कुम्भलगढ़ किला जहाँ दिन में दिखता है गौरवशाली इतिहास और रात को गूंजती है खौफनाक आवाजे, वीडियो में खौफनाक मंजर देख सहम जाएंगे आप

राजस्थान के राजसमंद जिले की पहाड़ियों में बसा कुम्भलगढ़ किला दिन में जहां अपने ऐतिहासिक वैभव और अद्भुत स्थापत्य के लिए जाना जाता है, वहीं रात होते ही यह किला एक रहस्यमयी और डरावने माहौल में बदल जाता है। पर्यटक इसकी खूबसूरती से मोहित हो जाते हैं लेकिन जैसे ही सूरज ढलता है, ये किला खौफ की चादर ओढ़ लेता है। क्या है इस परिवर्तन का कारण? क्या यहां कोई अदृश्य शक्ति है? चलिए जानते हैं कुम्भलगढ़ किले की वो कहानी जो इतिहास और रहस्य दोनों का संगम है।
दिन में अद्भुत नज़ारा, शौर्य की कहानी
कुम्भलगढ़ किला महाराणा कुम्भा द्वारा 15वीं सदी में बनवाया गया था। इसे मेवाड़ साम्राज्य की सुरक्षा के लिए बनाया गया था। यह किला अरावली की पहाड़ियों पर स्थित है और इसकी दीवारें इतनी विशाल हैं कि इसे भारत की "ग्रेट वॉल" भी कहा जाता है। करीब 36 किलोमीटर लंबी यह दीवार चीन की दीवार के बाद दूसरी सबसे लंबी दीवार मानी जाती है। किले के अंदर 360 से ज्यादा मंदिर हैं, जिनमें 300 से अधिक जैन मंदिर और शेष हिंदू मंदिर हैं।यह किला सिर्फ अपनी सुंदरता ही नहीं, बल्कि अपनी रणनीतिक बनावट, ऊँचाई और दुर्गमता के कारण भी मशहूर है। यहां से दुश्मनों की हलचल मीलों दूर से देखी जा सकती थी। राणा कुम्भा और राणा प्रताप जैसे वीरों की गाथाएं आज भी यहां की दीवारों से सुनाई देती हैं। दिन में यह किला एक परफेक्ट टूरिस्ट डेस्टिनेशन है, जहां से सूरज की रोशनी में राजस्थान की खूबसूरती का अनुपम दृश्य दिखता है।
लेकिन जैसे ही रात होती है, कुछ बदलने लगता है...
इतिहासकार और स्थानीय लोग मानते हैं कि कुम्भलगढ़ किले में रात को एक अजीब सी ऊर्जा महसूस की जा सकती है। पर्यटकों को सूरज ढलने के बाद किले से बाहर जाने की हिदायत दी जाती है, क्योंकि स्थानीय मान्यता है कि रात में यहां आत्माएं सक्रिय हो जाती हैं। किले के कई हिस्से ऐसे हैं, जहां अंधेरा होते ही कोई रुकना नहीं चाहता।रात को यहां अजीब सी आवाजें सुनाई देती हैं, जैसे कोई चल रहा हो, कोई फुसफुसा रहा हो या कोई दरवाजे को खटखटा रहा हो। कई पर्यटकों ने दावा किया है कि उन्हें किसी अदृश्य ताकत ने छुआ, या उनके कैमरे अपने आप बंद हो गए। यहां तक कि मोबाइल नेटवर्क और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी रात को सही से काम नहीं करते।
क्या है इन घटनाओं के पीछे की रहस्यमयी वजह?
कुछ लोककथाएं बताती हैं कि इस किले के निर्माण के समय एक संत ने भविष्यवाणी की थी कि यह किला तभी बनेगा जब कोई व्यक्ति अपनी बलि देगा। संत की यह बात सुनकर एक आम व्यक्ति ने स्वयं को बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। कहते हैं उसकी बलि के बाद ही किले की नींव रखी गई। उसी स्थान पर आज भी एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है, जहां लोग दीप जलाते हैं। माना जाता है कि उसकी आत्मा आज भी किले में भटकती है और निर्माण के समय का दुख याद दिलाती है।इसके अलावा कई युद्धों और षड्यंत्रों का साक्षी बना यह किला अनेक वीरों की मौत का स्थान भी रहा है। हजारों सैनिकों की आत्माएं, जो युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुईं, अब इस दुर्ग के भीतर विचरण करती हैं, ऐसा लोगों का मानना है।
वैज्ञानिक नजरिया भी है
कुछ वैज्ञानिकों और पैरानॉर्मल एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह सब सिर्फ मन का भ्रम हो सकता है। किले की बनावट, वहां की नीरवता, अंधेरे का घना असर, और इतिहास से जुड़ी कहानियां मिलकर एक डरावना माहौल बनाती हैं, जो मानव मस्तिष्क को भ्रमित कर सकती हैं। लेकिन जब कई लोग एक जैसे अनुभव साझा करते हैं, तो सवाल उठना लाजमी है – क्या ये वाकई भ्रम है या कुछ और?
पर्यटकों के लिए चेतावनी
सरकारी नियमों के अनुसार, कुम्भलगढ़ किले में सूरज ढलने के बाद प्रवेश वर्जित है। शाम के समय ही गेट बंद कर दिए जाते हैं। फिर भी कुछ साहसी लोग रात को पास के जंगलों या ऊँचाइयों से किले को देखने की कोशिश करते हैं और अजीब अनुभवों की कहानियां सुनाते हैं।यदि आप दिन में जाएं तो यह किला आपको वीरता, स्थापत्य और भारतीय इतिहास की जीवंत झलक देगा। लेकिन अगर आप रात में यहां रुकने का विचार करते हैं, तो एक बार स्थानीय लोगों की बात जरूर सुनें, क्योंकि डर के पीछे हमेशा कोई न कोई वजह होती है।