अरावली पर्वत श्रृंखला को क्यों कहा जाता है ‘भारत की रीढ़’? इस सिनले वीडियो में जाने इसके भूगोल, खनिज और पर्यावरणीय योगदान
भारत की धरती पर फैले प्राचीन पर्वतों में से एक, अरावली पर्वत श्रृंखला को अक्सर ‘भारत की रीढ़’ कहा जाता है। इसका कारण केवल इसका भूगोलिक विस्तार नहीं, बल्कि वह समग्र योगदान है जो यह श्रृंखला भारत के पर्यावरण, खनिज संसाधनों और पारिस्थितिक संतुलन में निभाती है। यह पर्वत केवल पत्थरों की कतार नहीं है, बल्कि यह उत्तर-पश्चिम भारत के लिए जल, जीवन और सुरक्षा का स्तंभ भी है। आइए जानते हैं आखिर क्यों अरावली को इतना महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
भूगोल: धरती का सबसे प्राचीन पर्वत तंत्र
अरावली पर्वत श्रृंखला विश्व की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक मानी जाती है। इसकी उत्पत्ति लगभग 3.2 अरब वर्ष पहले हुई मानी जाती है। यह श्रृंखला राजस्थान के पश्चिमी भाग माउंट आबू से शुरू होकर हरियाणा और दिल्ली होते हुए उत्तर प्रदेश के निकट तक फैली है। लगभग 692 किलोमीटर लंबी यह पर्वतमाला राजस्थान के चार जिलों — सिरोही, उदयपुर, राजसमंद और अजमेर — से होकर गुजरती है।भौगोलिक रूप से यह पर्वत पूर्व की ओर ढलान लिए हुए है, और इसकी ऊँचाई कई जगहों पर क्रमशः घटती-बढ़ती रहती है। इसका सबसे ऊँचा शिखर गुरु शिखर है, जो माउंट आबू में स्थित है और जिसकी ऊँचाई लगभग 1,722 मीटर है।
पर्यावरणीय भूमिका: मरुस्थल से रक्षा करने वाली दीवार
अरावली श्रृंखला को भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों की पर्यावरणीय सुरक्षा कवच कहा जाता है। यह पर्वत राजस्थान के थार मरुस्थल को पूर्वी भागों में फैलने से रोकता है। अगर यह पर्वत न हो, तो रेगिस्तानी हवाएं और रेत की आँधियाँ हरियाणा, दिल्ली और उससे भी आगे उत्तर प्रदेश तक पहुंच सकती थीं।इसके अलावा, अरावली के वन क्षेत्र जैव विविधता का खजाना हैं। यहां 300 से अधिक पेड़-पौधों की प्रजातियाँ, 120 से अधिक पक्षी, और कई जंगली जानवर जैसे तेंदुआ, नीलगाय, लोमड़ी और सांभर पाए जाते हैं। यह क्षेत्र मानसून के पानी को रोककर भूजल पुनर्भरण में भी योगदान देता है।
खनिज संसाधनों का भंडार
अरावली पर्वत श्रृंखला केवल पारिस्थितिकी ही नहीं, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र खनिज संसाधनों का भंडार है। खासकर राजस्थान में इसके अंतर्गत बहुमूल्य खनिज जैसे — जस्ता (Zinc), तांबा (Copper), चूना पत्थर (Limestone), ग्रेनाइट, संगमरमर, और डोलोमाइट पाए जाते हैं। इन खनिजों का उपयोग न केवल निर्माण और औद्योगिक कार्यों में होता है, बल्कि ये राज्य और देश की अर्थव्यवस्था में योगदान भी करते हैं।राजस्थान के उदयपुर, राजसमंद और सिरोही जिले खनिज संपदा से भरपूर हैं, जहाँ कई बड़े-बड़े खदानें कार्यरत हैं। भारत के मार्बल उद्योग का एक बड़ा हिस्सा अरावली से ही आता है, जो न केवल देशभर में बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी भेजा जाता है।
खतरों के घेरे में अरावली
आज अरावली श्रृंखला खुद खतरे में है। अवैध खनन, पेड़ों की कटाई, शहरीकरण और अनियंत्रित विकास इस पर्वत श्रृंखला को खोखला कर रहे हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट्स में कई बार उल्लेख हुआ है कि अरावली के बड़े हिस्से — खासकर हरियाणा क्षेत्र में — पूरी तरह विनष्ट या लुप्तप्राय स्थिति में हैं।हरियाणा में तो अरावली की लगभग 31 प्रतिशत पर्वत श्रृंखला गायब हो चुकी है। इसकी वजह से दिल्ली-एनसीआर में बढ़ता प्रदूषण, जल संकट और गर्मी में अत्यधिक बढ़ोतरी देखी जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अरावली को संरक्षित नहीं किया गया, तो भविष्य में यह क्षेत्र भयानक जलवायु संकट का सामना करेगा।
समाधान और संरक्षण की पहल
भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अरावली क्षेत्र को संरक्षित रखने हेतु प्रयास किए जा रहे हैं। अरावली वन्य जीव अभयारण्य, सरिस्का टाइगर रिज़र्व, और माउंट आबू वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी जैसे संरक्षित क्षेत्र इसके संरक्षण के प्रयास हैं। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने भी अरावली में अवैध खनन पर सख्ती दिखाई है।
