Kumbhalgarh जहाँ अजेय इतिहास और खौफनाक रहस्य चलते है साथ, इस वायरल वीडियो में जानिए यहाँ गूंजने वाली दर्दनाक चीखों का राज़
राजस्थान की वीरभूमि अपने किलों, युद्धों और ऐतिहासिक गाथाओं के लिए विश्वप्रसिद्ध है। लेकिन जब बात किले के भीतर छुपे रहस्यों और डरावने किस्सों की हो, तो कुम्भलगढ़ किला (Kumbhalgarh Fort) का नाम विशेष रूप से सामने आता है। यह किला न केवल अपने अजेय इतिहास के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि उन चीखों, रहस्यमय घटनाओं और अदृश्य साये के लिए भी जाना जाता है जो रात होते ही यहाँ की हवाओं में घुल जाते हैं।
अजेयता का प्रतीक – इतिहास की अनमोल धरोहर
राजसमंद जिले में अरावली की ऊँचाइयों पर स्थित कुम्भलगढ़ किला 15वीं शताब्दी में महाराणा कुम्भा द्वारा बनवाया गया था। यह किला 84 किलोमीटर लंबी दीवार के लिए मशहूर है, जो चीन की दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार मानी जाती है। किले ने मुगलों और बाहरी आक्रमणकारियों के अनेक हमलों को झेला लेकिन कभी भी इसकी मुख्य दीवार को भेदा नहीं जा सका। यही कारण है कि इसे "अजेय किला" कहा जाता है।
यहाँ महाराणा प्रताप का जन्म भी हुआ था – एक ऐसा नाम जो हर राजस्थानी के दिल में सम्मान के साथ बसता है। इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि यह किला न केवल सुरक्षा का प्रतीक था, बल्कि मेवाड़ राज्य की रणनीतिक रीढ़ भी।
रहस्यमय घटनाएं और रात की गूंजती चीखें
दिन में कुम्भलगढ़ एक शौर्यगाथा प्रतीत होता है, लेकिन जैसे ही सूरज ढलता है, यहां की फिजा में एक रहस्यमयी सन्नाटा पसरने लगता है। कई पर्यटकों और स्थानीय लोगों ने यह दावा किया है कि रात के समय किले के भीतर से अजीब-अजीब आवाजें आती हैं। कई बार उन्होंने दीवारों के पीछे से कराहने जैसी चीखें सुनी हैं, जो किसी अज्ञात आत्मा की पीड़ा को बयान करती हैं।
आखिर कौन है ये कराहती आत्माएं?
लोककथाओं में माना जाता है कि कुम्भलगढ़ की नींव रखने से पहले कई बार उसका निर्माण कार्य असफल होता रहा। वास्तु शास्त्रियों ने इसे किसी बलि के अभाव से जोड़ा और एक संत – “गौरव पंथ” नामक तपस्वी – ने अपनी जान बलि स्वरूप देने का संकल्प लिया। उनकी शर्त थी कि उन्हें जहां सिर कटने के बाद गिर जाए, वहां मुख्य द्वार बनाया जाए। यह आज का "हनुमान पोल" है। तब से माना जाता है कि उनकी आत्मा अब भी किले में भटकती है।
साथ ही, युद्धों में मारे गए हजारों सैनिकों की अधूरी आत्माएं भी इस किले की छाया में अब भी कैद हैं। इन आत्माओं की चीखें अब रह-रहकर किले की रातों में सुनाई देती हैं।
विज्ञान और तर्क भी हो गए हैं असहाय
कई परामनोविज्ञान विशेषज्ञों ने यहां रिसर्च करने की कोशिश की, लेकिन कैमरों और रिकॉर्डर्स में बार-बार अजीब शोर, धुंधली आकृतियां और अचानक ठंडा माहौल दर्ज हुआ। वैज्ञानिक भी इन घटनाओं को किसी ठोस कारण से नहीं जोड़ सके, जिससे इन रहस्यों की जड़ें और गहरी हो गई हैं।
पर्यटक अनुभव करते हैं अद्भुत डर
कई पर्यटक जिन्होंने रात के समय किले में प्रवेश किया या पास के होटल्स में रुके, उन्होंने बताया कि किसी अदृश्य शक्ति की उपस्थिति महसूस हुई। कुछ को लगा कि कोई उनके पीछे खड़ा है, तो किसी को अपने सिरहाने सिसकियों की आवाजें सुनाई दीं। कई बार तो गाइड्स और स्थानीय लोग खुद पर्यटकों को सूर्यास्त से पहले ही किले से बाहर निकलने की सलाह देते हैं।
क्या यह इतिहास का भार है या आत्माओं का बंधन?
कुम्भलगढ़ किला आज भी भारत के गौरवशाली अतीत का प्रतीक है। लेकिन इसके साथ-साथ यह एक ऐसा स्थान भी है जहाँ इतिहास और रहस्य एक-दूसरे में इतने उलझे हुए हैं कि कोई उन्हें अलग नहीं कर सकता। दिन में ये दीवारें वीरता की गाथा कहती हैं, तो रात में इन्हीं दीवारों में कैद कराहती आत्माएं अपना दुख सुनाती हैं।
