सैंकड़ों किलोमीटर पैदल चल कर ख़्वाजा के दर पर पहुंचे मलंग और कलंदर, करतबों को देखकर हैरत में पड़ गए श्रद्धालु
अजमेर शरीफ दरगाह पर उर्स तक पहुंचने के लिए मलंग और कलंदरों ने सैकड़ों किलोमीटर का मुश्किल सफर किया। कई मलंगों के पैरों में छाले पड़ गए, जिससे चलना मुश्किल हो गया। हालांकि, फर्स्ट एड मिलने के बाद, वे पैदल ही दरगाह की ओर चल पड़े। किसी को दर्द की परवाह नहीं थी, क्योंकि उनकी मंज़िल ख्वाजा गरीब नवाज़ की दरगाह थी। यह सफर सिर्फ़ दूरी का नहीं है, बल्कि सब्र, त्याग और अटूट विश्वास का टेस्ट है, जिसे मलंग बड़ी श्रद्धा से करते हैं।
उर्स के दौरान, दरगाह कॉम्प्लेक्स और उसके आस-पास ऐसे नज़ारे देखे गए, जिन्हें देखकर आम लोग हैरान रह गए। एक मलंग ने अपने सिर पर कोल्ड ड्रिंक की कांच की बोतल ड्रम की तरह मारी, जबकि दूसरे ने अपने शरीर में एक धारदार हथियार घुसा लिया और सिंबॉलिक मेडिटेशन किया। कुछ मलंगों ने अपनी आंखें ऊपर उठाने का मुश्किल काम किया, जबकि दूसरों ने रूहानी सरेंडर के इशारे में अपने शरीर में धारदार तार चुभोए। इन नज़ारों ने देखने वालों को हैरानी और विश्वास से भर दिया।
मलंग और कलंदरों के अद्भुत करतब
मलंग और कलंदरों के ये करतब सिर्फ़ एक प्रदर्शन नहीं हैं, बल्कि उनकी सूफ़ी प्रैक्टिस का हिस्सा माने जाते हैं। ये नज़ारे देखकर न सिर्फ़ भारतीय बल्कि विदेशी भक्त भी हैरान रह गए। लोगों ने कहा कि भारत की सूफ़ी परंपरा में आस्था का ऐसा रूप दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता। अपने करतबों के ज़रिए मलंग और कलंदर यह संदेश देते हैं कि सच्ची मोहब्बत में दर्द भी इबादत बन जाता है और ख्वाजा साहब की रहमत हर मुश्किल को आसान कर देती है।
सूफ़ी परंपरा का एक खास महत्व, छड़ी जुलूस
उर्स के दौरान निकलने वाला मलंग और कलंदरों का छड़ी जुलूस इस पूरी परंपरा की एक खास पहचान है। छड़ी को तपस्या, अनुशासन और रूहानी ताकत का प्रतीक माना जाता है। जुलूस के दौरान, मलंग "दमादुम मस्त कलंदर" का नारा लगाते हुए आगे बढ़ते हैं और ख्वाजा गरीब नवाज़ के दरबार में छड़ी पेश करते हैं। यह जुलूस दिखाता है कि सूफ़ी परंपरा में, हर रंग, हर रास्ता और हर इबादत आखिर में प्यार, इंसानियत और भाईचारे की ओर ले जाती है।
ख्वाजा गरीब नवाज़ के लिए अटूट प्यार
अजमेर शरीफ़ का उर्स इस अलग-अलग तरह के विश्वास और सूफ़ी विरासत का जीता-जागता उदाहरण है। एक एक्सीडेंट में दोनों हाथों की उंगलियां और कलाई खोने के बावजूद, सफ़क़त अली का ख्वाजा गरीब नवाज़ के लिए प्यार अटूट है। उन्होंने अपने शरीर के दर्द को अपने विश्वास पर हावी नहीं होने दिया और मलंगों के साथ कोलकाता से अजमेर तक उर्स में शामिल होने के लिए सफ़र करके सब्र, हिम्मत और सच्ची भक्ति की मिसाल कायम की।
