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Rajasthan Day 2025: राज्य के गौरवशाली इतिहास में जयपुर की अनोखी भूमिका…ऐसे बना था इस वीर भूमि की राजधानी

राजस्थान, भारत का सबसे बड़ा राज्य, न केवल भौगोलिक दृष्टि से विशाल है बल्कि सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक रूप से भी अत्यंत समृद्ध है। यह वीरता, शौर्य, राजपूताना संस्कृति और रंग-बिरंगे त्योहारों के लिए विश्वभर में विख्यात है। राजस्थान की धरती ने महराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, मीरा बाई और संत दादूदयाल जैसे महान व्यक्तित्वों को जन्म दिया है...........
 
Rajasthan Day 2025: राज्य के गौरवशाली इतिहास में जयपुर की अनोखी भूमिका…ऐसे बना था इस वीर भूमि की राजधानी

राजस्थान, भारत का सबसे बड़ा राज्य, न केवल भौगोलिक दृष्टि से विशाल है बल्कि सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक रूप से भी अत्यंत समृद्ध है। यह वीरता, शौर्य, राजपूताना संस्कृति और रंग-बिरंगे त्योहारों के लिए विश्वभर में विख्यात है। राजस्थान की धरती ने महराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, मीरा बाई और संत दादूदयाल जैसे महान व्यक्तित्वों को जन्म दिया है।

हर वर्ष 30 मार्च को 'राजस्थान दिवस' मनाया जाता है, जो उस ऐतिहासिक दिन की याद दिलाता है, जब विभिन्न रियासतों को एकजुट करके एकीकृत राजस्थान राज्य का गठन किया गया था। यह दिन उस अनोखे समागम और समर्पण का प्रतीक है, जिसने इस धरती को एक संगठनात्मक रूप प्रदान किया और एक पहचान दी, जिसे आज हम गर्व से राजस्थान कहते हैं।

राजस्थान दिवस प्रत्येक वर्ष 30 मार्च को पूरे राज्य में उत्सव की भावना के साथ मनाया जाता है। यह दिन 1949 में राजस्थान राज्य के औपचारिक गठन की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन जयपुर में भव्य राज्यस्तरीय समारोह आयोजित किए जाते हैं, जिनमें सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ, झांकियाँ, लोक नृत्य, संगीत और राजकीय सम्मान कार्यक्रम शामिल होते हैं। पूरे राज्य के स्कूलों, कॉलेजों, और सरकारी संस्थानों में इस दिन विशेष आयोजन होते हैं, जिनमें छात्रों को राज्य के इतिहास, संस्कृति और योगदान से अवगत कराया जाता है। राजस्थान दिवस का उद्देश्य राज्य की एकता, विकास, विविधता और समृद्ध परंपराओं को श्रद्धांजलि देना है। यह नागरिकों को उनके इतिहास, संघर्ष और उपलब्धियों की जानकारी देने के साथ-साथ भविष्य के लिए प्रेरित करता है। राजस्थान दिवस का दिन लोगों में एकता, सहयोग और गौरव की भावना को जीवंत करता है।

