Jaipur कॉलोनी का गेट बंद रखना जनहित के खिलाफ, मामला पहुंचा हाईकोर्ट
जयपुर न्यूज़ डेस्क, जयपुर विकास समितियों द्वारा आम रास्ता बंद कर बंद रखने को जनहित और इससे लोगों को हो रही परेशानी को हाई कोर्ट की एकलपीठ व खंडपीठ ने गंभीर मानते हुए इसे गंभीर माना है. इस बीच, हाईकोर्ट की खंडपीठ ने मामले में नगर निगम ग्रेटर आयुक्त और उपायुक्त, जेईएन समेत मूर्तिकला कॉलोनी विकास समिति-डी ब्लॉक के अध्यक्ष अजीत शर्मा और सचिव मनोज कौशिक समेत अन्य अधिकारियों को 1 फरवरी तक जवाब देने को कहा है. कार्यवाहक सीजे एमएम श्रीवास्तव व शुभा मेहता की खंडपीठ ने अधिवक्ता धर्मेंद्र जोशी की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया. अधिवक्ता अमित कुड़ी ने बताया कि एकलपीठ ने इस मामले को जनहित में मानते हुए खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए भेजा था. इससे पहले प्रार्थी ने गेट बंद होने से उसे व उसके परिवार को हो रही परेशानी को लेकर एकलपीठ में याचिका दायर की थी.
गेट बंद होने से परेशानी: मूर्तिकला कॉलोनी निवासी आवेदक एडवोकेट धर्मेंद्र जोशी ने बताया कि उनकी कॉलोनी में विकास समिति ने पांच गेट लगाए हैं। उनके घर के पास एक गेट है जो आम रास्ते से सटा हुआ है. ये गेट रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक अवैध रूप से बंद रहते हैं। अप्रैल 2023 में, जब उनकी पत्नी को दिल का दौरा पड़ा, तो पास का गेट बंद होने के कारण उन्हें और परिवार के अन्य सदस्यों को जाने की अनुमति नहीं दी गई। उन्हें अपने घर से लगभग एक हजार फीट की दूरी पर स्थित दूसरे गेट से जाने के लिए मजबूर किया गया। इसे लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. इसे व्यापक जनहित का मानते हुए हाईकोर्ट की एकल पीठ ने मामले को खंडपीठ में सुनवाई के लिए भेज दिया.
विधायक बोले- कॉलोनी का गेट बंद रखना दंडनीय अपराध है
आपराधिक मामले के वकील दीपक चौहान का कहना है कि कुछ लोगों की सुरक्षा के नाम पर सार्वजनिक रास्ते को गेट लगाकर बंद नहीं रखा जा सकता है और यह दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है. कॉलोनी की छोटी सी सड़क पर जबरन गेट लगाकर बंद करना न केवल गलत है, बल्कि 60 फीट की सड़क पर भी स्थानीय निकाय की मंजूरी के बिना गेट नहीं लगाया जा सकता। वहीं अधिवक्ता डॉ. योगेश गुप्ता का कहना है कि यह उपद्रव और आपराधिक अपराध है। पीड़ित पक्ष सीआरपीसी की धारा 133 के तहत एडीएम के पास शिकायत दर्ज कर मुआवजे का दावा कर सकता है। इसके अलावा ऐसा करने वालों के खिलाफ आईपीसी की धारा 268 और 283 के तहत दंडनीय अपराध के तौर पर कार्रवाई की जा सकती है.