धनतेरस के दिन जरूर पढ़ें ये कथा, कभी नहीं होगी पैसों की कमी, देखें वीडियो
जयपुर न्यूज़ डेस्क, हर साल कार्तिक माह में दिवाली का त्योहार बेहद उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है. वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है. इस बार धनतेरस का पर्व आज यानी 29 अक्टूबर को मनाया जा रहा है. इस खास मौके पर कई चीजों की खरीदारी की करना शुभ माना जाता है. धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी के साथ भगवान धन्वंतरि की विधिपूर्वक पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन खरीदारी करने और पूजा करने से भगवान धन्वन्तरि की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में कभी भी पैसों की किल्लत का सामना नहीं करना पड़ता है.
धार्मिक मान्यता है कि धनतेरस के दिन पूजा के दौरान धनतेरस की कथा का पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है और जीवन के सभी दुखों से छुटकारा मिलता हैं. अगर आप भी धन लाभ पाना चाहते हैं, तो धनतेरस के दिन पूजा के दौरान व्रत इसकी कथा का पाठ जरूर करें. ऐसे में आइए पढ़ते हैं धनतेरस की कथा.
धनतेरस भगवान धन्वंतरि कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धन्वंतरि का प्राकट्य हुआ था. समुद्र मंथन के दौरान कई चीजें निकलीं, जिनमें विष और अमृत भी था. इसके बाद समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. इसी वजह से भगवान धन्वंतरि के प्रकटोत्सव के रूप में धनतेरस का पर्व देशभर में मनाया जाने लगा. भगवान धन्वंतरि के हाथ में कलश था, इसलिए धनतेरस के दिन सोना, चांदी या बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है. भगवान धन्वन्तरि को औषधि और चिकित्सा का देवता भी माना जाता है. मान्यता है कि इनकी पूजा करने से सभी प्रकार के रोग से छुटकारा मिलता है.
धनतेरस से जुड़ी दूसरी कथा
धनतेरस का पर्व को मनाने की दूसरी कथा जगत के पालनहार भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है. इस कथा का भागवत पुराण में उल्लेख मिलता है. इस प्रचलित कथा के अनुसार, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर वामन अवतार ने असुराज बलि से दान में तीनों लोक मांगे थे और देवताओं को उनकी खोई हुई संपत्ति और स्वर्ग प्रदान किया था. इसी वजह से हर साल दिवाली से पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है.
धनतेरस की पौराणिक कथा
एक बार यमराज ने यमदूतों से सवाल किया कि तुम न जाने कितने मनुष्यों के प्राण लेते हो. क्या तुम्हें कभी मनुष्यों के प्राण लेने में किसी पर दया नहीं आती है. यमदूतों ने कहा कि नहीं महाराज, हम सिर्फ आपके दिए हुए निर्देषों का पालन करते हैं. फिर यमराज ने कहा कि बेझिझक होकर बताओं कि क्या कभी किसी व्यक्ति के प्राण लेने में दया आई है? तब एक यमदूत ने जवाब दिया कि एक बार ऐसी घटना हुई है, जिसको देखकर हृदय पसीज गया था.
एक दिन हंस नाम का राजा शिकार पर निकला और वो जंगल के रास्ते में भटक गया. राजा भटकते-भटकते दूसरे राजा की सीमा पर पहुंच गया. वहां एक हेमा नाम का शासक था और उसने अपने पड़ोस के राजा का खूब आदर-सत्कार किया. उसी दिन राजा हेमा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया.
ज्योतिषों ने उस नवजात बालक के ग्रह-नक्षत्र को देखते हुए भविष्यवाणी कर दी कि विवाह के चार दिन बाद ही मृत्यु हो जाएगी. तब राजा ने आदेश दिया कि इस बालक को यमुना तट पर एक गुप्त गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा जाए, जहां कोई भी न आ पाए. लेकिन विधि के विधान को कुछ और ही मंजूर था.
संयोगवश राजा हंस की पुत्री भटकते हुए यमुना तट की उस गुफा में चली गई और वहां उसने राजा के पुत्र को देखा. उस राजकुमार को भी वो कन्या पसंद आई और दोनों ने गन्धर्व विवाह कर लिया. विवाह के चार दिन बाद राजा के पुत्र की मृत्यु हो गई. अपने पति की मृत्यु देख राजकुमारी जोर जोर से रोने लगी. तब यमदूत ने कहा कि उस नवविवाहिता का विलाप सुनकर हृदय पसीज गया था. सारी बातें सुनकर यमराज ने कहा कि क्या करें, ये तो विधि का विधान है और मर्यादा में रहते हुए हमें यह काम करना ही पड़ेगा.
यमराज ने बताया उपाय
इसके बाद यमदूतों ने यमराज से पूछा कि हे महाराज! क्या को ऐसा कोई उपाय है, जिससे अकाल मृत्यु से बचा जा सके? तब यमराज ने कहा कि धनतेरस के दिन विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करने और दीपदान करने से अकाल मृत्यु नहीं होती है. इसr घटना की वजह से धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है और दीपदान करने का विधान है.