भारत की स्वतंत्रता के बाद देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती, उस समय की शाही रियासतों का एकीकरण था। अकेले राजस्थान में 22 से अधिक शाही रियासतें थीं, जिनका अपना-अपना प्रशासनिक ढाँचा और संस्कृति थी। ये रियासतें एक-दूसरे की प्रतिद्वंदी थीं और अपना-अपना स्वतंत्र शासन चलाती थीं। मरुधरा के एकीकरण की बड़ी जिम्मेदारी लोहपुरुष कहलाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल और वी.पी. मेनन ने अपने कन्धों पर ली और सालों के अथक प्रयासों के बाद इसमें सफलता हांसिल की, यह कार्य केवल राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक और भावनात्मक रूप से भी चुनौतीपूर्ण था। राजस्थान के एकीकरण के लिए मार्च 1948 में मत्स्य संघ का गठन हुआ, जिसमें अलवर, भरतपुर, करौली और धौलपुर शामिल थे। इसके बाद कोटा, बूँदी, झालावाड़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ की रियासतों के एकीकरण के लिए पूर्वी राजस्थान संघ का गठन किया गया। इसके बाद 18 अप्रैल 1948 को उदयपुर के इन दोनों में विलय के बाद इसे यूनाइटेड स्टेट्स ओफ राजस्थान का नाम दिया गया। उदयपुर, कोटा बूंदी और भरतपुर जैसी शक्तिशाली रियासतों के एकीकरण के बाद धीरे-धीरे अन्य रियासतें भी राजस्थान में शामिल होती गईं। अंततः 15 मई 1949 को जयपुर रियासत के इसमें विलय के साथ राजस्थान का स्वरूप उभरा और 30 मार्च 1949 को राजस्थान राज्य का गठन हुआ। 1 नवम्बर 1956 को राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के अनुसार वर्तमान राजस्थान का गठन पूर्ण हुआ, जिसमें अजमेर-मेरवाड़ा, आबू, सिरोही और सुनील क्षेत्र को भी राजस्थान में सम्मिलित किया गया।

राजस्थान का क्षेत्रफल लगभग 3,42,239 वर्ग किलोमीटर है, जो उत्तर में पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दक्षिण में गुजरात तथा पश्चिम में पाकिस्तान से घिरा है। इसके पश्चिमी भाग में शान से देश का एकलौता मरुस्थल थार, फैला हुआ है। इसी के साथ दुनिया की सबसे पुरानी पर्वतशृंखला में से एक अरावली पर्वत श्रृंखला भी राजस्थान का ही हिस्सा है, और ये राजस्थान को दो भागों में बाँटती है। प्रदेश की प्रमुख नदियों की बात करें तो यहां की सबसे मुख्य नदियां चंबल, बनास, लूनी, माही और साबरमती हैं। इसी के साथ चंबल नदी राज्य की एकमात्र ऐसी नदी है जो वर्षभर बहती रहती है। राजस्थान की जलवायु अत्यधिक शुष्क और अर्ध-शुष्क है, इसके चलते गर्मी में यहां का तापमान 50 डिग्री तक पहुँच सकता है, जबकि सर्दियों में यह 0 डिग्री तक गिर जाता है। राजस्थान में आपको कई अलग-अलग तरह की जैव विविधता भी देखने को मिलेगी, प्रदेश में खेजड़ी, रोहेड़ा, बबूल जैसे वृक्ष और ऊँट, चिंकारा, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड जैसे जीव यहाँ की प्रमुख जैव विविधता का  एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। प्रदेश के भील, मीणा, गरासिया जैसे जनजातीय समुदाय यहाँ की सांस्कृतिक विविधता को और भी समृद्ध बनाते हैं।

राजस्थान का अपना एक लम्बा चौड़ा राजनैतिक इतिहास रहा है, राजाओं की जन्मभूमि के नाम से पहचाने जाने वाली इस मरुधरा ने कई बड़े नेताओ को जन्म दिया है। प्रदेश के राजनैतिक परिवेश की बात करें तो राजस्थान में 200 विधानसभा सीटें 25 लोकसभा सीटें और 10 राजयसभा सीटें हैं। प्रदेश के अब तक के मुख्यमंत्रियों की बात करें तो राजस्थान को अपना पहला मुख्यमंत्री साल 1949 में हीरालाल शास्त्री के रूप में मिला था। इसके बाद साल 1951 से 1952 तक टीकाराम पालीवाल, साल 1952 से 1954 तक जयनारायण व्यास, साल 1954 से 1971 तक मोहनलाल सुखाड़िया, साल 1973 से 1977, 1980 से 1981 और 1985 से 1988 तक हरिदेव जोशी, फिर साल 1977 से 1980, 1990 से 1992 और 1993 से 1998 तक भैरोंसिंह शेखावत, साल 1981 से 1985 तक शिवचरण माथुर, साल 1998 से 2003, 2008 से 2013 और 2018 से 2023 तक अशोक गहलोत, साल 2003 से 2008 और 2013 से 2018 तक वसुंधरा राजे प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर आसीन रहे हैं । वर्तमान में श्री भजनलाल शर्मा साल 2023 से प्रदेश के मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाल रहे हैं। इन सभी मुख्यमंत्रियों ने अपने-अपने समय में राज्य को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और औद्योगिक रूप से आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि मोहनलाल सुखाड़िया को आधुनिक राजस्थान का निर्माता भी कहा जाता है, क्योंकि इन्होने प्रदेश के पंचायती राज, कृषि सुधार और शिक्षा के क्षेत्र में काफी बड़ी भूमिका निभाई थी। 

