से 2017 में दाखिल चार्जशीट में इसकी जिम्मेदारी चयन समिति पर तय की गई है। इसमें रामप्रसाद जाट (तत्कालीन जनसंपर्क अधिकारी), ताराचंद मीना (निदेशक), श्याम सिंह (अतिरिक्त निदेशक), मनीष गोयल (परियोजना निदेशक, स्थानीय स्वशासन विभाग) और राजेंद्र विजयवर्गीय (वरिष्ठ नगर नियोजक) का नाम भी शामिल है। इस चयन को तत्कालीन प्रमुख सचिव जीएस संधू और तत्कालीन मंत्री शांति धारीवाल ने मंजूरी दी थी।

2017 में दाखिल हुई थी चार्जशीट
2017 में निजी व्यक्तियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई, 2019 में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की गई। इसमें कुछ सरकारी अधिकारियों और अन्य व्यक्तियों को जांच से बाहर रखा गया। फिर भी पहले दाखिल चार्जशीट और पूरक चार्जशीट को अंतिम चार्जशीट माना गया। 10 दिसंबर 2021 को राज्य सरकार ने एक आदेश पारित कर चारों एफआईआर के संबंध में सीआरपीसी की धारा 321 के तहत अभियोजन समाप्ति के लिए आवेदन दायर करने का निर्णय लिया। ये अर्जियाँ 2022 में दाखिल की गई थीं, जिन्हें एसीबी के विशेष न्यायाधीश ने खारिज कर दिया था। 2024 में सरकार बदलने के बाद भाजपा सरकार ने इन पुनर्विचार याचिकाओं को वापस लेने के लिए अर्जी दाखिल की। ​​हालाँकि, राजस्थान उच्च न्यायालय ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया और राज्य सरकार पर प्रति याचिका ₹1 लाख का जुर्माना लगाया। अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि क्या कोई नवनिर्वाचित राज्य सरकार भ्रष्टाचार जैसे आपराधिक मामलों में पिछली सरकार के रुख को बदल सकती है?