राजस्थान के इतिहास में कई घटनाएँ विशेष स्थान रखती हैं। जैसे यहां के भील आंदोलन ने जनजातीय अधिकारों को आवाज़ दी, वहीं 1959 में लागू हुआ पंचायती राज अधिनियम देश के लोकतांत्रिक ढाँचे को गाँव तक ले गया। 1987 में चूरू ट्रेन हादसा, 1992 में अजमेर शरीफ ब्लास्ट, 2008 के जयपुर सीरियल बम धमाके, और 2020 में कोरोना संकट में प्रशासन की भूमिका, ये सभी घटनाएँ राज्य के सामाजिक ढाँचे पर गहरा असर डाल चुकी हैं। कोटा की कोचिंग इंडस्ट्री ने राज्य को शिक्षा के क्षेत्र में नई दिशा दी है।

राजस्थान में भारत के सर्वाधिक किले हैं , यहां के मुख्य किलों में आमेर, कुंभलगढ़, चित्तौड़गढ़, जैसलमेर, जोधपुर, नाहरगढ, जयगढ, रणथम्भौर समेत कई किले शामिल हैं। यहां स्थित चित्तौड़गढ़ का किला भारत का सबसे बड़ा किला है, तो कुंभलगढ़ किले की दीवार, चीन की ग्रेट वॉल के बाद सबसे लंबी दीवार मानी जाती है। यहाँ की लोककला, घूमर, कालबेलिया, कठपुतली, मांडना जैसे नृत्य एवं चित्रकला विश्व प्रसिद्ध हैं। यहाँ का पुष्कर मेला, डेजर्ट फेस्टिवल, मरु महोत्सव और ऊँट उत्सव में शामिल होने के लिए दुनियाभर के पर्यटक सालों इन्तजार करते हैं। यहां के जयपुर यानि पिंक सिटी, उदयपुर यानि लेक सिटी, जैसलमेर यानि गोल्डन सिटी, जोधपुर यानि ब्लू सिटी, बीकानेर यानि कैमल सिटी और आदि शहरों ने राजस्थान को वैश्विक पर्यटन मानचित्र पर सबसे उच्च स्थान दिलाया है। इसके अलावा रणथंभौर और सरिस्का जैसे टाइगर रिज़र्व वन्यजीव प्रेमियों के लिए स्वर्ग समान हैं।

राजस्थान दिवस केवल एक तिथि नहीं है, बल्कि यह राज्य की आत्मा, परंपरा, संघर्ष और उपलब्धियों का उत्सव है। यह हमें अपने अतीत से जोड़ता है और भविष्य के निर्माण के लिए प्रेरित करता है। इस दिन हम राजस्थान को आकार देने वाले राज्य के समर्पित नेताओं, जनजातियों, राजाओं, स्वतंत्रता सेनानियों और आम नागरिकों को नमन करते हैं। यह दिन युवा पीढ़ी को अपने इतिहास और पहचान से जोड़ता है, और उन्हें प्रगतिशील, समावेशी और गौरवपूर्ण भविष्य की ओर अग्रसर करता है।

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